अमरोहा लोकसभा : 40 साल से कांग्रेस तो 28 साल से सपा को जीत नसीब नहीं, अब तक अमरोहा जनपद का नहीं बना कोई सांसद

40 साल से कांग्रेस तो 28 साल से सपा को जीत नसीब नहीं, अब तक अमरोहा जनपद का नहीं बना कोई सांसद
UPT | Amroha Lok Sabha

Apr 11, 2024 13:21

पूरे देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में लोकसभा 2024 के चुनाव होने जा रहे हैं। इस चुनाव में मतदाता अपने सांसद को चुनने के लिए वोट करेगी। देश के साथ-साथ प्रदेश में भी 19 अप्रैल से शुरू होकर चुनाव 1 जून को खत्म होगा। चुनावों के परिणाम 4 जून को आएंगे। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश टाइम्स प्रदेश हर लोकसभा सीट के मिजाज और इतिहास को आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है। इस अंक में पढ़ें अमरोहा लोकसभा क्षेत्र के बारे में...

Apr 11, 2024 13:21

Short Highlights
  • इस सीट पर हुए पहले चुनाव में हिफजुर रहमान कांग्रेस के टिकट पर पहली बार सांसद बने थे।
  • अमरोहा लोकसभा सीट कभी किसी एक पार्टी का गढ़ नहीं रहा है।
Amroha Lok Sabha constituency : पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला अमरोहा आम के लिए पूरे देश में जाना जाता है। साथ ही अमरोहा मशहूर शायर जॉन एलिया के शहर के नाम से देश-दुनिया में पहचाना जाता है। यह जिला गंगा नदी के समीप स्थित है। अमरोहा लोकसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश में काफी महत्वपूर्ण जिला माना जाता है। अमरोहा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो इस सीट पर कभी किसी एक पार्टी के उम्मीदवार को लगातार जीत नहीं मिली है। शुरूआती चुनाव को छोड़ दे तो लगातार कोई एक पार्टी इस सीट पर चुनाव नहीं जीत पाई है। इस सीट पर 40 साल से कांग्रेस और 28 साल से सपा को जीत नहीं मिली है। वहीं बहुजन समाज पार्टी को दो बार जीत का स्वाद चख चुकी है। अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा की सीटें आती है। इन पांच सीट में से 3 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी और 2 सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के कुंवर दानिश अली ने जीत हासिल की थी। लेकिन दानिश अली ने अब बसपा का साथ छोड़ दिया है। वहीं इस सीट के जातिगत समीकरण की बात करें तो इस सीट पर भी रामपुर की तरह मुस्लिम समुदाय का दबदबा है। इस लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम 32% है। इसके अलावा अनुसूचित जाति 18.1%, जाट 12.3%, ठाकुर 7.4%, ब्राह्मण 4.7% यादव 6.5% हैं। साथ ही सिख 1.2%, वैश्य 5%, लोधी-राजपूत 2.2%, गुर्जर 2%, ईसाई 0.2%  हैं। इसके अलावा अन्य जातियों के लोग हैं। 

अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में पहला चुनाव साल 1952 में हुआ था। जिसमें हिफजुर रहमान कांग्रेस के टिकट पर पहली बार सांसद बने थे। देश में अगला चुनाव साल 1957 में हुआ था। इस चुनाव में भी कांग्रेस के हिफजुर रहमान ने जीत हासिल की थी। उसके बाद अगले 2 चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत हासिल की थी। 1967 और 1971 में  इशाक संभाली इस सीट से सांसद बने थे। यह आखरी दफा था जब कम्युनिस्ट पार्टी को यहां से जीत मिली थी। इसके बाद अगले दो चुनावों में जनता पार्टी के चंद्रपाल सिंह ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। 4 चुनाव के बाद कांग्रेस ने फिर से वापसी की और 1984 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार राम पाल सिंह ने जीत हासिल की थी। यह चुनाव इंदिरा गांधी के मौत के बाद हुआ था। जिसमें पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर थी। लेकिन इस चुनाव के बाद कांग्रेस ने अभी तक वापसी नहीं की है। 1989 के चुनाव में जनता दाल के हर गोविन्द सिंह तो 1991 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के चेतन चौहान ने चुनाव जीता था। अगले चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहली बार इस सीट को अपने नाम किया। 1996 के चुनाव में सपा के उम्मीदवार प्रताप सिंह सैनी ने जीत हासिल की थी। वहीं 1998 के चुनाव में फिर से भाजपा के चेतन चौहान को जीत मिली। 1999 में बहुजन समाज पार्टी ने राशिद आल्वी को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की थी। 2004 में निर्दलीय प्रत्यशी के हाथ में यह सीट गई थी। इस चुनाव में हरीश नागपाल ने जीत हासिल की थी। 2009 में यह सीट रालोद के खाते में गई और देवेंद्र नागपाल ने चुनाव जीता था। 20 साल के सूखे के बाद 2014 के चुनाव में भाजपा ने वापसी करते हुए यह सीट अपने नाम की। 2014 के चुनाव में कंवर सिंह तंवर को जीत मिली। इस चुनाव में कंवर सिंह तंवर ने सपा के हुमेरा अख्तर को तकरीबन डेढ़ लाख वोट से हराया था।  अगले ही चुनाव में भाजपा ने फिर से यह सीट गवां दी और इस चुनाव में  बसपा के उम्मीदवार के तौर पर कुंवर दानिश अली ने जीत हासिल की थी। लेकिन बाद में सांसद दानिश अली ने बसपा का साथ छोड़कर कांग्रेस में शमिल हो गए थे।

हर चुनाव में बदल जाते हैं सांसद 
अमरोहा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर कभी किसी भी पार्टी का गढ़ नहीं रहा है। पिछले कई चुनावों में लगातार किसी एक पार्टी को जीत नहीं मिली है। 1952 से लेकर 1971 तक के 5 चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार को जीत मिली थी। वहीं 1984 में कांग्रेस को आखिरी बार इस सीट पर जीत मिली थी। उसके बाद कांग्रेस के खाते में यह सीट नहीं गई है। 1991 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पहली बार यहां जीत मिली थी। 1991 में चेतन चौहान ने हर गोविंद सिंह  को हराकर भगवा लहराया था। 1998 के चुनाव में चेतन चौहान फिर से विजयी हुए।  इसबार उन्होंने बसपा के उम्मीदवार एले हसन को चुनाव में हराया था। उसके बाद बसपा के राशिद आल्वी ने चुनाव जीता। जिसके बाद 2004 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी हरीश नागपाल को जीत मिली तो  2009 में राष्ट्रीय लोकदल के देवेंद्र नागपाल ने जीत हासिल की थी। 2014 में भाजपा तो 2019 के चुनाव में बसपा ने मैदान फतेह की थी। 

वामपंथी दल को भी मिल चूका है मौका 
अमरोहा उत्तर प्रदेश की उन चुनिंदा सीटों में शामिल हैं जहां से वामपंथी पार्टी को भी जीत हासिल हुई है। 1967 और 1971 में CPI के इशाक संभाली ने जीत हासिल की थी। इससे पहले कांग्रेस के हिफजुर रहमान दो बार इस सीट क प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।  1971 में कांग्रेस ने भी CPI को समर्थन दिया था। अगले दो चुनाव जनता पार्टी के पक्ष में गए और 84 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति फैक्टर ने कांग्रेस को वापसी कराई। लेकिन 1971 के बाद किसी भी चुनाव में CPI को सफलता हासिल नहीं हुई। जीत के अलावा दूसरे नंबर पर रहने का भी मौका इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी को नहीं मिला।

अमरोहा जनपद का कोई भी सांसद नहीं
अमरोहा लोकसभा सीट ऐसी सीट हैं जहांअब तक जितने भी सांसद बने हैं वो बाहर के रहने वाले थे। अब तक किसी भी सांसद का गृह जनपद अमरोहा नहीं रहा है। अभी वर्तमान के सांसद दानिश अली खुद हापुड़ के रहने वाले हैं। वहीं भाजपा के उम्मीदवार और पूर्व सांसद कंवर सिंह तंवर हरियाणा के रहने वाले हैं। भाजपा के एक और नेता और अमरोहा से दो बार के सांसद चेतन चौहान बरेली के रहने वाले हैं। वहीं पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल भी मुरादाबाद के रहने वाले हैं। इसी तरह बाकि सांसद भी अमरोहा से बाहर के रहने वाले हैं।


अमरोहा लोकसभा में कुल 5 विधानसभा की सीटें आती हैं। इन 5 सीटों में से 3 पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है तो 2 सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। अमरोहा लोकसभा में धनौरा, नौगावां सादत, अमरोहा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर की विधानसभा की सीटें शामिल हैं।  नौगावां सादत और अमरोहा पर सपा का कब्जा है तो दूसरी तरफ धनौरा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर की सीटें पर भाजपा के विधायक हैं। नौगावां सादत से सपा के समरपाल सिंह विधायक हैं तो अमरोहा से सपा के ही महबूब अली विधायक हैं। वहीं धनौरा जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है वहां से भाजपा के राजवीर तरारा विधायक हैं। वहीं हसनपुर से महेंद्र खडगवंशी तो गढ़मुक्तेश्वर से हरेंद्र सिंह तेवतिया भाजपा के विधायक हैं। विधानसभा के दृष्टिकोण से देखें तो इस सीट से भाजपा मजबूत जरूर नजर आ रही है लेकिन सपा भी जोरदार टक्कर देती दिख रही हैं। वहीं बसपा के रहते हुए यह चुनाव त्रिकोणीय होती नजर आ रही है। 

मौजूदा समीकरण की बात करें तो भाजपा ने कंवर सिंह तंवर को मैदान में उतारा है। कंवर सिंह तंवर साल 2014 में भाजपा के टिकट पर अमरोहा सीट से सांसद रह चुके हैं। वहीं सपा और कांग्रेस गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है। कांग्रेस ने इस सीट से मौजूदा सांसद और पूर्व बसपा नेता दानिश अली को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा की बात करें तो बसपा ने मुजाहिद हुसैन उर्फ बाबू भाई को अमरोहा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। इस बार एक ओर जहां पार्टी बदलकर कांग्रेस में गए दानिश अली हैं तो दूसरी तरफ पूर्व सांसद कंवर सिंह तंवर है। जो कांग्रेस के उम्मीदवार दानिश अली को टक्कर देंगे। वहीं बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार मुजाहिद हुसैन भी इस लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहे हैं। क्योंकि यह सीट पिछले चुनाव में बसपा के खाते में गई थी। इस लिहाज से इस बार यह कहना गलत नहीं होगा कि बसपा को भी इस सीट से बहुत उम्मीदें हैं।

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