गणतंत्र दिवस की परेड में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ऐतिहासिक बग्घी से दिल्ली के कर्तव्य पथ पहुंचीं। इसे कभी भारत ने टॉस में पाकिस्तान से जीता था।
26 Jan Special : पाकिस्तान से टॉस में जीती ऐतिहासिक बग्घी से कर्तव्य पथ पहुंची राष्ट्रपति मुर्मू
Jan 26, 2024 14:24
Jan 26, 2024 14:24
बटवारें के समय टॉस में पाकिस्तान से जीती थी बग्घी
दरसल, 15 अगस्त 1947 को देश को जब थी तो जमीन से लेकर हर चीज के बंटवारे के लिए नियम तय किए जा रहे थे। इसे आसान बनाने के लिए प्रतिनिधियों की नियुक्ति की गई थी। भारत के प्रतिनिधि थे एच. एम. पटेल वहीं पाकिस्तान की ओर से चौधरी मोहम्मद अली को प्रतिनिधि बनाया गया था। हर चीज का बंटवारा जनसंख्या के आधार पर हुआ। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रपति के अंगरक्षकों को 2:1 के अनुपात में बांटा गया। जब बारी आई इस ऐतिहासिक की बग्घी की, तो इसे हासिल करने के लिए दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच बहस छिड़ गई। समस्या गंभीर होती चली गई तभी, अंगरक्षकों के चीफ कमांडेंट के मन में एक तरकीब सूझी। जिसपर दोनों प्रतिनिधियों ने सहमति जाहिर की। कमांडेंट ने बग्घी के सही हकदार का फैसला करने के लिए सिक्का उछालने को कहा। ये टॉस राष्ट्रपति बॉडीगार्ड रेजिमेंट के कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविन्द सिंह और पाकिस्तान के याकूब खान के बीच हुआ। बस फिर क्या था भारत ने टॉस जीत लिया और तब से आज तक यह बग्घी राष्ट्रपति भवन की शान बनकर रही है।
क्या है इस ऐतिहासिक बग्घी की खासियत ?
हालाँकि ब्रिटिश हुकूमत के दौरान यह बग्घी वायसराय को मिली थी लेकिन आजादी के बाद इसका इस्तेमाल खास मौकों पर राष्ट्रपति को लाने ले जाने के लिए किया जाने लगा। पहली बार इसका उपयोग भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था। इसकी बनावट भी कमाल की है। काले रंग की इस बग्घी के ऊपर सोने की परत चढ़ी हुई है। और इसे खींचने के लिए खास किस्म में घोड़ों का चयन किया जाता है। आजादी के पहले इसे 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों से खिंचवाया जाता था लेकिन, अब इसे सिर्फ 4 ही घोड़े खींचते हैं। इस पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न को भी अंकित किया गया है।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बंद हो गया बग्घी का इस्तेमाल
लेकिन 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो अंगरक्षकों ने कर दी। जिसके बाद राष्ट्रपति की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए बग्घी की जगह बुलेटप्रूफ गाड़ियों का इस्तेमाल किया जाने लगा। लगभग 30 साल इस बग्घी का इस्तेमाल नहीं किया गया लेकिन इसकी उचित देखभाल होती रही। 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति भवन परिसर में घूमने के लिए बग्घी की सवारी कर लिया करते थे।
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