संभल का इतिहास न केवल खूबसूरत है, बल्कि इसमें महान योद्धाओं जैसे पृथ्वीराज चौहान और आल्हा उदल की वीरता की कहानियां भी समाहित हैं। यहां के कुछ ऐतिहासिक स्थल जैसे "चोरों का कुआं" या "बाबरी कुआं" भी इसी समृद्ध इतिहास का हिस्सा हैं...
यूपी के संभल का समृद्ध इतिहास : आज भी गूंजती है पृथ्वीराज चौहान और आल्हा उदल सरीखे शूरवीरों की गाथा...
Dec 26, 2024 17:21
Dec 26, 2024 17:21
कैसे बना चोरों का कुआं
चोरों का कुआं का इतिहास पृथ्वीराज चौहान के समय से जुड़ा हुआ है। पहले संभल पृथ्वीराज चौहान की राजधानी हुआ करता था और यही वह समय था जब इस कुएं का निर्माण हुआ था। स्थानीय निवासियों के अनुसार, इस कुएं को "चोरों का कुआं" और "बाबरी कुआं" के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि, यह बाबर द्वारा निर्मित नहीं था। इसे "चोरों का कुआं" इसीलिए कहा जाता है क्योंकि कुछ समय पहले यहां चोर आते थे। यह एक बावड़ी है, जिसका उपयोग पृथ्वीराज चौहान के समय में राजा-रानी और आम लोग करते थे। यह पांच मंजिला कुआं था, जो पहले पानी से भरा रहता था।
कुएं का इतिहास बेहद पुराना
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस कुएं का इतिहास बहुत पुराना है और इसके बारे में तरह-तरह की कहानियां प्रचलित हैं। वे बताते हैं कि पहले, जब ये घटनाएं घटित हुई थीं, तब यह सभी घटनाएं हिंदू पक्ष से जुड़ी थीं और हमारे पूर्वजों ने इसमें सक्रिय भाग लिया था। इस कुएं का महत्व सिर्फ पानी के स्रोत के रूप में नहीं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत बड़ा है। यह स्थान इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है, जहां से कई राजाओं और योद्धाओं की गाथाएं जुड़ी हुई हैं।
आल्हा-उदल की वीरगाथा
आल्हा-उदल की वीरगाथा भी संभल के इतिहास का अहम हिस्सा है। संभलवासियों का मानना है कि यह पुराना इतिहास आज भी उनकी ज़िंदगी पर असर डालता है, खासकर उन लड़ाइयों के प्रभाव से जो किसी विशेष स्थान पर लड़ी गई थीं। 'आल्हा उदल' की प्रसिद्ध लड़ाई भी ऐसी ही एक घटना थी, जो बहुत चर्चित रही और इस पर कई किताबें भी लिखी गई हैं। इन किताबों में बताया गया है कि कैसे उस समय की लड़ाई में हर एक योद्धा ने अपनी पूरी शक्ति लगाई। आज भी उस लड़ाई की गूंज संभलवासियों के दिलों में बसी हुई है, हालांकि समय के साथ वह सब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।
क्या कहते हैं संभलवासी
एक अन्य स्थानीय निवासी ने बताया कि "चोरों का कुआं" के चारों ओर घना जंगल हुआ करता था और यहां शाम के समय कोई भी किसान रुकने की हिम्मत नहीं करता था। उनके अनुसार, बड़े बुजुर्गों का कहना था कि यहां चोर शाम को एकत्रित होते थे, जिसके कारण इस कुएं का नाम "चोरों का कुआं" पड़ा। इस जगह की इतिहास से जुड़ी कहानियां आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रहती हैं।
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