ऊर्जा क्षेत्र में अखिलेश यादव सरकार में वर्ष 2013-14 में गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ व कानपुर शहरों के विद्युत वितरण क्षेत्र को पीपीपी मॉडल के तहत निजीकरण किए जाने के लिए प्रदेश सरकार ने कंसलटेंट यानी ट्रांजैक्शन एडवाइजर चयन करने की अनुमति दी थी।
UPPCL Privatisation : अखिलेश सरकार में ट्रांजैक्शन एडवाइजर पर घुटने टेक चुके हैं अफसर, दोबारा कोशिशें नाकाम होने की चेतावनी
Jan 03, 2025 17:34
Jan 03, 2025 17:34
पीपीपी मॉडल का पुराना अनुभव : गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ और कानपुर का प्रकरण
ऊर्जा क्षेत्र में अखिलेश यादव सरकार में वर्ष 2013-14 में गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ व कानपुर शहरों के विद्युत वितरण क्षेत्र को पीपीपी मॉडल के तहत निजीकरण किए जाने के लिए प्रदेश सरकार ने कंसलटेंट यानी ट्रांजैक्शन एडवाइजर चयन करने की अनुमति दी थी। इसके तहत पावर कारपोरेशन ने मैसर्स मेकॉन लिमिटेड को पीपीपी मॉडल लागू करने के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) तैयार करने व फिजिबिलिटी स्टडी के लिए रखा गया था।
उपभोक्ता परिषद ने दर्ज कराया था विरोध
इसकी भनक लगते ही बाद उपभोक्ता परिषद ने उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) में अवमानना याचिका दाखिल करते हुए पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष के खिलाफ विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 142 के तहत कार्रवाई की मांग की थी। आखिरकार विद्युत नियामक आयोग ने नोटिस जारी किया और उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी बताया कि यह पीपीपी मॉडल उपभोक्ताओं के हित में नहीं है, इसलिए जो कंसलटेंट रखा गया है वह गलत है।
मेकॉन लिमिटेड की स्टडी और पावर कारपोरेशन का रुख
इसके बाद बैकफुट में आते हुए पावर कारपोरेशन की तरफ से विद्युत नियामक आयोग में जवाब दाखिल किया गया कि मैसर्स मेकॉन लिमिटेड ने जो कंसलटेंट रखे गए हैं, उनसे तैयार फिजिबिलिटी रिपोर्ट में उपभोक्ता परिषद की मांग को शामिल किया गया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सबसे पहले अध्ययन कराया जाए कि पीपीपी मॉडल से उपभोक्ताओं को क्या फायदा होगा और क्या नुकसान होगा। पावर कारपोरेशन ने तब कहा कि केवल फिजिबिलिटी रिपोर्ट बनवाई जा रही है। पीपीपी मॉडल लागू नहीं किया जा रहा है, अभी स्टडी है, इसलिए पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष के खिलाफ अवमानना याचिका पर कार्रवाई उचित नहीं है।
42 जनपदों के लिए नई कोशिश पर उठे सवाल
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि आखिरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उस समय यह मान लिया था कि पीपीपी मॉडल से प्रदेश के उपभोक्ताओं का लाभ नहीं होने वाला है और आखिरकार पूरा मामला ठंडे बस्ते में में चला गया। उपभोक्ता परिषद ने एक बार पुनः उत्तर प्रदेश सरकार व पावर कारपोरेशन से मांग है कि प्रदेश के जिन 42 जनपदों वाली दो बिजली कंपनियों दक्षिणांचल व पूर्वांचल को पीपीपी मॉडल में दिए जाने के लिए कंसलटेंट यानी की ट्रांजैक्शन एडवाइजर रखने की तैयारी की जा रही है, उसे खारिज किया जाना ही उचित होगा।
पुराना सबक और नई चेतावनी
उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए जरूरी है, क्योंकि प्रदेश में पहले ही इस प्रयोग पर एक स्टडी रिपोर्ट मेसर्स मेकॉन लिमिटेड से तैयार कराई गई थी। सब विचार करने के बाद उत्तर प्रदेश में पीपीपी मॉडल को लागू नहीं किया गया। ऐसे में अभी भी समय है कि पावर कारपोरेशन कंसलटेंट पर करोड़ों अरबों खर्च करने से पीछे हटे। इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।
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