हिंदू मैरेज एक्ट, 1955 के सेक्शन 13बी में आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान है। सेक्शन 13बी(1) में कहा गया है कि पति-पत्नी तलाक के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अर्जी दे सकते हैं। इसका आधार यह होना चाहिए कि दोनों सालभर...
The Hindu Marriage Act, 1955 : किन हालात में ले सकते हैं तलाक, ये है प्रक्रिया और अधिकार, जानिए क्या कह रहे हैं जानकार
May 28, 2024 16:54
May 28, 2024 16:54
तलाक की क्या है प्रक्रिया
मीडिया पर वायरल तलाक की खबर में कितनी सच्चाई है, यह तो हार्दिक और नताशा ही बता पाएंगे, पर हक की बात में आज हम जानकार की मदद से समझ लेते हैं कि आखिर तलाक की क्या प्रक्रिया है, दोनों पार्टनर्स को क्या अधिकार हैं, किन हालातों में तलाक ले सकते हैं और सबसे जरूरी संपत्ति का बंटवारा किस आधार पर होता है।
तलाक के लिए वैध विवाह जरूरी
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील रवि झा का कहना है कि तलाक को समझने के लिए विवाह को समझना होगा। क्योंकि तलाक के लिए सबसे पहली शर्त है एक वैलिड मैरेज। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 5 में कहा गया है कि अगर आपको तलाक लेना है, तो आपको यह साबित करना होगा कि आपका जो विवाह था, वह एक विधिपूर्वक विवाह था। दूसरी तरफ तलाक को राइट टू लाइव से जोड़ा गया है। तलाक का जिक्र हिंदू मैरेज एक्ट, 1955 के धारा 13 में देखने को मिलता है। इसमें तलाक की कई शर्तों पर बात किया गया है, जिसमें कुछ अधिकार ऐसे हैं, जो पति पत्नी दोनों को उपलब्ध हैं।
आपसी रजामंदी से भी हो सकता है तलाक
हिंदू मैरेज एक्ट, 1955 के सेक्शन 13बी में आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान है। सेक्शन 13बी(1) में कहा गया है कि पति-पत्नी तलाक के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अर्जी दे सकते हैं। इसका आधार यह होना चाहिए कि दोनों सालभर या इससे ज्यादा वक्त से अलग रह रहे हों, या उनका साथ रहना संभव न हो, अथवा दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला लिया हो। पति-पत्नी को संबंधित अधिनियम के अनुसार 1 या 2 साल तक अलग रहने का भी प्रावधान है। इसका मकसद यह साबित करना कि कपल अलग-अलग रह सकते हैं। कोर्ट के निर्णय के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक की अवधि 6 महीने से 18 महीनों तक की होती है। कपल को तलाक से पहले कम से कम 1 साल तक पति पत्नी के रूप में साथ नहीं रहना होगा। आपसी सहमति से लिए गए तलाक में प्रॉपर्टी का बंटवारा और बच्चों की कस्टडी के मामले में भी कपल पारस्परिक राजी होते हैं।
तलाक के ये हैं आधार
- एडवोकेट रवि झा कहते हैं कि अगर कोई दंपति तलाक लेना चाहता है तो उन्हें सबसे पहले कोर्ट को सही, ठोस कारण बताकर सेटिस्फाइड करना होगा। वैसे तलाक लेने के कई आधार हैं...
- अगर आपका पार्टनर किसी तीसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो आप तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
- अगर आपका पार्टनर आपके साथ अमानवीय व्यवहार करता है, घरेलू हिंसा का शिकार आप दो सालों से हो रहे हैं तो भी आप तलाक दे सकते हैं।
- जबरन धर्म परिवर्तन की स्थिति में भी आप तलाक ले सकते हैं।
- अगर पार्टनर को कोई गंभीर बीमारी, मेंटल डिसआर्डर या कोई ऐसी विकराल परिस्थिति आ गई है, जिसमें एक साथ रहना संभव नहीं तो भी आप तलाक ले सकते हैं।
- यदि पार्टनर संन्यासी बन गया, सामाजिक जीवन का परित्याग कर दिया तो इस आधार पर भी तलाक ले सकते हैं।
- अगर आपका पार्टनर लगातार 7 सालों से गायब है तो भी आप तलाक ले सकते हैं। इस स्थिति में कोर्ट उन्हें मृत घोषित कर देती है।
- कुष्ठ रोग संक्रामक बीमारी है, जो स्किन और नर्व को डैमेज करती है, यह बीमारी भी तलाक का आधार हो सकती है।
- अगर दोनों में से एक पार्टनर को यौन रोग जैसे HIV, STD हैं, तो दूसरा पार्टनर तलाक ले सकता है।
एडवोकेट रवि झा कहते हैं कि जरूरी नहीं है कि पति तलाक के बाद पत्नी को अपनी संपत्ति का 70 या 50 प्रतिशत हिस्सा देगा। संपत्ति या गुजारा भत्ता तय करते समय कोर्ट इस बात का ध्यान रखती है कि पति पर कोई ईएमआई या कर्ज है या नहीं। उस पर माता-पिता डिपेंडेंट है या नहीं। माता-पिता पर उस व्यक्ति का मेडिकल खर्च कितना है, पति के घर का स्टैंडर्ड क्या है, खानपान कैसा है। फिर कोर्ट एक राशि एक निश्चित समय के लिए तय करती है, जिसे देना होता है।
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