प्रदेश में अभी कुछ माह पहले बिजली चोरी के राजस्व निर्धारण पर 65 प्रतिशत तक छूट देकर करोड़ों के राजस्व निर्धारण को माफ किया जा चुका है। देखा जाए तो यह लोकसभा में पारित विद्युत अधिनियम 2003 का खुला उल्लंघन था। इसके बावजूद अधिकारियों ने नियम कानून की परवाह नहीं की।
UPPCL बिजली चोरों पर मेहरबान : कनेक्शन देने को नियामक आयोग के फैसले से पहले आदेश किया जारी, विरोध प्रस्ताव दाखिल
Oct 15, 2024 18:39
Oct 15, 2024 18:39
बिजली चोरी की एफआईआर से संबंधित है मामला
प्रदेश में अभी कुछ माह पहले बिजली चोरी के राजस्व निर्धारण पर 65 प्रतिशत तक छूट देकर करोड़ों के राजस्व निर्धारण को माफ किया जा चुका है। देखा जाए तो यह लोकसभा में पारित विद्युत अधिनियम 2003 का खुला उल्लंघन था। इसके बावजूद अधिकारियों ने नियम कानून की परवाह नहीं की। वहीं अब पावर कारपोरेशन ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से 4 किलोवाट तक के घरेलू व वाणिज्यिक विद्युत उपभोक्ता के मामले में नियम विरुद्ध काम कराया है। इसमें ऐसे उपभोक्ता, जिनके विरुद्ध पूर्व की विद्युत चोरी के प्रकरणों के विरुद्ध लंबित बकाया है या एफआईआर दर्ज है, उनसे सादा पेपर पर इस आशय का घोषणा पत्र लेने को कहा गया है, कि जो भी नीतिगत निर्णय होगा उन्हें मान्य होगा।
बिजली चोरी के मामलों में दिया जा सकेगा नया कनेक्शन
इसके आधार पर उन्हें नया संयोजन दे दिया जाएगा। ये कदम इसलिए उठाया गया है, क्योंकि बकाया पर बिजली का कनेक्शन नहीं मिल सकता। ऐसा विद्युत वितरण संहिता 2005 में कानून बनाया गया है। इसके तहत केवल किस्तों की सुविधा अनुमान्य है। पावर कारपोरेशन ने 30 सितंबर 2024 को विद्युत नियामक आयोग के सामने एक प्रस्ताव निदेशक वाणिज्य की तरफ से दाखिल किया और कहा कि विद्युत वितरण संहिता 2005 की धारा 8.1 में संशोधन करते हुए यह नया कानून बनाया जाए।
नियामक आयोग ने अब तक नहीं किया फैसला
सबसे चौंकाने वाला मामला यह है कि विद्युत नियामक आयोग ने अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं किया। इसी बीच 14 अक्टूबर को पावर कारपोरेशन के निदेशक वाणिज्य की तरफ से या आदेश जारी कर दिया गया कि 4 किलोवाट तक के बिजली चोरी के मामले में सादे कागज पर घोषणा पत्र देने के बाद कनेक्शन दे दिया जाए। उपभोक्ता परिषद ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि क्या पावर कारपोरेशन को विद्युत नियामक आयोग का भी अधिकार मिल गया है। यह विद्युत नियामक आयोग के आदेशों का खुला उल्लंघन है।
नियामक आयोग से हस्तक्षेप की मांग
उपभोक्ता परिषद ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से भी मांग उठाई है कि इस गंभीर मामले पर वह अपने स्तर से हस्तक्षेप करें क्योंकि एक संवैधानिक संस्था के अधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है, जो रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत असंवैधानिक परिपाटी है। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने इस मामले में विद्युत नियामक आयोग के सामने एक विरोध प्रस्ताव दाखिल किया है। इसमें कहा गया है कि बिजली कंपनियों को किसने यह अधिकार दे दिया कि वह विद्युत नियामक आयोग में प्रकरण दाखिल करने के बाद उसे पर खुद निर्णय कर लेती हैं।
बीपीएल के मामले को लेकर पहले जारी हो चुका आदेश
उपभोक्ता परिषद ने इसे विद्युत नियामक आयोग के अधिकारों का खुला हनन करार देते हुए पावर कारपोरेशन प्रबंधन के खिलाफ विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 142 के तहत कठोर कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही कहा कि इसके पहले जब बिजली कंपनियों ने विद्युत नियामक आयोग के अनुमति के एक किलोवाट तक का आदेश जारी किया था, उसे समय बताया गया कि यह बीपीएल का मामला है। इसलिए उस पर कोई नहीं बोला। लेकिन, अब तो हद हो गई 4 किलोवाट तक के घरेलू और वाणिज्यिक सभी के लिए व्यवस्था लागू कर दी गई है।
मुख्यमंत्री से शिकायत करेगा उपभोक्ता परिषद
अवधेश वर्मा ने कहा कि आने वाले समय में अगर इसी तरह संवैधानिक संस्था नियामक आयोग चुप रही तो फिर पावर कारपोरेशन एक दिन टैरिफ आदेश भी जारी कर देगा। उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि इस प्रकार के अनाप-शनाप निर्णय से सरकार की छवि धूमिल हो रही है। बहुत जल्दी उपभोक्ता परिषद मुख्यमंत्री से इसकी शिकायत करेगा।
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