सूर्य अधिकतम उत्तरायण हो कर देवताओं व सप्त ऋषियों की उत्तर दिशा के निकटतम होते हैं तथा माघ मास में दक्षिणायन हो कर पितरों एवं यम की दक्षिण दिशा के निकटतम होते हैं और दोनों प्रकट नवरात्र चैत्र व आश्विन माह में सूर्य ठीक पूर्व से उदित होते हैं।
Bhadli Navami 2024 : स्वयंसिद्ध अबूझ मुहूर्त भडल्लया नवमी स्वाति नक्षत्र और सिद्ध योग में आज
Jul 15, 2024 08:58
Jul 15, 2024 08:58
- आज शाम 7.21 बजे तक रहेगी भडल्लया नवमी
- सभी प्रकार के शुभ कार्य करने का आज मौका
- आज से चार महीने के लिए बंद हो जाएंगे शुभ कार्य
दिवस पूजा के विशेष मुहूर्त
शुभ योग 09:00 से 10:43
लाभामृत योग 3:53 से 07:20
साधना हेतु विशिष्ट मुहूर्त
लाभ योग 11:10 से 00:27 रात्रि
शुभामृत योग 01:43 से 03:00 रात्रि
दुर्गा का प्रादुर्भाव, आषाढ़ी गुप्त नवरात्र ऐसे हुआ
पंड़ित भारत ज्ञान भूषण के अनुसार साल में दो प्रत्यक्ष नवरात्र होते हैं तथा दो गुप्त नवरात्र होते हैं। गुप्त नवरात्रों में महासरस्वती द्वारा शुम्भ-निशुम्भ का वध किया था तथा शाकुम्भरी देवी जो वास्तविक दुर्गा स्वरूपा हैं जो शाक सब्जी इत्यादि को उत्पन्न करने की दिव्य शक्ति हैं का भी प्रादुर्भाव वर्षा ऋतु में गुप्त नवरात्र में हुआ था इसलिए ये गुप्त नवरात्र गुप्त साधनाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
प्रत्येक काम के लिए भडल्लया नवमी शुभतम
उन्होंने बताया कि आषाढ़ शुक्ल नवमी पर गुप्त नवरात्र पूर्ण होते हैं तथा इस अबूझ मुहूर्त वाली सिद्धिदात्रि तिथि को ही भड़ल्लया नवमी कहा जाता है। जो इस वर्ष आज 15 जुलाई दिन सोमवार को पड़ रही है। जिसमें विवाह आदि सभी मंगल कार्यों का किया जाना शुभ से शुभतम हो जाता है। यह स्वयं सिद्ध मुहूर्त इतना महत्वपूर्ण है कि इसमें वार, नक्षत्र, योग, शुक्र अस्त, गुरू अस्त, सूर्य, चन्द्र, गुरू की गोचर पर विचार करना या बूझना आवश्यक ही नहीं होता।
इस प्रकार की खुशहाली प्रदान करती है भडल्लया नवमी
जैसा युग होता है वैसे ही प्रथा होती है। महाकाल संहिता के अनुसार कलियुग में चैत्र एवं आश्विन नवरात्र प्रकट नवरात्र होते हैं। जबकि आषाढ़ एवं माघ नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। इन चारों नवरात्रों में से कलियुग में आश्विन नवरात्र का महत्व अधिक होता है किन्तु शाक्त ग्रंथों में चारों नवरात्रों में शक्ति पूजा का महत्व है और इस आषाढ़ गुप्त नवरात्र की भड़ल्लया नवमी पर महासरस्वती एवं शाकुम्भरी देवी की पूजा, ज्ञान, विद्या के साथ धन, धान्य वा खुशहाली के लिए महत्वपूर्ण होती है।
जप भाग्य वर्धन भी कर सकेंगे
ज्योतिष में नवम भाव को भाग्य का भाव कहा गया है। इसलिए भड़ल्लया नवमी को किये गये निम्न जप भाग्य वर्धन भी कर सकेंगे - ”ऊँ महासरस्वतयै नमः“, ”ऊँ शाकुम्भरी दैव्यै नमः“, ”ऊँ दुं दुर्गाय नमः“, “ऊँ सिद्धिदात्रै नमः”।
आषाढ़ शुक्ल नवमी के आस-पास होते हैं सबसे बड़े दिन
भड़ल्लया नवमी ज्योतिषीय दृष्टि से इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आषाढ़ माह में सूर्य अधिकतम उत्तरायण हो कर देवताओं व सप्त ऋषियों की उत्तर दिशा के निकटतम होते हैं तथा माघ मास में दक्षिणायन हो कर पितरों एवं यम की दक्षिण दिशा के निकटतम होते हैं और दोनों प्रकट नवरात्र चैत्र व आश्विन माह में सूर्य ठीक पूर्व से उदित होते हैं। इस प्रकार प्रकट नवरात्रों में इस भौतिक जगत की उपलब्धियों के लिए पूर्व की ओर मुख करके शक्ति उपासना करनी चाहिए तथा आषाढ़ शुक्ल भड़ल्लया नवमी पर उत्तर व ईशान दिशा के मध्य अपना मुख करके की गयी साधना भौतिक जगत व आध्यात्मिक जगत दोनों में उपलब्धियां प्रदान करने वाली हो जाती हैं।
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