महापात्र मनीष का कहना है कि पितृपक्ष के दिनों में अगर कोई अस्थियां लेने नहीं आया तो वो पित्र विसर्जन अमावस्या के दिन इन अस्थियों को हरिद्वार, गढ़ गंगा या मुरादनगर गंगनहर पर लेकर जाएंगे।
Ghaziabad News : पितृपक्ष में मोक्ष के लिए अपनों की राह ताक रही शमशान घाट में रखी अस्थियां
Sep 25, 2024 08:04
Sep 25, 2024 08:04
- हिंडन किनारे मोक्ष धाम में रखी हैं दस से अधिक अस्थिकलश
- अपने खर्च पर महापात्र करते हैं ऐसे अस्थियों को गंगा में प्रवाहित
- गंगा के किनारे पितृ विसर्जन अमावस्या पर करते हैं श्राद्ध
श्मशान घाट में लगभग 10 से ऊपर अस्थि कलश
गाजियाबाद के हिंडन किनारे स्थित श्मशान घाट में लगभग 10 से ऊपर अस्थि कलश रखे हुए हैं। जिनकी खोज खबर लेने के लिए कोई नहीं आ रहा है। हिंडन मुक्तिधाम के महापात्र मनीष पंडित का कहना है कि इस समय 10 से अधिक अस्थि कलश पिंडदान भवन में हैं। जिन्हें प्रतीक्षा है कि उनके बेटे-बेटियां या फिर अन्य कोई सगा संबंधी अस्थियां ले जाकर गंगा में प्रवाहित कर मोक्ष दिलाएगा।
हर महीने लगभग सौ शवों का अंतिम संस्कार
महापात्र मनीष के अनुसार हिंडन शमशान घाट पर हर माह करीब सौ शवों का अंतिम संस्कार होता है। इस हिसाब से एक साल में लगभग बारह सौ शवों का अंतिम संस्कार होता है। इनमें से करीब 100 शव ऐसे होते हैं। जिनका अंतिम संस्कार तो होता है लेकिन उनकी अस्थियों को लेने कोई नहीं आता है। इनमें पुलिस द्वारा लाई गई लावारिश लाशें भी होती हैं।
क्रिया कर्म के लिए उनके परिजन यहां पर छोड़ जाते
इसके अलावा कुछ ऐसी भी लाशें होती हैं। जिनके क्रिया कर्म के लिए उनके परिजन यहां पर छोड़ जाते हैं। लेकिन उनकी अस्थियों को लेने के लिए नहीं आते हैं। ऐसे में इन अस्थियों का विसर्जन हिंडन शमशान घाट पर रहने वाले महापात्रों द्वारा ही किया जाता है। उन्होंने बताया कि इनमें से दो—चार ऐसे लोग भी होते हैं जो कि बाद में अस्थि विसर्जन की बात कहकर चले जाते हैं और फिर इस तरफ का रास्ता भूल जाते हैं।
प्रवाह तो दूर अस्थियां चुनने तक नहीं आते लोग
महापात्र मनीष ने बताया कि वैसे तो दाहसंस्कार के दो तीन दिन बाद अस्थियां गंगा में प्रवाहित कर देनी जानी चाहिए। लेकिन समयाभाव होने पर एक-दो माह बाद भी विसर्जित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कई बार तो ऐसा भी होता है कि लोग अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां चुनने तक नहीं आते हैं। इस पर वो लोग स्वयं अस्थियां एकत्र कर उनको मिटटी के पात्र में सुरक्षित रखवाया जाता है। कुछ दिन इंतजार किया जाता है लेकिन बाद में उसको गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।
कोरोना कल में सबसे अधिक लावारिस अस्थि कलश
मनीष बताते हैं कि कोरोना काल में बहुत बुरा हाल रहा। उन्होंने बताया कि चार साल पहले कोरोना महामारी में बहुत से लोगों ने अपनी जान गवाई। जिनका अंतिम संस्कार शमशान घाट में किया गया था। उस दौरान कोरोना से हुई मौतों में अधिकांश का अस्थि विसर्जन शमशान घाट में महापात्रों को करना पड़ा। मरने वालों की अस्थियां तक चुनने के लिए अपनों ने परहेज किया। कई कई माह तक कोरोना पीड़ितों की अस्थियां रखी रही। जिनको बाद में गंगा में प्रवाहित किया गया।
मुरादनगर, गढ़ गंगा या हरिद्वार लेकर जाएंगे अस्थियां
महापात्र मनीष का कहना है कि पितृपक्ष के दिनों में अगर कोई अस्थियां लेने नहीं आया तो वो पित्र विसर्जन अमावस्या के दिन इन अस्थियों को हरिद्वार, गढ़ गंगा या मुरादनगर गंगनहर पर लेकर जाएंगे। जहां पर इनका विसर्जन करने के साथ ही वहीं पर इनका श्राद्ध किया जाएगा और गंगा के किनारे ही ब्राहमणों को भोजन कराया जाएगा।
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