सोनिया गांधी ने राज्यसभा के लिए अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। वह वर्तमान में रायबरेली की सीट से सांसद हैं। ऐसे में सोनिया के चले जाने से यह सीट खाली होगी, तो कांग्रेस को इसका उत्तराधिकारी भी खोजना पड़ेगा।
राज्यसभा जाएंगी सोनिया गांधी : राहुल को रायबरेली का वारिस बनाने की तैयारी या प्रियंका पड़ेंगी कयासों पर भारी?
Feb 14, 2024 16:12
Feb 14, 2024 16:12
- सोनिया गांधी ने राज्यसभा से भरा नामांकन
- अभी रायबरेली की सीट से सांसद हैं सोनिया
- राहुल गांधी लड़ सकते हैं रायबरेली से चुनाव
रायबरेली-अमेठी से गांधी परिवार का पुराना नाता
रायबरेली की लोकसभा सीट केवल 2 अपवादों को छोड़कर 1957 से ही सोनिया गांधी की पुश्तैनी सीट रही है। केवल 1977 में जनता पार्टी और 1996 व 1998 में बीजेपी द्वारा दर्ज की गई जीत को छोड़ दें, तो बैजनाथ कुरील से सोनिया गांधी तक यह सीट कांग्रेस के कब्जे में रही। इसमें से भी आधे से ज्यादा समय तक तो यह सीट नेहरू-गांधी परिवार के पास रही। वहीं अमेठी की सीट का गठन 1967 में हुआ। 1980 में संजय गांधी के चुनाव जीतने के बाद से ही यह सीट गांधी परिवार की विरासत बन गई, जो 2014 तक जारी रही। हालांकि 2019 में स्मृति ईरानी ने राहुल को हराकर इस तिलिस्म को तोड़ दिया।
राहुल गांधी बनेंगे रायबरेली के वारिस?
ऐसा लगता है कि 2004 का इतिहास 2024 में रायबरेली में दोहराया जाने वाला है। दरअसल सोनिया गांधी ने 1999 में अमेठी की सीट से अपना राजनैतिक पदार्पण किया था। इस चुनाव में उन्होंने 3 लाख वोटों के बड़े अंतर से बीजेपी प्रत्याशी को हराया था। लेकिन 2004 में सोनिया राहुल को अमेठी का वारिस बनाकर खुद रायबरेली चली गईं। राहुल 2004, 2009 और 2014 में इस सीट से सांसद रहे। लेकिन 2019 में स्मृति ने खेल बिगाड़ दिया। राहुल को वायनाड जाना पड़ा। अब सोनिया ने राज्यसभा जाने का फैसला किया है। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि वह राहुल को रायबरेली का वारिस बना सकती हैं।
वायनाड से भी कट सकता है राहुल का पत्ता
2019 में राहुल गांधी ने अमेठी के अलावा वायनाड की सीट से भी पर्चा भरा था। उस दौरान अंदरखाने यह चर्चा थी कि राहुल अमेठी की अपनी पुश्तैनी सीट नहीं बचा पाएंगे। हुआ भी ऐसा ही। राहुल वायनाड से तो जीते, मगर अमेठी से हार गए। लेकिन अब 2024 में समीकरण बदलने लगे हैं। केरल में कांग्रेस की सहयोगी कम्युनिस्ट पार्टी ने वायनाड की सीट पर भी दावा ठोक दिया है। चर्चा चल रही है कि सीपीआई 2024 के चुनावों में कांग्रेस से वायनाड की सीट मांग सकती है।
प्रियंका गांधी के नाम की भी हो रही चर्चा
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने पिछले साल नवंबर में ये दावा किया था कि राहुल गांधी 2024 में अमेठी की सीट से ही चुनाव लड़ेंगे। इस कारण राहुल के रायबरेली जाने पर संशय भी व्यक्त किया जा रहा है। लेकिन सच्चाई ये भी है कि राहुल ने 2019 में भी अमेठी से पर्चा भरा था, पर साथ-साथ वायनाड को भी चुना था। ऐसे में अजय राय अपनी जगह गलत नहीं कहे जा सकते। हो सकता है कि राहुल इस बार रायबरेली और अमेठी दोनों जगहों से चुनाव लड़ें। अब एक सवाल ये भी उठता है कि रायबरेली से राहुल नहीं तो कौन? क्या कांग्रेस इस सीट पर गैर गांधी परिवार के व्यक्ति को मौका देगी? जाहिर है नहीं। ऐसे में प्रियंका गांधी का नाम एक विकल्प के तौर पर उभरता है। संभव है प्रियंका अपना पहला चुनाव अपनी मां की सीट रायबरेली से लड़ें। अगर ऐसा होता है, तो तमाम कयास एक बार फिर धरे के धरे रह जाएंगे।
सोनिया के राजनीतिक संन्यास की शुरुआत?
कांग्रेस में सत्ता का हस्तांतरण जवाहरलाल नेहरू से शुरू होकर सोनिया गांधी तक पहुंचा है। भले ही कांग्रेस का अध्यक्ष कोई भी रहा हो, लेकिन यह दबी जुबान में यह बात जरूर कही जाती है कि अंतिम फैसला गांधी परिवार का ही सदस्य करता है। ऐसे में संभव है कि 77 साल की हो चुकी सोनिया गांधी अपनी विरासत उत्तराधिकारी को सौंपने पर विचार कर रही हों। रायबरेली की लोकसभा सीट आसानी से जीत सकने वाली सोनिया के राज्यसभा जाना तकरीबन इसी ओर इशारा कर रहा है।
उत्तर प्रदेश में पैठ मजबूत करना चाहती है कांग्रेस
उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस लगभग नेपथ्य में चली गई है। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के हाथ में सत्ता आए तो दशकों बीत चुके हैं। लेकिन 2014 के बाद से कांग्रेस लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन दिन पर दिन खराब होता जा रहा है। राहुल का अमेठी की सीट न बचा पाना इसकी एक बानगी भर है। जाहिर है कि कांग्रेस अब प्रदेश में अपनी पैठ मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है। राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर 19 फरवरी को अमेठी पहुंच रहे हैं। यह यात्रा 16 फरवरी से 21 फरवरी तक उत्तर प्रदेश में रहेगी।
गठबंधन पर मंडरा रहे संकट के बादल
उत्तर प्रदेश में राजनीति में बीजेपी के खिलाफ बन रहे गठबंधन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बसपा ने पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पा रही है। उधर रालोद के बीजेपी के साथ चले जाने के बाद से सपा पहले से ही बैकफुट पर है। चुनाव भी करीब हैं। ऐसे में इस बात की संभावना जोर पकड़ रही है कि इस बार विपक्ष की कई पार्टियां अकेले चुनाव मैदान में उतरें और अगर ऐसा होता है, तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।
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