नीतीश कुमार के एनडीए में दोबारा शामिल होने की अटकलों के बीच बिहार का सियासी पारा सातवें आसमान पर है। आश्चर्य की बात ये है कि 'इंडिया' बनाने की पहल करने वाले नीतीश खुद ही उसे छोड़कर एनडीए में शामिल होने जा रहे हैं।
बिहार में खेला होबे : एक दिन में नहीं लिखी गई नीतीश के NDA में वापसी की स्क्रिप्ट, जानिए कैसे पड़ी बगावत की नींव
Jan 27, 2024 18:01
Jan 27, 2024 18:01
- एनडीए के साथ जुड़ सकते हैं नीतीश कुमार
- रविवार को ले सकते हैं मुख्यमंत्री पद की शपथ
- बिहार में सरकार बनाने के लिए जारी खींचतान
'इंडिया' की बैठकों में चुप्पी, संयोजक पद से इंकार
वर्तमान में नीतीश कुमार पर भले ही पलटी मारने के आरोप लगाए जा रहे हों, लेकिन अगर वह शुरू से ही एनडीए के साथ जाने के पक्ष में होते तो बीजेपी के खिलाफ बड़ा विपक्षी मोर्चा (इंडिया) बनाने की जद्दोजहद न करते। लेकिन समय के साथ 'इंडिया' पर नीतीश का दावा कमजोर और विपक्ष की दूसरी पार्टियों मसलन कांग्रेस, टीएमसी का दावा मजबूत होता चला गया। लिहाजा नीतीश ने धीरे-धीरे 'इंडिया' में अपनी सक्रियता कम कर दी। वह बैठकों में भी अक्सर चुप रहते। ममता ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया, नीतीश चुप रहे। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अकेले लड़ने का दावा किया, नीतीश यहां भी चुप रहे। सीट शेयरिंग को लेकर विपक्ष घमासान करता रहा, लेकिन नीतीश फिर भी चुप रहे। एक बैठक के दौरान एमके स्टालिन ने नीतीश को 'इंडिया' का संयोजक बनाए जाने का सुझाव दिया, लेकिन नीतीश ने अपना नाम पीछे हटा लिया।
पीएम पद पर नजर, सीएम की कुर्सी से मोह
वैसे तो विपक्ष के गठबंधन 'इंडिया' में लगभग हर पार्टी के नेता खुद को पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर अलग-अलग समय में प्रोजेक्ट करते आए हैं, लेकिन नीतीश कुमार का हाल इस मामले में थोड़ा-बहुत अशोक गहलोत जैसा है। जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए हो रहे चुनाव में अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे था, तब सीएम की कुर्सी से मोह के चलते वह इस रेस से बाहर हो गए थे। शायद नीतीश कुमार भी दबे मन से चाहते होंगे कि कोई उनका नाम पीएम पद उम्मीवार के रूप में आगे कर दे, इसीलिए तो वह शुरुआत में विपक्षी दलों को एकजुट करने का भरसक प्रयास कर रहे थे। इस बीच राजद की तरफ से नीतीश को पीएम बनाने की मांग भी उठने लगी। लेकिन ये सब कुछ उतना भी साफ-सुथरा नहीं था, जैसा दिख रहा था। जाहिर है कि तेजस्वी की नजर भी बिहार के सीएम की कुर्सी पर लगी हुई है और नीतीश के बिहार में रहते ये संभव नहीं हो सकता था। इस कारण लालू परिवार ने जेडीयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यश्र ललन सिंह से नजदीकियां बढ़ानी भी शुरू की। धीरे-धीरे नीतीश को समझ आ गया कि पीएम की कुर्सी उन्हें भले न मिले, पर वह बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी से जरूर हाथ धो बैठेंगे। इस कारण शायद नीतीश को पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाना ज्यादा मुनासिब लगा।
ललन सिंह की रुख़्सती से शुरुआत, फिर बीजेपी से बात
नीतीश कुमार ने सत्ता बचाने की शुरुआत अपने घर से ही की। उन्होंने अपने सबसे करीबी माने जाने वाले राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटाया। इसके बाद अलग-अलग मौकों पर उनके बयान और तेजस्वी के साथ अपनाए जाने वाले हाव-भाव ये यह अनुमान लगाया जाने लगा कि महागठबंधन में कुछ भी ठीक नहीं है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने के बाद नीतीश ने अपने पत्ते खोल दिए और बिना नाम लिए परिवारवाद का जिक्र कर राजद पर हमला बोला। इसके बाद लालू यादव की बेटी ने भी बिना नाम लिए नीतीश पर हमला बोला। इधर जो बीजेपी पहले कह रही थी कि नीतीश के एनडीए में वापसी के रास्ते हमेशा के लिए बंद हैं, वह अचानक से कहने लगी कि राजनीति में जो दरवाजा बंद होता है, वह खुल भी जाता है।
बिहार में सरकार बनाने के लिए जारी खींचतान
नीतीश कुमार के एनडीए में जाने की अटकलों पर बीजेपी ने पहले तो कड़ा रुख दिखाया। सूत्रों के हवाले से दावा किया गया कि अगर नीतीश एनडीए के साथ आना चाहते हैं, तो उन्हें सीएम पद नहीं मिलेगा। लेकिन शाम होते-होते बीजेपी का रुख नरम पड़ने लगा। इसके पीछे की एक वजह बिहार में सरकार बनाने की राजद की कोशिशों को भी माना जा सकता है। खैर, वर्तमान स्थिति ये है कि बीजेपी नीतीश के साथ बिना शर्त सरकार बनाने के लिए राजी है। हालांकि राजद भी इतनी आसानी से नीतीश को सरकार बनाने नहीं देगी। इसके लिए उसने जीतनराम मांझी को ऑफर भी दे दिया है। उधर राहुल गांधी ने भी जीतनराम से बात की है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर बिहार में किसकी सरकार बनेगी।
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