उपभोक्ता परिषद ने कहा कि इस तरह देखा जाए तो निजीकरण के गिने-चुने प्रयोग ही पूरे देश में सफल है। अवधेश वर्मा ने कहा कि टाटा और अडानी मुंबई में कितना सफल हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी घरेलू बिजली दरें अधिकतम लगभग 15.71 रुपये प्रति यूनिट तक हैं।
UPPCL Privatisation : देश में ऊर्जा सेक्टर के निजीकरण के 12 प्रयोग फेल, एग्रीमेंट टर्मिनेट-लाइसेंस करना पड़ा कैंसिल
Dec 20, 2024 18:50
Dec 20, 2024 18:50
एनर्जी टास्क फोर्स से मंजूर प्रस्ताव में कई विधिक और वित्तीय अड़चन
उपभोक्ता परिषद ने कहा कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के जिस प्रस्ताव पर एनर्जी टास्क फोर्स ने मुहर लगाई है, उसमें कई विधिक व वित्तीय अड़चन है। इस वजह से इसे लागू करना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। ऐसे में कारपोरेशन नया कंसलटेंट तलाश जा रहा है, जो इन अड़चनों से उसे बचा सके। संगठन ने कहा कि ऐसी कोशिशों से बेहतर है कि एक बार फिर बिजली कंपनियों में ही सुधार की दिशा में प्रयास किए जाएं। संगठन ने कहा है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजीकरण का प्रस्ताव हर हाल में खारिज होना चाहिए, क्योंकि इसमें सिर्फ निजी घरानों का हित है।
इस तरह सरकारी सेक्टर को निजी हाथों में सौंपने के हुए प्रयास
संगठन के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने शुक्रवार को 1993 से लेकर वर्ष 2017 तक के सभी प्राइवेट सेक्टर में दिए गए बिजली निगमों व डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी को को लेकर गहन समीक्षा के आधार पर तथ्य सरकार के सामने पेश किए। इसमें बताया गया कि 1993 में नोएडा पावर कंपनी उत्तर प्रदेश में प्राइवेट सेक्टर में दी गई, जो हमेशा से विवादों में रही और आज भी उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में उसके लाइसेंस को खत्म करने की याचिका दाखिल कर लड़ाई लड़ रही है। वहीं 1999 में उड़ीसा में तीन बिजली कंपनियों को बीएसईएस रिलायंस को दिया गया और एक कंपनी को एईस एवं ज्योति इंफ्रास्ट्रक्चर को दिया गया। सभी फेल साबित हुए और आखिरकार उनका लाइसेंस टर्मिनेट करना पड़ा। इसी प्रकार से 2012 में सागर में एक फ्रेंचाइजी एस्सेल को दी गई। जलगांव में 2011 में एक फ्रेंचाइजी क्रैंपटन ग्रीव्स को दी गई। वहीं 2014 में उज्जैन में एक फ्रेंचाइजी एस्सेल को दी गई और औरंगाबाद में 2011 में एक फ्रेंचाइजी जीटीएल को दी गई। मुजफ्फरपुर में एक फ्रेंचाइजी एस्सेल को दी गई। गया में एक फ्रैंकोइस 2014 में इंडिया पावर और भागलपुर में एक फ्रेंचाइजी एसपीएमएल इंफ्रा को सौंपी दी गई। इसी तर्ज पर नागपुर में एक फ्रेंचाइजी 2011 में एसएनपीएल को दी गई।
निजीकरण से उठाना पड़ा है यूपीपीसीएल को घाटा
अहम बात है कि सभी का एग्रीमेंट टर्मिनेट या लाइसेंस कैंसिल करना पड़ा। इस तरह निजी क्षेत्र के सभी वितरण फ्रेंचाइजी को निरस्त या टर्मिनेट करने को कदम उठाया गया। आगरा में वितरण फ्रेंचाइजी टोरेंट पावर को दी गई है। उस पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं। उसने उपभोक्ताओं के 2022 करोड़ वसूलने के बाद आज तक पावर कारपोरेशन को नहीं दिया है।
निजीकरण के गिने-चुने प्रयोग ही सफल, आसमान छूने वाली हैं बिजली दरें
उपभोक्ता परिषद ने कहा कि इस तरह देखा जाए तो निजीकरण के गिने-चुने प्रयोग ही पूरे देश में सफल है। अवधेश वर्मा ने कहा कि टाटा और अडानी मुंबई में कितना सफल हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी घरेलू बिजली दरें अधिकतम लगभग 15.71 रुपये प्रति यूनिट तक हैं और उत्तर प्रदेश में अधिकतम घरेलू बिजली दर 6.50 रुपये प्रति मिनट तक हैं। इसी प्रकार वर्तमान में ओडिशा में टाटा पावर किस प्रकार से उपभोक्ता सेवा कर रहा है। ये इसी से पता चलता है कि एक किलोवाट वाले गरीब उपभोक्ता को भी 4000 रुपये में बिजली कनेक्शन दिया जा रहा है। ऐसे में निजी घरानों की मंशा जगजाहिर है।
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