उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि यह जो भी लाइन व ट्रांसमिशन सबस्टेशन तैयार किया जा रहे हैं, उसमें कहीं ना कहीं जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट व डाटा सेंटर सहित अनेक उद्योग घरानों का फायदा होने वाला है। ऐसे में उसकी भरपाई प्रदेश के उपभोक्ता क्यों करेंगे?
UPPCL : जेवर, तिर्वा और मेरठ शामली पावर ट्रांसमिशन लिमिटेड ने मांगे लाइसेंस, उपभोक्ता परिषद ने निजीकरण का हवाला देकर फंसाया पेंच
Jan 15, 2025 16:52
Jan 15, 2025 16:52
ट्रांसमिशन लाइसेंस देने को लेकर सार्वजनिक सुनवाई, टीएसए पर साधी चुप्पी
जेवर ट्रांसमिशन लिमिटेड, तिर्वा ट्रांसमिशन लिमिटेड और मेरठ शामली पावर ट्रांसमिशन लिमिटेड की याचिका पर बुधवार को विद्युत नियामक आयोग में विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 व 15 के तहत ट्रांसमिशन लाइसेंस दिए जाने को लेकर सार्वजनिक सुनवाई हुई। इस दौरान नियामक आयोग अध्यक्ष अरविंद कुमार व सदस्य संजय कुमार सिंह के सामने तीनों निजी कंपनियों की तरफ से उनके अधिवक्ताओं ने अपनी बात रखी और ट्रांसमिशन लाइसेंस देने की मांग की। इस दौरान उपभोक्ता परिषद की तरफ से विधिक सवाल उठाया गया कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को निजी हाथों में सौंपने के लिए टेंडर निकाला जा चुका है और दोनों कंपनियों ने 35 साल का ट्रांसमिशन सर्विस एग्रीमेंट (टीएसए) साइन किया है। ऐसे में उसका क्या होगा, इस पर सभी ने चुप्पी साध ली है।
ट्रांसमिशन लाइन व ट्रांसमिशन सबस्टेशन के खर्च की उपभोक्ताओं से वसूली
प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की तरफ से जनहित में अपनी बात रखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि सबसे पहले यह स्पष्ट होना चाहिए कि ट्रांसमिशन लाइन व ट्रांसमिशन सबस्टेशन को लेकर तीनों निजी घरानों जेवर ट्रांसमिशन लिमिटेड ने लगभग 713 करोड़, मेरठ शामली पावर ट्रांसमिशन लिमिटेड ने लगभग 164 करोड़ और तिर्वा ट्रांसमिशन लिमिटेड ने लगभग 136 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसे उत्तर प्रदेश पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड (UPPTCL) सहित बिजली कंपनियों को वहन करना होगा, जो पूरी तरह उपभोक्ताओं से लिया जाएगा। इस पर उपभोक्ता परिषद कुछ विधिक सवाल उठाए हैं।
विद्युत नियामक आयोग से सभी दस्तावेज तलब करने की मांग
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि इसकी अदायगी आखिरकार प्रदेश की सभी पांचों विद्युत वितरण कंपनियों को करना होगी, क्योंकि उनकी तरफ से ट्रांसमिशन सर्विस एग्रीमेंट (टीएसए) पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जो लगभग 35 वर्ष के लिए हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में इनमें से दो बिजली कंपनी पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को निजी क्षेत्र में दिए जाने के लिए ट्रांजैक्शन एडवाइजर (कंसल्टेंट) का विज्ञापन पब्लिक डोमेन में आ चुका है। सबसे पहले विद्युत नियामक आयोग को यह बिजली कंपनियों से पूछना होगा कि जब वह अपने को बेच रही है तो आने वाले समय में उसकी भरपाई कौन करेगा और ऐसे में विद्युत नियामक आयोग को सभी दस्तावेज तलब करने चाहिए। बिना विद्युत नियामक आयोग की अनुमति के बिजली कंपनियों को बेचने का खेल असंवैधानिक है और पारदर्शी नीति का उल्लंघन है।
पीपीपी मॉडल और ट्रांसमिशन लाइसेंस पर सुनवाई एकसाथ कैसे संभव?
उपभोक्ता परिषद लगातार इसकी मांग विद्युत नियामक आयोग से कर रहा है। कई बार प्रस्ताव भी विद्युत नियामक आयोग में आपत्ति स्वरूप दाखिल कर चुका है। लेकिन, विद्युत नियामक आयोग चुप है। ये बेहद गंभीर मामला है, वर्तमान में एक तरफ बिजली कंपनी को निजी क्षेत्र में दिए जाने का प्लान बनाया जा रहा है, दूसरी तरफ यहां ट्रांसमिशन लाइसेंस पर सुनवाई हो रही है। दोनों अपने आप में गंभीर सवाल हैं। विद्युत नियामक आयोग को इस पर हस्तक्षेप करके अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उपभोक्ता हित में निर्णय करना होगा। विद्युत नियामक आयोग या तो निजीकरण की प्रक्रिया या ट्रांसमिशन लाइसेंस की प्रक्रिया पर रोक लगाए। दोनों ही स्तर पर निर्णय उसे ही करना है। दोनों बातें एक साथ संभव नहीं हैं।
निजी घरानों के फायदे के लिए तैयार जा रही लाइन व डाटा सेंटर का बोझ उपभोक्ताओं पर
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि यह जो भी लाइन व ट्रांसमिशन सबस्टेशन तैयार किया जा रहे हैं, उसमें कहीं ना कहीं जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट व डाटा सेंटर सहित अनेक उद्योग घरानों का फायदा होने वाला है। ऐसे में उसकी भरपाई प्रदेश के उपभोक्ता क्यों करेंगे? जब प्रदेश का उपभोक्ता एक खंभे की लाइन का खर्च खुद वहन करता है, तो वर्तमान में जेवर एयरपोर्ट के लिए बन रही लाइन व डाटा सेंटर के लिए बना रही लाइन के करोड़ों रुपये का खर्च अगले 35 वर्षों तक वह क्यों वहन करेगा? इस पर विद्युत नियामक आयोग को गंभीरता से विचार करना होगा और इस प्रकार के खर्च को उपभोक्ताओं पर कतई नहीं डाला जाए। उन्होंने कहा कि कानून इसके लिए डेडिकेटेड ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण होना चाहिए था, जबकि सार्वजनिक लाइन बनाकर उत्तर प्रदेश में उसका भुगतान आम जनता से लेने की तैयारी की जा रही है, जिसे उपभोक्ता परिषद स्वीकार नहीं करेगा।
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