परिषद ने सवाल उठाया कि उत्तर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33,122 करोड़ रुपये का सरप्लस निकल रहा है। यदि भविष्य में निजी घराने इस क्षेत्र में आते हैं, तो क्या वे इसकी भरपाई करेंगे? साथ ही प्रदेश सरकार वर्तमान में दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को क्रमशः 3716 करोड़ रुपये और 3463 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है।
UPPCL : पूर्वांचल-दक्षिणांचल के निजीकरण के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल, उपभोक्ताओं के सरप्लस से लेकर सब्सिडी का उठाया मुद्दा
Nov 27, 2024 16:29
Nov 27, 2024 16:29
निजीकरण पर नियामक आयोग की अनदेखी का आरोप
उपभोक्ता परिषद ने कहा कि 2013 में विद्युत नियामक आयोग ने निर्देश दिया था कि किसी भी निजीकरण या फ्रैंचाइजी की प्रक्रिया से पहले आयोग को बताना होगा कि इसके चयन का आधार क्या है और इससे प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं को क्या लाभ होगा। इसके बावजूद यूपीपीसीएल ने बिना आयोग की सहमति के निजीकरण की घोषणा की है, जो नियामक आयोग के अवमानना का मामला है।
सब्सिडी और टैरिफ को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं
परिषद ने सवाल उठाया कि उत्तर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33,122 करोड़ रुपये का सरप्लस निकल रहा है। यदि भविष्य में निजी घराने इस क्षेत्र में आते हैं, तो क्या वे इसकी भरपाई करेंगे? साथ ही प्रदेश सरकार वर्तमान में दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को क्रमशः 3716 करोड़ रुपये और 3463 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है। परिषद ने पूछा कि इस संबंध में क्या होगा? क्या सरकार सब्सिडी निजी कंपनियों को देगी? संगठन ने मुंबई में टाटा और अडानी की बिजली दरों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 101 से 300 यूनिट तक 11.46 रुपये, 301 से 500 यूनिट पर 15.72 रुपये और 500 यूनिट के ऊपर 17.81 रुपये की दरें हैं, तो क्या उत्तर प्रदेश में भी 15 से 20 रुपए का टैरिफ उपभोक्ताओं को देना पड़ेगा।
आरडीएसएस योजना और सुधार कार्य का जिक्र
उत्तर प्रदेश में सभी बिजली कंपनियों के लिए आरडीएसएस योजना के तहत 42968 करोड़ रुपये के कार्य किए जा रहे हैं। इसमें पूर्वांचल के लिए 8759 करोड़ और दक्षिणांचल के लिए 12300 करोड़ रुपये खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार बिजनेस प्लान में भी पूर्वांचल में लगभग 1204 करोड़ और दक्षिणांचल में लगभग 1190 करोड़ का काम सुधार के लिए कराया जाएगा। उपभोक्ता परिषद ने कहा कि ऐसे में नियामक आयोग इस पर विचार करें कि करोड़ों अरबों रुपये खर्च करके कंपनी की हालत को सुधार करके टाटा, रिलायंस, अडानी, टोरेंट या किसी अन्य निजी घराने को बेचना क्या उद्योगपतियों के पक्ष में निर्णय करने वाला नहीं होगा। परिषद ने इसे 'पुरानी गाड़ी में नया इंजन लगाकर पुरानी गाड़ी के भाव में बेचना' जैसा बताया। संगठन ने कहा कि जिस प्रकार से यूपीपीसीएल प्रबंधन टाटा का गुणगान कर रहा है, उससे ऐसा लगता है की ट्रिपल पी फिक्सिंग होने वाली है जो उपभोक्ता परिषद नहीं होने देगा।
टाटा पावर पर आरोप
परिषद में आयोग के सामने मुद्दा उठाया कि जब जेपी के पावर हाउस को टाटा ने खरीदा और हेयर कट ऑफ में 14 पैसे प्रति यूनिट का लाभ उपभोक्ताओं को टाटा को देने का आदेश जारी हुआ, तो टाटा पावर ने 14 पैसे उपभोक्ताओं को लाभ न देकर उसे मुकदमेबाजी में फंसा दिया। इससे पता चल सकता है कि टाटा पावर केवल लाभ कमाने वाली मशीन है यह उपभोक्ताओं की शुभचिंतक नहीं है।
24 साल में घाटे की भारी वृद्धि
परिषद ने यह भी बताया कि 1959 में बनी राज विद्युत परिषद के कुल घाटे की तुलना में आज यूपीपीसीएल का घाटा 77 करोड़ से बढ़कर 1.10 लाख करोड़ हो गया है। परिषद ने कहा कि 2000 तक जब इंजीनियरों के हाथ में बागडोर थी, तो घाटा केवल 10,000 करोड़ था। ऐसे में इसको तबाह करने में नौकरशाह का हाथ है या अभियंता का इसकी भी जांच होनी चाहिए।
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