नोएडा और ग्रेटर नोएडा समेत एनसीआर में ग्रैप 2 लागू है। इसके तहत डीजल जनरेटर नहीं चलाए जा सकते। लेकिन नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 24 घंटे बिजली नहीं रहती। ऐसे में जनरेटर चलाना मजबूरी बन गई है।
डीजल जनरेटर पर लगा प्रतिबंध : ग्रैप 2 लागू होने के बाद भी डीजी सेट्स का उपयोग जारी, सीएनजी-पीएनजी में कन्वर्जन की मांग बढ़ी
Oct 24, 2024 16:05
Oct 24, 2024 16:05
ग्रैप 2 के तहत दिल्ली-एनसीआर में डीजी सेट्स बैन
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के तहत ग्रैप 2 (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) लागू होने के बाद दिल्ली-एनसीआर में डीजल जनरेटर (डीजी सेट) के संचालन पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस नियम का उद्देश्य बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाना है। लेकिन नोएडा और ग्रेटर नोएडा के कई सेक्टरों, सोसाइटियों और औद्योगिक क्षेत्रों में इस नियम का पालन कर पाना अभी भी संभव नहीं हो पा रहा है। अधिकांश स्थानों पर अभी तक डीजल जनरेटर को सीएनजी या पीएनजी में परिवर्तित नहीं किया गया है। जिससे पावर बैकअप के लिए डीजी सेट्स का उपयोग जारी है।
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सोसाइटियों में सबसे ज्यादा दिक्कतें
नोएडा और ग्रेटर नोएडा की अधिकांश हाईराइज सोसाइटियों में अब तक डीजल जनरेटरों को ग्रीन विकल्पों (सीएनजी और पीएनजी) में कन्वर्ट नहीं किया गया है। इसी तरह औद्योगिक क्षेत्रों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। पावर बैकअप की आवश्यकताओं को देखते हुए डीजी सेट्स का उपयोग जारी रखना यहां के निवासियों और व्यवसायियों के लिए मजबूरी बन गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि ग्रैप 2 के तहत लगाए गए प्रतिबंधों का पालन कैसे होगा। जब साल दर साल इस मुद्दे पर कोई ठोस प्रयास नहीं किया जाता।
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यह बात भी सही है...
कंपनी संचालकों और उद्यमियों का कहना है कि डीजल जनरेटर को सीएनजी या पीएनजी में कन्वर्ट कराना बेहद महंगा है। एक जनरेटर को परिवर्तित करने में 7 से 20 लाख रुपये तक का खर्च आता है। जो छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए बड़ा आर्थिक बोझ साबित हो रहा है। इसके साथ ही गैस की उपलब्धता की कमी भी एक प्रमुख समस्या है। कई औद्योगिक क्षेत्रों में अब तक गैस पाइपलाइनों की सुविधा नहीं है और जहां पाइपलाइनों की मांग की जाती है, वहां भी ये उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।
निवासियों पर आर्थिक बोझ होगा
हाईराइज सोसाइटियों के लिए भी बड़ी चुनौती है। अधिक क्षमता (केवीए) वाले ग्रीन जनरेटर बाजार में उपलब्ध नहीं हैं और यदि बड़ी सोसाइटी को 2000 केवीए का पावर बैकअप चाहिए तो उन्हें कई छोटे-छोटे ग्रीन जनरेटर स्थापित करने होंगे। इसके लिए बड़ी जगह की जरूरत होती है। साथ ही इनकी देखरेख में भी अतिरिक्त खर्च आता है। जो सोसाइटी के निवासियों पर आर्थिक बोझ के रूप में पड़ता है।
सब्सिडी और इंफ्रास्ट्रक्चर की मांग
उद्यमियों और सोसाइटी प्रबंधकों का कहना है कि यदि सरकार सीएनजी और पीएनजी कन्वर्ज़न में सब्सिडी प्रदान करे और गैस पाइपलाइन के बिछाने की प्रक्रिया को तेज़ करे तो इस समस्या का समाधान हो सकता है। साथ ही ग्रीन जनरेटरों की उपलब्धता और उनकी किफायती दरें भी इस दिशा में सुधार ला सकती हैं।
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