UPPCL Privatisation : 13 जनवरी को काली पट्टी बांधकर विरोध, 42 जिलों में आरक्षण समाप्त होने को लेकर अभियंता भड़के

13 जनवरी को काली पट्टी बांधकर विरोध, 42 जिलों में आरक्षण समाप्त होने को लेकर अभियंता भड़के
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Jan 10, 2025 19:48

एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में कंसल्टेंट का प्रस्ताव पास होते ही शुक्रवार को पूरे प्रदेश में दलित व पिछड़ा वर्ग के अभियंताओं में भारी रोष देखने को मिला। सभी ने सर्वसम्मति से तय किया कि इस आंदोलन को बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर की संवैधानिक व्यवस्था के सम्मान से जोड़कर आंदोलन को आगे बढ़ाया जाएगा, क्योंकि निजीकरण लागू होते ही पूरे प्रदेश में लगभग 42 जनपदों से आरक्षण समाप्त हो जाएगा।

Jan 10, 2025 19:48

Lucknow News : प्रदेश में बिजलीकर्मियों ने शुक्रवार को 'विरोध दिवस' मनाकर सरकार के निजीकरण के फैसले के खिलाफ अपनी नाराजगी जताई। लखनऊ, वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, प्रयागराज समेत कई शहरों में जोरदार विरोध सभाएं हुईं। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश के आह्वान पर यह प्रदर्शन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में बिजली कर्मचारी जुटे। वहीं उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने भी आर या पार की लड़ाई की घोषणा कर दी है। संगठन आरक्षण के मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि निजीकरण न सिर्फ उपभोक्ताओं, ​बल्कि कर्मचारियों और अभियंताओं के लिए भी हितकारी नहीं है।  

किसी भी सूरत में निजीकरण बर्दाश्त नहीं, 13 जनवरी को काली पट्टी बांधकर विरोध करेंगे अभियंता
उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PuVVNL) को पीपीपी मॉडल में दिए जाने के लिए ट्रांजैक्शन एडवाइजर (कंसल्टेंट) चयन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के विरोध में शनिवार को प्रांतीय कार्य समिति की बैठक बुलाई है। इसमें करो-मरो की तर्ज पर आरक्षण को बचाने के लिए आंदोलन की घोषणा की जाएगी। संगठन ने शुक्रवार को कहा कि किसी भी सूरत में निजीकरण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दलित और पिछड़ा वर्ग के अभियंता 13 जनवरी को पूरे प्रदेश में काली पट्टी बांधकर निजीकरण की प्रक्रिया का विरोध करेंगे और अवकाश में जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर उनसे सहयोग मांगेंगे। इसके साथ ही उपभोक्ताओं के बीच में भी जाकर उन्हें बताया जाएगा कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान उपभोक्ताओं का होने वाला है।



42 जनपदों में खत्म हो जाएगा आरक्षण
एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में कंसल्टेंट का प्रस्ताव पास होते ही शुक्रवार को पूरे प्रदेश में दलित व पिछड़ा वर्ग के अभियंताओं में भारी रोष देखने को मिला। सभी ने सर्वसम्मति से तय किया कि इस आंदोलन को बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर की संवैधानिक व्यवस्था के सम्मान से जोड़कर आंदोलन को आगे बढ़ाया जाएगा, क्योंकि निजीकरण लागू होते ही पूरे प्रदेश में लगभग 42 जनपदों से आरक्षण समाप्त हो जाएगा। एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा महासचिव, अनिल कुमार, संगठन सचिव बिंद्रा प्रसाद, ट्रांसमिशन अध्यक्ष सुशील कुमार वर्मा, बनवारी लाल, एम प्रभाकर, अजय कुमार, नेकीराम ने कहा जिस प्रकार से निजीकरण की प्रक्रिया को एक बार पुनः आगे बढ़ाने के लिए पावर कारपोरेशन आगे आ रहा है उससे स्पष्ट हो रहा है कि पावर कारपोरेशन ने दलित व पिछड़े वर्गों के लिए लागू आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त करने का प्लान बना लिया है, जिसे संगठन सफल नहीं होने देगा।

13 जनवरी को काली पट्टी बांधकर विरोध, ऊर्जा मुख्यालय में बड़ी संख्या में कर्मचारियों का विरोध
इसके साथ ही संघर्ष समिति ने भी घोषणा की कि बिजलीकर्मी 13 जनवरी को काली पट्टी बांधकर विरोध जताएंगे। इसके अलावा, अवकाश के दिनों में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन और गांवों में जनजागरण अभियान चलाएंगे। इन अभियानों का उद्देश्य उपभोक्ताओं और किसानों को निजीकरण के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना है। शक्ति भवन में आयोजित सभा में हजारों बिजलीकर्मियों ने हिस्सा लिया। समिति के प्रमुख नेताओं ने सभा में कहा कि निजीकरण के विरोध में यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती। समिति के पदाधिकारी राजीव सिंह, जितेंद्र सिंह गुर्जर, रणवीर सिंह, और अन्य ने निजीकरण को पूरे ऊर्जा क्षेत्र के लिए खतरनाक बताया।

निजीकरण से सभी कर्मचारियों पर संकट
बिजलीकर्मी नेताओं ने चेताया कि निजीकरण के इस फैसले से 76,000 से अधिक कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि अगर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम निजी कंपनियों को सौंपे गए, तो पूरे प्रदेश में बिजली वितरण का निजीकरण हो जाएगा। इससे 50,000 संविदा कर्मियों और 26,000 नियमित कर्मचारियों की छंटनी की संभावना है।

गरीब और किसान होंगे प्रभावित, कर्मचारी और उपभोक्ता दोनों के लिए नुकसान
संघर्ष समिति ने कहा कि बिजली के निजीकरण से गरीब और किसान सबसे अधिक प्रभावित होंगे। निजी कंपनियां लाभ बढ़ाने के लिए बिजली की दरों में बढ़ोतरी कर सकती हैं, जिससे आम जनता पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा। संघर्ष समिति के मुताबिक, निजीकरण के कारण न केवल कर्मचारियों की छंटनी होगी बल्कि बिजली के बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता भी खराब हो सकती है। निजी कंपनियां केवल मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करेंगी, जिससे ग्रामीण और कम लाभ वाले क्षेत्रों की उपेक्षा हो सकती है।

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