मिर्जापुर की मझवां विधानसभा सीट पर उपचुनाव के ऐलान के बाद सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। सपा, बसपा, और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा...
मझवां सीट पर दिग्गजों के बीच कड़ी टक्कर : विकास के साथ जातीय समीकरण अहम, दो महिला प्रत्याशी आमने-सामने
Oct 24, 2024 19:31
Oct 24, 2024 19:31
यह हैं जातीय समीकरण
मझवां में जातीय समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्थानीय जनता का कहना है कि मझवां में ब्राह्मण और बिंद समुदाय का बड़ा असर है। बसपा के दीपक तिवारी दीपू को ब्राह्मणों का समर्थन मिलने की उम्मीद है, जबकि सपा की उम्मीदवार ज्योति बिंद को बिंद समुदाय का समर्थन प्राप्त है। अगर दलित और ब्राह्मण एक साथ आए तो बसपा के लिए मुकाबला आसान हो सकता है।
बीजेपी को विकास और शासन में विश्वास
बीजेपी समर्थकों का मानना है कि चाहे प्रत्याशी कोई भी हो, बीजेपी का पलड़ा भारी है। भाजपा का जोर विकास और शासन की विश्वसनीयता पर है। मझवां में सत्ताधारी दल का विधायक बनने पर विकास कार्यों में तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है।
सपा की स्थिति मजबूत
मझवां विधानसभा सीट पर सपा को भी कमजोर नहीं समझा जा सकता। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मझवां में जाति आधारित वोटिंग का बड़ा प्रभाव है। लोकसभा चुनाव में सपा ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया था, और इस बार भी सपा की उम्मीदें काफी मजबूत नजर आ रही हैं। जातिगत समीकरणों के आधार पर सपा के जीतने की संभावनाएं भी प्रबल हो रही हैं।
बसपा को हल्के में न लें
मझवां विधानसभा सीट पर भाजपा और सपा को बसपा को हल्के में लेना बड़ी भूल होगी। ब्राह्मण उम्मीदवार के साथ बसपा दलित और ब्राह्मण गठजोड़ पर भरोसा कर रही है, जिससे चुनाव के नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं।
पिछड़ा वर्ग तय करता है जीत
मझवां सीट पर पिछड़ा वर्ग ही जीत तय करता है। जातीय समीकरण की बात की जाए तो इस सीट पर दलित, ब्राह्मण, बिंद वोटरों की संख्या करीब 60-60 हजार है। इनके अलावा कुशवाहा वोटर 30 हजार, पाल 22 हजार, राजपूत 20 हजार, मुस्लिम 22 हजार, पटेल 16 हजार हैं। 1960 में अस्तित्व में आई इस सीट पर ब्राह्मण, दलित और बिंद बिरादरी का बर्चस्व है। मिर्जापुर लोकसभा सीट के तहत यह सीट आती है। मिर्जापुर से लगातार तीसरी बार अपना दल एस प्रमुख अनुप्रिया पटेल सांसद बनी हैं।
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