Meerut News : कीट एवं रोग नियंत्रण को आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन से फसलों को बचाएं

कीट एवं रोग नियंत्रण को आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन से फसलों को बचाएं
UPT | फसलों में प्रतिवर्ष कीट रोग एवं खरपतवारों से होने वाली क्षति

May 14, 2024 14:59

ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के साथ-साथ भूमि शोधन एवं बीज शोधन को अपनाया जाना नितांत आवश्यक है। इससे कीट, रोग एवं खरपतवार का प्रकोप कम होने के साथ उत्पादन...

May 14, 2024 14:59

Short Highlights
  •  फसलों को ग्रीष्मकालीन कीट रोग एवं खरपतवार के प्रकोप से बचाने हेतु सुझाव
  • खरपतवारों की सफाई से किनारों की प्रभावित फसलों के बीच खाद एवं उर्वरकों की प्रतिस्पर्धा कम 
  • खेत की कठोर परत को तोड़ कर मृदा को जड़ों के विकास के लिए अनुकूल 
Meerut News : उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) मेरठ मण्डल मेरठ अशोक कुमार यादव ने किसानों को अवगत कराते हुये बताया कि फसलों में प्रतिवर्ष कीट रोग एवं खरपतवारों से होने वाली क्षति एवं कृषि रक्षा रसायनों के अविवेकपूर्ण प्रयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के दृष्टिगत परम्परागत कृषि विधियों यथा-मेडों की साफ-सफाई, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के साथ-साथ भूमि शोधन एवं बीज शोधन को अपनाया जाना नितांत आवश्यक है। इससे कीट, रोग एवं खरपतवार का प्रकोप कम होने के साथ उत्पादन में वृद्धि होती है तथा कृषकों की उत्पादन लागत कम होने से उनकी आय में वृद्धि होती है। इन विधियों को अपनाने से पर्यावरणीय प्रदूषण भी कम होता है। कीट एवं रोग नियंत्रण को आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आईपीएम) के अन्तर्गत भी इन परम्परागत विधियों को अपनाने पर बल दिया जाता है। ग्रीष्मकालीन कीट, रोग एवं खरपतवार प्रबच्चन मानसून आने से पूर्व मई-जून महीने में किया जाता है।

प्रभावित फसलों के बीच खाद एवं उर्वरकों की प्रतिस्पर्धा
मेडों की साफ सफाई-मेडों पर उगने वाले खरपतवारों की सफाई से किनारों की प्रभावित फसलों के बीच खाद एवं उर्वरकों की प्रतिस्पर्धा कम होती है, खरपतवारों को आगामी बोयी जाने वाली फसल में फैलने से रोका जा सकता है, मेडों पर उगे हुए खरपतवारों को नष्ट करने से हानिकारक कीटों एवं सूक्ष्य जीवों के आश्रय नष्ट हो जाते है। जिससे अगली फसल में इनका प्रकोप कम हो जाता है, सिंचाई के जल को खेत में रोकने में सहायता मिलती है।
ग्रीष्मकीन गहरी जुताई- ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है जिससे मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ती है जो फसलों के बढ़वार के लिए उपयोगी होती है, खेत की कठोर परत को तोड़ कर मृदा को जड़ों के विकास के लिए अनुकूल बनाने हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई अत्याधिक लाभकारी है, खेत में उगे हुए खरतपवार एवं फसल अवशेष गिट्टी में दबकर सड़ जाते है।

गहरी जुताई के बाद खरपतवारों जैसे-पत्थर चट्टा, जंगली चौलाई
जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है, मृदा के अन्दर छिपे हुए हानिकारक कीट जैसे दीमक, सफेद गिडार, कटुआ, बीटिल एवं मैगट के अण्डे, लार्वा व प्यूपा नष्ट हो जाते है. जिससे अग्रिम फसल में कीटों का प्रकोप कम हो जाता है, गहरी जुताई के बाद खरपतवारों जैसे-पत्थर चट्टा, जंगली चौलाई, दुध्धी, पान पत्ता, रसभरी, साँवा गकरा आदि के बीज सूर्य की तेज किरणों के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते है, गर्मी की गहरी जुताई के उपरान्त मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु (इरवेनिया, राइजोमोनास, स्ट्रेप्टोमाइसीज आदि), कवक (फाइटोफथोरा, रांजोकटोनिया, स्कलेरोटीनिया, पाइथियम, वर्टीसीलियम आदि) निगटोड (रूट नॉट) एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव मर जाते है जो फसलों में बीमारी के प्रमुख कारक होते है, जमीन में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है, मृदा में वायु संचार बढ़ने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जड़ों द्वारा छोडे गये हानिकारक रसायन सरलता से अपघटित हो जाते हैं।

भूमिशोधन- जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा 2.50 किग्रा०
भूमिशोधन- जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा 2.50 किग्रा० को 65-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्क पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखरी जुताई पर भूमि में मिला देने से फफूंद से फैलने वाले रोग जैसे-जड़ गलन, तना सड़न, उकठा एवं झुलसा का नियंत्रण हो जाता है, ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत डब्लू०पी० बायोपेस्टीसाइडस की 2.5 किग्रा० मात्रा प्रति है0 65-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देंकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक, सफेद गिडार, कटवर्म एवं सूत्रकृनिक का नियंत्रण हो जाता है, भूमिशोधन से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है, मिट्टी में मौजूदा फास्फोरस, पोटाश एवं अन्य पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है, पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है, भूमि जनित कीट/रोग के प्रकोप से बचाव में प्रयोग होने वाले रसायनों पर आने वाले व्यय में कमी आती है।

बीजशोधन से बीज जनित रोग जैसे-बीज गलन
 बीजशोधन - बुवाई से पूर्व 2.5 ग्राम थीरम 75 प्रतिशत डी०एस० अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 2 ग्राम अथवा थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० 2 ग्राम + कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० अथवा यथासम्भव ट्राइकोडर्मा 4-5 ग्राम प्रति किग्रा० बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए, बीजशोधन से बीज के सडन की रोकथाम होती है जिससे जमाव अच्छा होता है तथा पौधा स्वस्थ होता है जिसके फलस्वरूप उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है, बीजशोधन से बीज जनित रोग जैसे-बीज गलन, उकठा आदि का नियंत्रण हो जाता है, बीज जनित रोगों के प्रकोप से बचाव में प्रयोग होने वाले रसायनों पर आने वाले व्यय में कमी आती है। उन्होने
किसान भाइयो से अपनी फसलों को ग्रीष्मकालीन कीट रोग एवं खरपतवारों के प्रकोप से बचाने हेतु दिये गये सुझावों का प्रयोग करने का अनुरोध किया है।

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