उन्होंने बताया कि उनको दो महीने पहले से कांवड़ बनाने के आर्डर मिलने शुरू हो जाते हैं। इस बार भी उनको तीन बड़ी कांवड़ के आर्डर मिले हैं।
Kanwad Yatra 2024: बद्रीनाथ, पशुपति नाथ और वैष्णो देवी दरबार की कांवड़ में शिवभक्त लाएंगे गंगाजल
Jul 23, 2024 09:29
Jul 23, 2024 09:29
- डेढ़ लाख कीमत की एक कुंतल की पशुपति नाथ की कांवड़
- कांवड़ बनाने का सबसे बड़ा हब है मेरठ
- नोएडा, रुड़की, बिजनौर, दिल्ली, गजियाबाद से मिलते हैं कांवड़ के आर्डर
तीन महीने पहले से मिलने लगते हैं आर्डर
कांवड़ बनाने वाले कारीगरों को तीन चार महीने पहले से ही आर्डर मिलने शुरू हो जाते हैं। लालकुर्ती निवासी नकुल कश्यप कांवड़ बनाने का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि उनको दो महीने पहले से कांवड़ बनाने के आर्डर मिलने शुरू हो जाते हैं। इस बार भी उनको तीन बड़ी कांवड़ के आर्डर मिले हैं।
इनमें एक मोदीपुरम मेरठ और दूसरी नोएडा जिले से मिली है। उन्होंने बताया कि एक कांवड़ बनाने में करीब 1 से डेढ लाख रुपये तक का खर्च आ जाता है। बाकी लोगों की अपनी श्रद्धा होती है। उन्होंने बताा कि पिछली बार उन्होंने कैलाश पर्वत की कांवड़ बनाई थी। जिस पर करीब 2 से ढाई लाख रुपये का खर्च आया था। उनका कहना है कि लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार कांवड़ बनवाते हैं।
इस बार मां वैष्णो देवी, पशुपति नाथ और बदरीनाथ कांवड़
नकुल ने बताया इस बार उनके पास तीन बड़ी कांवड़ बनाने की डिमांड आई है। इनमें एक मां वैष्णो देवी मंदिर, पशुपति नाथ मंदिर और बदरीनाथ के स्वरूप के कांवड़ की मांग हैं। इन तीनों कांवड़ों को बनाने में करीब दो महीने से अधिक का समय लग गया है। नकुल ने बताया इन कांवड़ को बनाने में करीब एक से डेढ़ लाख रुपये तक खर्च आया है।
तीनों ही कांवड़ एक दो दिन में बनकर पूरी तरह से तैयार हो जाएगी। नकुल ने बताया कि कांवड़ का वजन करीब 100 किलो के आसपास है। उन्होंने बताया कि उनका प्रयास होता है कि ऐसी कांवड़ का भार कम हो जिससे कि उसको लेकर चलने में कांवड़ियों को किसी प्रकार की कोई परेशानी ना हो। नकुल कहतें हैं कि अच्छा कांवड़ बनाने वाला कारीगर वहीं है जो कि कम भार में अच्छी से अच्छी कांवड़ तैयार कर दे।
कांवड़ बनाने में पूरा धार्मिक नियमों का पालन
नकुल बताते हैं कि कांवड़ बनाते समय पूरा धार्मिक नियमों का पालन किया जाता है। कांवड़ बनाने से पहले उनको सभी प्रकार के तामसी भोजन का त्याग करना होता है। कांवड़ बनाने के दौरान वो लहसुन और प्याज का बिल्कुल भी सेवन नहीं करते हैं। इतना ही नहीं अगर दैनिक क्रिया के कांवड़ बनाने के दौरान जाना पड़ जाए उसके बाद वो पूरी तरह से नहाकर ही कांवड़ को हाथ लगाते हैं। जिस दिन से कांवड़ बनाने की शुरूआत होती है उस दिन से ही पूरी तरह से सनातनी नियमों का पालन किया जाता है।
मेरठ में बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं कांवड़
मेरठ कांवड़ बनाने का बहुत बड़ा केंद्र हैं। मेरठ के लालकुर्ती, सदर बाजार, पुराना शहर और घंटाघर इत्यादि जगहों पर कांवड़ बनाने का काम होता है। जहां पर कांवड़ कारीगर एक से एक सुंदर और विशाल कांवड़ बनाने का काम करते हैं। पिछली बार मेरठ के सदर से बुलडोजर कांवड़ हरिद्वार गंगाजल लेने के लिए गई थी। मेरठ में गाजियाबाद, बिजनौर, दिल्ली, नोएडा, बुलंदशहर, सहारनपुर, शामली और हरिद्वार तक से लोग कांवड़ बनवाने के लिए आते हैं।
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