जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा के मद्देनज़र प्रशासन ने संभल में सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर 1 दिसंबर तक रोक लगा दी है।
Sambhal Violence : संभल में तनाव के बाद बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर 1 दिसंबर तक रोक, प्रशासन की सख्ती
Nov 25, 2024 00:02
Nov 25, 2024 00:02
हिंसा का कारण और प्रशासन की कार्रवाईसंभल में 1 दिसंबर तक बाहरी व्यक्ति, सामाजिक संगठन और जनप्रतिनिधि के प्रवेश पर रोक। अतिसंवेदनशील स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने उठाया कदम। pic.twitter.com/NzMX0XWdiz
— Uttar Pradesh Times (@UPTimesLive) November 24, 2024
रविवार की सुबह संभल में उस समय तनावपूर्ण माहौल उत्पन्न हो गया जब कोर्ट कमिश्नर रमेश सिंह राघव की अगुवाई में एक सर्वे टीम जामा मस्जिद पहुंची। डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया और एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई के नेतृत्व में इस सर्वे को छुट्टी के दिन और सुबह जल्दी शुरू किया गया, जिससे स्थानीय जनता में असंतोष बढ़ गया। मस्जिद के पास बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए और सर्वे की प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाने लगे। स्थिति बिगड़ने पर भीड़ ने पथराव करना शुरू कर दिया। इस दौरान पुलिस पर पथराव और फायरिंग की गई, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े, लेकिन भीड़ नियंत्रित नहीं हो सकी। स्थिति बेकाबू होते देख पुलिस को लाठीचार्ज और फायरिंग का सहारा लेना पड़ा।
हिंसा में हुई हानि और प्रशासन की तत्परता
इस हिंसक घटना के दौरान हयातनगर के निवासी रोमान, फत्तेहउल्ला सराय के निवासी बिलाल, और मोहल्ला कोट तबेला के निवासी नईम की मौत हो गई। इसके अलावा, 20 से अधिक पुलिसकर्मी और दर्जनों अन्य लोग घायल हुए। हिंसक भीड़ ने चंदौसी के सीओ की गाड़ी समेत कई पुलिस वाहनों में तोड़फोड़ की और उन्हें आग के हवाले कर दिया। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए मुरादाबाद से डीआईजी और अतिरिक्त पुलिस बल को बुलाया गया। सुरक्षाबलों ने मौके पर पहुंचकर हालात पर काबू पाने का प्रयास किया।
बाहरी व्यक्तियों पर प्रवेश रोक का कारण
प्रशासन ने यह सख्त कदम इलाके में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया है। प्रशासन का मानना है कि बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश से माहौल और अधिक तनावपूर्ण हो सकता है, इसलिए 1 दिसंबर तक इस रोक को लागू किया गया है।स्थानीय नेताओं और संगठनों की प्रतिक्रिया प्रशासन के इस कदम का कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने समर्थन किया है, जबकि कुछ ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास बताया है। वहीं, कई जनप्रतिनिधियों ने प्रशासन से अपील की है कि वे स्थिति को संभालने के लिए सभी समुदायों के बीच संवाद स्थापित करें।