पावर कारपोरेशन भारी भरकम टर्नओवर के आधार पर कंसल्टेंट यानी ट्रांजैक्शन एडवाइजर की खोज कर रहा है। जबकि हकीकत है कि देश के बड़े निजी घराने जो उत्तर प्रदेश के वितरण क्षेत्र को लेना चाहते हैं, वह सभी कहीं न कहीं भारी भरकम टर्नओवर वाले कंसल्टेंट के साथ पहले से ही किसी न किसी प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं।
UPPCL PPP Model : ट्रांजैक्शन एडवाइजर की खोज-निजी घराने पहले ही डाल चुके डोरे, ARR दाखिल होने के बाद फैसले पर उठे सवाल
Jan 02, 2025 18:47
Jan 02, 2025 18:47
एआरआर दाखिल होने के बाद साल भर करना होगा बिजली कंपनियों को कारोबार
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने कहा है कि जिस प्रक्रिया को अफसर तेजी से अंतिम रूप देने में लगे हैं, वह पूरी तरह गलत है। एक तरफ दक्षिणांचल और पूर्वांचल सहित सभी बिजली कंपनियों की तरफ से वर्ष 2025-26 की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) विद्युत नियामक आयोग में दाखिल हो चुकी है, उससे ये साबित होता है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए सभी बिजली कंपनियां अपना व्यवसाय करेंगी। किसी भी बिजली कंपनी ने विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 19(3) के तहत रेवोकेशन ऑफ लाइसेंस विद्युत नियामक आयोग में नहीं दाखिल किया है। इसका सीधा अर्थ है कि सभी बिजली कंपनियां अपना काम वर्ष 2025-26 के वित्तीय वर्ष में सफलतापूर्वक करेंगी। क्योंकि इन्हें विद्युत नियामक आयोग ने विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 के तहत लाइसेंस दिया है। ऐसे में पावर कॉरपोरेशन ट्रांजैक्शन एडवाइजर नियुक्त करने की जिस प्रक्रिया में लगा है, वह पूरी तरह से नियम विरुद्ध है।
निजी घरानों से पहले से ही जुड़े हुए हैं कंसल्टेंट
अहम बात है कि पावर कारपोरेशन भारी भरकम टर्नओवर के आधार पर कंसल्टेंट यानी ट्रांजैक्शन एडवाइजर की खोज कर रहा है। जबकि हकीकत है कि देश के बड़े निजी घराने जो उत्तर प्रदेश के वितरण क्षेत्र को लेना चाहते हैं, वह सभी कहीं न कहीं भारी भरकम टर्नओवर वाले कंसल्टेंट के साथ पहले से ही किसी न किसी प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। ऐसे में जब कंप्लीट आप इंटरेस्ट का मामला आएगा तब क्या होगा, इसके बारे में भी अफसरों को सोचना चाहिए।
एनर्जी टास्क फोर्स में मंजूरी के बाद फिर क्यों बदलना पड़ रहा है मसौदा
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि इसके पहले भी पावर कारपोरेशन ने एक कंसलटेंट रखकर उसके आधार पर एनर्जी टास्क फोर्स में प्रस्ताव दाखिल किया था। मामला राज्य की कैबिनेट को रखा जाना था। आखिर ऐसा क्या हो गया कि उसे एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में किए गए निर्णय से इतर अब फिर नए सिरे से प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए ट्रांजैक्शन एडवाइजर की खोज करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि वास्तव में उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों को निजीकरण करने के लिए जिस प्रक्रिया का प्रयोग किया जा रहा है, उससे प्रदेश के उपभोक्ता, किसान, नौजवान बेरोजगार, कार्मिक किसी का भला नहीं होने वाला है। इतना जरूर है कि देश और प्रदेश के उद्योगपतियों का बड़ा लाभ होना तय है, क्योंकि वर्तमान में पूरे देश के कुछ चुनिंदा उद्योगपति उत्तर प्रदेश के वितरण क्षेत्र को लेने के लिए पूरी तरह जुगत में लगे हैं।
निजीकरण जल्दबाजी की नहीं लंबी प्रक्रिया
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि पावर कारपोरेशन व प्रदेश की बिजली कंपनियों को मान लेना चाहिए कि ये उनके बस की बात नहीं है। निजीकरण बच्चों का खेल नहीं होता है। वास्तव में यह एक लंबी प्रक्रिया होती है। वर्ष 1959 में बने राज्य विद्युत परिषद के साथ इस प्रकार का जो बच्चों वाला खेल किया जा रहा है, ये उचित नहीं है। पावर कारपोरेशन जब चाहे उपभोक्ता परिषद उसको कानूनी तकनीकी और वित्तीय पहलुओं पर सलाह देने के लिए तैयार है। संगठन पूरी तरह सिद्ध कर देगा कि निजीकरण से प्रदेश की जनता का कोई भी लाभ नहीं होने वाला है।
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