मुरादाबाद के किला तिराहे पर तबला वादक उस्ताद अहमद जान थिरकवा की मूर्ति लगाए जाने का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई की है। दो सरकारी शिक्षकों, अरविंद चौधरी और अजय कट्टा, को नामजद मुकदमा दर्ज किया गया है।
तबला वादक अहमद जान की मूर्ति का विरोध पड़ा भारी : किला तिराहे पर प्रदर्शन करने वाले दो लोगों के खिलाफ मुकदमा, गलत तरीके से भीड़ एकत्र करने का केस दर्ज
Dec 19, 2024 11:28
Dec 19, 2024 11:28
दो सरकारी शिक्षकों पर एफआईआर दर्ज
सिविल लाइंस थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार पुलिस ने इस प्रदर्शन में शामिल दो सरकारी शिक्षकों, अरविंद चौधरी और अजय कट्टा, को नामजद मुकदमा दर्ज किया गया है। उन पर भीड़ जुटाने और सार्वजनिक शांति भंग करने के आरोप लगाए गए हैं। पुलिस का कहना है कि यह प्रदर्शन बिना अनुमति के किया गया और इससे इलाके में तनाव का माहौल बना। भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।
मूर्ति लगाने के विरोध में हुआ था प्रदर्शन
स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत किला तिराहे पर उस्ताद अहमद जान थिरकवा की मूर्ति स्थापित की जा रही थी। अहमद जान भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। हालांकि स्थानीय लोगों और कुछ संगठनों ने इस मूर्ति स्थापना का विरोध किया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि इस क्षेत्र का नाम और मूर्ति किसी ऐसे नेता या व्यक्ति के नाम पर होनी चाहिए, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान दिया हो, जैसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है कि उस्ताद अहमद जान थिरकवा का संगीत क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है और उनके कार्यों को सम्मानित किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि यदि उनके नाम पर मूर्ति स्थापित की जा रही है, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह सांस्कृतिक सम्मान है, न कि धार्मिक विवाद।
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कौन थे तबला वादक अहमद जान
उस्ताद अहमद जान थिरकवा का नाम भारतीय संगीत में बहुत ही सम्मानजनक स्थान रखता है। उनका जन्म मुरादाबाद के एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था और उन्हें संगीत विरासत में मिला था। बचपन से ही उन्होंने घर पर संगीत की शिक्षा ली, और बाद में मुंबई जाकर उस्ताद मुनीर खान के शागिर्द बने। उस्ताद अहमद जान थिरकवा का तबला वादन बहुत ही अद्वितीय था और उनकी उंगलियों की गति को देखकर उन्हें ‘थिरकवा’ के नाम से जाना जाने लगा। वह संगीत के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किए गए थे। उन्होंने 40 वर्षों तक उस्ताद मुनीर खान से प्रशिक्षण लिया और रामपुर दरबार में भी लंबा समय बिताया। उनकी धुनों को आज भी पूरे विश्व में सराहा जाता है।
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