हिंडनबर्ग का दावा है कि बुच दंपति की अडाणी समूह के कथित धन हेराफेरी घोटाले से जुड़े ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी है।
हिंडनबर्ग के दावों पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका : सेबी की जांच पर उठे सवाल, कहा-निवेशकों में संदेह का माहौल
Aug 14, 2024 02:49
Aug 14, 2024 02:49
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
इस नए घटनाक्रम के मद्देनजर, अधिवक्ता विशाल तिवारी ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है। यह याचिका सेबी से स्थिति रिपोर्ट मांगने वाले एक पूर्व आवेदन को सूचीबद्ध करने से इनकार करने के खिलाफ है। तिवारी का तर्क है कि यह मामला सार्वजनिक हित का है और उन हजारों निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण है, जिन्होंने पिछले साल हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट के बाद अडाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट के कारण अपना धन गंवा दिया।
सेबी की जांच पर उठे सवाल
याचिका में उल्लेख किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 3 जनवरी को सेबी को अपनी जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का समय दिया था। तिवारी का कहना है कि यह समय सीमा बीत चुकी है और अब तक सेबी ने अपनी जांच के निष्कर्षों को सार्वजनिक नहीं किया है। उनका मानना है कि निवेशकों को सेबी की जांच और उसके परिणामों के बारे में जानने का अधिकार है।
हिंडनबर्ग ने किया था खुलासा
हिंडनबर्ग की नई रिपोर्ट ने इस मामले को और भी जटिल बना दिया है। रिपोर्ट में कथित तौर पर व्हिसलब्लोअर के दस्तावेजों का हवाला दिया गया है, जो सेबी अध्यक्ष और उनके पति के कथित संबंधों को उजागर करते हैं। यह रिपोर्ट अडाणी समूह पर पिछले साल जारी की गई विनाशकारी रिपोर्ट के लगभग डेढ़ साल बाद आई है। पिछली रिपोर्ट के बाद अडाणी समूह को अपना 20,000 करोड़ रुपये का फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) रद्द करना पड़ा था।
सेबी ने आरोपों को किया खारिज
हालांकि, सेबी प्रमुख ने इन नए आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है और उन्हें निराधार बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पहले कहा था कि तीसरे पक्ष की रिपोर्ट पर विचार नहीं किया जा सकता। लेकिन तिवारी का तर्क है कि इन सभी घटनाक्रमों ने जनता और निवेशकों के मन में संदेह का माहौल पैदा कर दिया है। उनका मानना है कि ऐसी परिस्थितियों में सेबी के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी लंबित जांच को जल्द से जल्द पूरा करे और उसके निष्कर्षों की घोषणा करे।
याचिकर्त्ता ने दिया ये तर्क
इस साल जनवरी में, सुप्रीम कोर्ट ने अडाणी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए स्टॉक हेरफेर के आरोपों पर हस्तक्षेप करने या आगे की कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था। तिवारी ने अपनी वर्तमान याचिका में इस बात पर जोर दिया है कि जनवरी के फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि जांच निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूरी की जानी चाहिए। उनका तर्क है कि इसका यह अर्थ नहीं था कि कोई समय-सीमा तय नहीं की गई थी।
5 अगस्त को नहीं पंजीकृत हुआ था आवेदन
तिवारी ने पहले एक नया आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसे न्यायालय के रजिस्ट्रार ने 5 अगस्त को पंजीकृत करने से इनकार कर दिया था। रजिस्ट्रार का कहना था कि आवेदन पूरी तरह से गलत धारणा पर आधारित था और इसमें कोई उचित कारण नहीं बताया गया था। इस फैसले के खिलाफ दायर की गई नई याचिका में तिवारी ने कहा है कि उनके मौलिक अधिकार को निलंबित कर दिया गया है और उनके लिए न्यायालय के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए गए हैं।
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