रूमी दरवाजा नवाबों के शासनकाल का निर्माण है। इसे लखनऊ का हस्ताक्षर भवन माना जाता है। लखनऊ का जिक्र होते ही जिन खास जगहों पर लोग जाना चाहते हैं, उनमें रूमी दरवाजा अहम है। ये अपनी खास बनावट और निर्माण शैली के कारण बेहद प्रसिद्ध है।
Lucknow News: मोहर्रम से पहले खोला गया रूमी गेट, कल्बे जवाद ने की भारी वाहनों के गुजरने पर रोक की मांग
Jul 05, 2024 11:48
Jul 05, 2024 11:48
- शिया धर्म गुरु कल्बे जवाद ने किया रूमी गेट का निरीक्षण
- मौहर्रम पर रूमी गेट से होकर गुजरता है शाही जुलूस
मोहर्रम के मौके पर रूमी गेट से निकलता है जुलूस
मोहर्रम के मौके पर 200 सालों से अधिक समय से चला आ रहा शाही जुलूस रूमी गेट से निकलता है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद होते हैं। बैंड व शहनाई पर नौहों की मातमी धुन के साथ आसिफी इमामबाड़े से परंपरागत अंदाज में जुलूस निकाला जाता है। हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से निकाला गया ये जुलूस इमामबाड़े से निकलकर रूमी गेट, पावर हाउस, घंटाघर होते हुए छोटे इमामबाड़े पहुंचता है।
दरारें आने की वजह से बंद किया गया था रूमी गेट
दिसंबर 2022 में रूमी गेट के नीचे से निकलने का रास्ता बंद कर दिया गया था। दरारें आने की वजह से ऐसा किया गया था। यहां से निकलने वाले लोगों के लिए बगल से एक रास्ता बना दिया गया था। इसके बाद जुलाई 2023 में इसे मोहर्रम के मद्देनजर खोला गया। इस बार भी ऐसा ही किया गया है। पुरातत्व विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद् डाॅ.आफताब हुसैन के मुताबिक मोहर्रम के मद्देनजर रूमी गेट को एक बार फिर खोला गया है। स्थानीय लोगों ने भी इसे लेकर अपनी खुशी जाहिर की। रूमी गेट लखनऊ की प्रसिद्ध एतिहासिक जगह है। इसे देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से आते हैं।
पर्यटक रूमी दरवाजे के साथ अपनी तस्वीर लेना करते हैं पसंद
रूमी दरवाजा नवाबों के शासनकाल का निर्माण है। इसे लखनऊ का हस्ताक्षर भवन माना जाता है। लखनऊ का जिक्र होते ही जिन खास जगहों पर लोग जाना चाहते हैं, उनमें रूमी दरवाजा अहम है। ये अपनी खास बनावट और निर्माण शैली के कारण बेहद प्रसिद्ध है। देश विदेश से आने वाले पर्यटक रूमी दरवाजे के साथ अपनी तस्वीर लेना पसंद करते हैं। इतिहासकारों के मुताबिक रूमी गेट को लखनऊ के चौथे नवाब आसफउद्दौला ने सन 1784 में करवाया था। इसका निर्माण कार्य सन 1786 में पूरा हुआ। कहा जाता है कि इसके निर्माण में उस जमाने में एक करोड़ की लागत आई थी।
टर्किश गेट, तुर्की गेट भी पुकारा जाता है नाम
रूमी गेट को लखौड़ी ईट और बादामी चूने के जरिए बनाया गया है। रूमी दरवाजा कान्सटिनपोल के एक प्राचीन दुर्ग द्वार की नकल पर बनवाया गया था। इस वजह से कि 19वीं सदी में लोग इसे कुस्तुनतुनिया कहकर पुकारा करते थ। मशहूर लेखक नाइटन ने अपनी किताब 'प्राइवेट लाइफ ऑफ इन ईस्टर्न किंग' में लिखा है कि टर्की के सुल्तान के दरबार का प्रवेश द्वार भी इसी मॉडल का था और इसीलिए आज तक योरोपियन इतिहासकार इसे 'टर्किश गेट' कहते हैं। वहीं आमबोल चाल में रूमी गेट को इस वजह से तुर्की गेट भी कहा जाता है।
60 फीट लंबाई है रूमी गेट की
लखनऊ की नर्म मिट्टी में ढली यह इमारत अपनी अनूठी वास्तुकला के कारण बेहद प्रसिद्ध है। रूमी दरवाजा की लंबाई 60 फीट है। इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर एक अठपहलू छतरी बनी हुई है, जहां तक जाने के लिए रास्ता है। पश्चिम की ओर से रूमी दरवाजे की रूपरेखा त्रिपोलिया जैसी है जबकि पूर्व की ओर से यह पंचमहल मालूम होता है। दरवाजे के दोनों तरफ तीन मंजिला हवादार परकोटा बना हुआ है, जिसके सिरे पर आठ पहलू वाले बुर्ज बने हुए हैं जिन पर गुंबद नहीं है। रूमी दरवाजा देखा जाए तो शंखाकार है, जिसकी मेहराबें कमान की तरह झुकी हुईं हैं। बाहरी मेहराब को नागफनों से सजाया गया है जिन्हें कमल दल भी समझा जा सकता है। नागफनों के बीच से सनाल कमल फूलों की सजावट कतार में मिलती है।
नवाबों की दुनिया का प्रवेश द्वार
रूमी दरवाजे के दोनों तरफ कमलासन पर छोटी छतरियां बनाई गई हैं। अंदर की मेहराब मुगल परंपरा की शाहजहानी मेहराब है, जिसकी सजावट में नागर कला के बेलबूटे बने हुए हैं उसके शिखर पर फिर एक फूल हुआ कमल बना है। 18वीं सदी में बनवाया गया ये रूमी दरवाजा बाद में भवन निर्माण कला की एक परंपरा बन गया। ये आसफी इमामबाड़ा के पास है, यहां से रात का नजारा काफी अच्छा लगता है। यह अवध की बेजोड़ वास्तुकला का प्रतीक है। अपनी खूबसूरती के कारण इसे नवाबों की दुनिया का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
अकाल के दौरान नवाब ने निर्माण कराया शुरू
कहा जाता है कि जब इस दरवाजे का निर्माण हुआ, तब लखनऊ में अकाल पड़ा हुआ था। लोगों के पास खाने और काम करने के लिए कुछ नहीं था। पेट को भरने के लिए लोग भीख मांगने पर मजबूर हो गए थे। नवाब अपनी रियाया यानी प्रजा को भीख नहीं देना चाहते थे। वह काम के जरिए उनकी मदद करना चाहते थे। इसलिए नवाब आसफुद्दौला ने भवनों का निर्माण करने की योजना बनाई ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। इन्हीं इमारतों में रूमी दरवाजा एक था। कहा जाता है कि इस दरवाजे को बनाने के लिए 22 हजार लोगों ने दिन रात काम किया। इससे न सिर्फ उन्हें रोजगार मिला, बल्कि लखनऊ की शान में एक एतिहासिक इमारत का भी नाम शामिल हो गया।
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