सेंगोल के विरोध में उठने लगे सुर : सपा ने बताया राजशाही का प्रतीक, जानिए क्या है इसका ऐतिहासिक महत्व

सपा ने बताया राजशाही का प्रतीक, जानिए क्या है इसका ऐतिहासिक महत्व
UPT | सेंगोल के विरोध में उठने लगे सुर

Jun 27, 2024 15:04

18वीं लोकसभा का पहला सत्र चल रहा है। नए सांसदों के शपथग्रहण और स्पीकर के चुनाव के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिभाषण भी गुरुवार को पूरा हो गया। वहीं दूसरी तरफ नए संसद भवन में स्थापित सेंगोल को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है।

Jun 27, 2024 15:04

Short Highlights
  • नए संसद भवन में स्थापित है सेंगोल
  • सपा ने बताया राजशाही का प्रतीक
  • हजारों साल पुराना है राजदंड का इतिहास
New Delhi : 18वीं लोकसभा का पहला सत्र चल रहा है। नए सांसदों के शपथग्रहण और स्पीकर के चुनाव के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिभाषण भी गुरुवार को पूरा हो गया। वहीं दूसरी तरफ नए संसद भवन में स्थापित सेंगोल को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है। समाजवादी पार्टी ने सेंगोल को राजशाही का प्रतीक बताते हुए उसे हटाने और सेंगोल की जगह संविधान की स्थापना करने की मांग की है। कांग्रेस ने भी सपा की इस मांग का समर्थन किया है। लेकिन आखिर नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना क्यों की गई और इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है? आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।

समाजवादी पार्टी की क्या है मांग?
समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद आरके चौधरी ने सेंगोल के विरोध में आवाज उठाई है। उन्होंने कहा कि जब से देश में संविधान लागू हुआ है, तब से देश में लोकतंत्र है। लोकतंत्र का प्रतीक संविधान है। लेकिन मोदी सरकार ने नए संसद भवन में स्पीकर की दाहिनी तरफ सेंगोल स्थापित करवा दिया। सेंगोल का मतलब है- राजा का डंडा। राजा जब अपने दरबार में बैठता था और फैसला करता था, तो डंडा पीटता था। अब देश संविधान से चलेगा या राजा के डंडे से। सेंगोल का मुद्दा हम निश्चित तौर पर उठाएंगे और मेरा मानना है कि अगर लोकतंत्र बचाना है, तो सेंगोल को हटाना है।
 
नए संसद भवन में स्थापित है सेंगोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन किया था। तब इसमें सेंगोल को स्पीकर के आसन की दाहिनी तरफ स्थापित किया गया था। इसे तमिलनाडु के अधीनम मठ से स्वीकार किया गया था। सेंगोल को लेकर अमित शाह ने दावा किया था कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 तो तमिल पुजारियों के हाथ से सेंगोल को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था। हालांकि बाद में सेंगोल को नेहरू ने प्रयागराज के म्यूजियम में रखवा दिया था।

नेहरू से सेंगोल का कनेक्शन
कहते हैं कि भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहर लाल नेहरू के पीएम बनने से पहले ये पूछा था कि अगर वह देश की आजादी को किसी खास तरह से सेलिब्रेट करना चाहें, तो बताएं। इस पर नेहरू को कुछ खास नहीं सूझा, तो उन्हें सी. राजगोपालाचारी से सलाह ली। राजगोपालाचारी को भारतीय संस्कृति और परंपराओं की अच्छी समझ थी। उन्होंने नेहरू को राजदंड से जुड़ी तमिल परंपरा के बारे में बताया। परंपरा ये थी कि थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का राजगुरु नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करता है। राजगोपालाचारी ने नेहरू से कहा कि आपके प्रधानमंत्री बनने पर यह राजदंड माउंटबेटन आपको सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में दे सकते हैं। इस पर नेहरू राजी हो गए और राजगोपालाचारी को ही इसकी तैयारी से जुड़ी सारी जिम्मेदारी सौंपी गई।

नंदी की आकृति के साथ बना राजदंड
सी. राजगोपालाचारी ने थिरुवदुथुरै अधीनम मठ से सेंगोल के लिए संपर्क किया। उस समय मठ के राजगुरु अम्बालावन देसिका स्वामीगल बीमार चल रहे थे। तबीयत खराब होने के बावजूद उन्होंने जिम्मेदारी लेते हुए मद्रास क्षेत्र के एक जौहरी को सोने का राजदंड बनाने को कहा, जिसमें नंदी की आकृति उभरी हो। इसके बाद राजगुरु ने अपने प्रतिनिधि कुमारस्वामी थम्बिरन को दो अन्य प्रतिनिधियों के साथ विशेष विमान से दिल्ली भेजा। 14 अगस्त 1947 की रात ठीक 11:45 बजे राजदंड पर गंगा जल छिड़का गया, नेहरू के माथे पर राख लगाकर माला पहनाई गई और राजदंड उन्हें सौंप दिया गया। इसके बाद इस राजदंड को इलाहाबाद के म्यूजियम में रखवा दिया गया।

इस दावे से इतिहासकार नहीं हैं सहमत
सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण के रूप में नेहरू को सौंपे जाने के अमित शाह के दावे से कई इतिहासकार सहमत नहीं है। किताब 'सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू' का संपादन करने वाले प्रोफ़ेसर माधवन पलट कहते हैं कि राजशाही का प्रतीक ऐसी चीज़ है जिसे नेहरू कभी बर्दाश्त नहीं करते। संभव है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने किसी तरह का एक उपहार स्वीकार किया हो, लेकिन सत्ता हस्तानांतरण के प्रतीक के तौर पर तो कतई नहीं। उनका कहना है कि नेहरू औपनिवेशिक देश की ओर से सत्ता के ऐसे किसी प्रतीक को कभी स्वीकार नहीं करते। जबकि तमिल यूनिवर्सिटी में आर्कियोलॉजी के प्रोफ़ेसर एस राजावेलु कहते हैं कि जब भारत आज़ाद हुआ तो प्रधानमंत्री बनने के बाद जवाहरलाल नेहरू को ये उपहार में दिया गया था। बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर राजन कुराई कृष्णन का कहना है कि नेहरू की परंपरागत चीजों के प्रति इतनी उत्सुकता नहीं थी, क्योंकि वह गंभीर लोकतंत्रवादी थे।

हजारों साल पुराना है राजदंड का इतिहास
राजदंड का इतिहास हजारों साल पुराना है। वैदिक रीतियों में भी इसका जिक्र होता है। कहते हैं कि राजदंड, राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगाने का साधन भी रहा है। महाभारत में इसी आधार पर महामुनि व्यास, युधिष्ठिर को अग्रपूजा के जरिए अपने ऊपर एक राजा को चुनने को कहते हैं। सेंगोल का संबंध चोल वंश से भी रहा है। उस समय पूर्व राजा, नए राजा को सत्ता सौंपते हुए सेंगोल सौंपता था। सेंगोल शब्द की उत्पत्ति तमिल के सेम्मई शब्द से होती है। सेम्मई का अर्थ नीतिपरायणता है। सेंगोल धारण करने वाले व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि वह नीतियों का पालन करेगा। सेंगोल का इस्तेमाल मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य, चोल साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य में भी किया  गया था। दुनिया की अन्य सभ्यताओं में भी सत्ता हस्तांतरण के लिए किसी प्रतीक को देने के प्रमाण मिलते हैं।

किसने बनाया था नेहरू को दिया सेंगोल?
चेन्नई में स्थित वुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स का दावा है कि नेहरू को सौंपे जाने वाला सेंगोल उनके द्वारा ही बनाया गया था। वुम्मिदी परिवार करीब 120 साल से यह बिजनेस कर रहा है। अब उनकी पांचवीं पीढ़ी बिजनेस में है। कहते हैं कि इसके भी पहले उनके पूर्वज वेल्लोर के एक गांव में आभूषण बनाने का छोटा धंधा करते थे। ब्रांड की वेबसाइट पर भी इस बात का जिक्र है कि माउंटबेटन ने जो सेंगोल नेहरू को सौंपा था, वह उनके पूर्वजों ने ही बनाया था। वेबसाइट पर सेंगोल के डिजाइन, इसके इतिहास और उससे जुड़े दस्तावेजों का भी जिक्र है।

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