UP Politics : बसपा की समीक्षा बैठक से ज्यादा आकाश आनंद की चर्चा, मायावती के फैसले पर सबकी नजर

बसपा की समीक्षा बैठक से ज्यादा आकाश आनंद की चर्चा, मायावती के फैसले पर सबकी नजर
UPT | बसपा प्रमुख मायावती।

Jun 16, 2024 02:52

मायावती की समीक्षा बैठक को लेकर कहा जा रहा है कि इसमें उनके भतीजे आकाश आनंद नहीं शामिल होंगे। बसपा सुप्रीमो ने पहले आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के साथ पार्टी का नेशनल कॉर्डिनेटर बनाया था। बाद उनसे दोनों जिम्मेदार वापस ले ली।

Jun 16, 2024 02:52

Short Highlights
  • लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद मायावती की पहली बड़ी बैठक
  • पार्टी पदाधिकारियों सहित अन्य नेता होंगे शामिल
  • चुनाव में सूपड़ा साफ होने के बाद रणनीति बदलने पर मायावती करेंगी चर्चा 
Lucknow News : लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती बड़ी बैठक करने जा रही हैं। हार की समीक्षा को लेकर उन्होंने सभी महत्वपूर्ण पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों को ​बुलाया है। इस बैठक की काफी चर्चा है और कहा जा रहा है कि इसमें उनके भतीजे आकाश आनंद नहीं शामिल होंगे। मायावती ने पहले आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के साथ पार्टी का नेशनल कॉर्डिनेटर बनाया था।

लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश आनंद काफी सक्रिय भी ​थे। लेकिन, चुनावी महासमर के बीच मायावती ने आकाश को अपरिपक्व बताते हुए दोनों जिम्मेदारियां वापस ले लीं। इसकी काफी चर्चा हुई और कहा गया कि आकाश आनंद युवाओं को पार्टी से जोड़ने का काम कर रहे थे, उनकी रैलियों में काफी भीड़ जुट रही थी। ऐसे में उनसे जिम्मेदारी वापस लेने के कारण बसपा समर्थकों में अच्छा संदेश नहीं गया। वहीं चुनाव परिणाम के बाद जब बसपा शून्य पर सिमट गई, तब भी इसे लेकर सियासी विश्लेषकों ने अपनी राय जाहिर की। अब मायावती की बैठक से ज्यादा आकाश आनंद को नहीं बुलाए जाने की चर्चा हो रही है। 

सतीश चंद्र मिश्रा के साथ हो चुकी है बैठक
लोकसभा चुनाव के चार जून को परिणाम आने के अगले दिन पार्टी सुप्रीमो मायावती ने राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र से हार के कारणों पर चर्चा की थी। बताया जा रहा है कि इस दौरान पार्टी प्रत्याशियों की करारी हार को लेकर मायावती ने नाराजगी जताई और बेहद खराब प्रदर्शन वाले लोकसभा क्षेत्रों में संगठन के जिम्मेदारों पर एक्शन लेने की बात कही। कोआर्डिनेटरों से लेकर जिला स्तर के पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही जा रही है। वहीं अब बैठक में मायावती के रुख पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।

काम नहीं आई एकला चलो की राह
लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन की बात करें तो मायावती ने एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधन से दूरी बनाए रखी। उन्हें यकीन था कि चुनाव में दलितों के साथ अल्पसंख्यकों का वोट उन्हें मिलेगा। लेकिन, उनकी रणनीति धरातल पर पूरी तरह फेल साबित हो गई। अल्पसंख्यकों ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को वोट दिया, जिससे दोनों दलों को फायदा हुआ। सपा ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 37 और कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की। बसपा उम्मीदवार कहीं भी मुकाबले में नजर नहीं आए। इस वजह से उसका सूपड़ा साफ हो गया और वोट प्रतिशत भी खिसकर 9.39 पर सरक गया। वहीं देश में बसपा का वोट प्रतिशत महज 2.04 है. 

मुसलमानों से नाराजगी
मायावती को चुनाव परिणाम से बड़ा झटका लगा है। इसलिए उन्होंने अब भविष्य में मुसलमान नेताओं को काफी सोच विचार के बाद ही टिकट देने की बात कही है। मायावती इस बात से काफी नाराज हैं कि मुस्लिम वर्ग ने भाजपा के मुकाबले सपा को खुलकर वोट दिया और गठबंधन के कारण कांग्रेस को भी इसका फायदा मिला। ऐसे में अब वह यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव 2027 सहित अन्य स्थानों पर चुनाव को लेकर पार्टी संगठन को फिर से मजबूत करने के लिए नेताओं के साथ रणनीति पर चर्चा करेंगी।  

संगठन में किए बदलाव
इससे पहले उन्होंने संगठन में बदलाव करते हुए सेक्टर व्यवस्था लागू कर दी है। प्रदेश को कुल छह सेक्टरों में बांटा गया है। हर सेक्टर में दो से लेकर चार मंडल शामिल किए गए हैं। कई सेक्टरों के इंचार्जों की तैनाती भी कर दी गई है और कार्यक्षेत्र में भी बदलाव किया गया है। हालांकि ऐसा नहीं है कि मायावती के लिए सिर्फ लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे निराशानजक रहे हैं। चुनाव दर चुनाव उनकी जमीन खिसकती जा रही है और इसका फायदा दूसरे दलों को मिल रहा है।

चुनाव दर चुनाव खराब प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन पर नजर डालें तो 1989 में उसे 2 सीटें और 9.90 प्रतिशत वोट मिले। 1991 में 1 सीट और 8.70 प्रतिशत वोट, 1996 में 6 सीटें और 20 प्रतिशत मत, 1998 में 4 सीटें और 20.90 प्रतिशत वोट, 1999 में 14 सीटें और 22.80 प्रतिशत वोट, 2004 में 10 सीटें और 22.17 प्रतिशत वोट, 2009 में 20 सीटें और 27.42 प्रतिशत मत मिले। इसके बाद 2014 में बसपा अपना खाता खोलने में असफल रही और उसके 19.77 फीसदी वोट मिले। 2019 में अखिलेश यादव से दोस्ती का बसपा को फायदा मिले और उसके 10 उम्मीदवार जीतने में सफल रहे। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी को 19.43 प्रतिशत वोट मिले। यूपी विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2022 में पार्टी सिर्फ एक सीट पर सिमट गई। इससे पहले 2017 में उसे 19 सीटें और 22.23 प्रतिशत वोट मिले। विधानसभा चुनाव 2012 में पार्टी को 80 सीटें और 25.91 प्रतिशत वोट मिले। 

मायावती स्वयं चुनावी राजनीति से दूर
एक समय दलित वोटों पर सबसे अच्छी पकड़ रखने वाली बसपा अब इनसे भी दूर छिटकती जा रही है। भाजपा इसमें सेंधमारी करने में सफल हुई हैं मायावती की बिरादरी के जाटव मतदाता कुछ हद तक अभी पार्टी के साथ हैं। लेकिन, स्थिति बेहतर नहीं है। सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला पहले ही फेल हो चुका है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बसपा के सामने चुनौतियां इसलिए भी ज्यादा हैं, क्योंकि मायावती के बाद दूसरी पंक्ति के नेताओं का अभाव है। अधिकांश बड़े नेता या तो किनारे कर दिए गए या फिर वह दूसरे दलों में चले गए। मायावती खुद भी अब चुनावी राजनीति से दूर रहती हैं। ऐसे में कार्यकर्ताओं में जोश नहीं दिखाई देता। 

कहां चूक गई बसपा
लोकसभा चुनाव 2024 की बात करें तो अखिलेश यादव न सिर्फ स्वयं मैदान में उतरे बल्कि पार्टी का गढ़ कही जानी वाली सीटों से उन्होंने परिवार के सदस्यों को उतारा, जिससे गुटबाजी पूरी तरह खत्म हो गई। वहीं बसपा की बात करें तो उस पर हमेशा बी टीम होने के आरोप लगते रहे हैं, पार्टी इससे मतदाताओं की नजरों में नहीं आ पा रही है। अन्य दल जहां युवाओं को जोड़ने पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, वहीं बसपा में इसका काफी अभाव है। आकाश आनंद ने करीब 17 जनसभाएं की, इससे एक संदेश जा रहा था। लेकिन, ऐन मौके पर मायावती ने उन्हें चुनावी महासमर से ही बाहर कर दिया। खुद मायावती की 28 जनसभाएं भी काम नहीं आई। पार्टी में स्टार प्रचारकों की सूची तो बनती है। लेकिन, वह वोट दिलाने में सफल नहीं हो रहे। रही सही कसर नगीना लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर आजाद रावण की जीत ने पूरी कर दी है। यहां बसपा प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गई। ऐसे में इस बार की समीक्षा बैठक में मायावती क्या निर्णय करती हैं, आकाश आनंद के भविष्य को लेकर उन्होंने क्या तय किया है, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। 

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