सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर न्याय को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें उसने यह स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति के घर को केवल इस आधार पर गिराना कि वह अभियुक्त है, असंवैधानिक है...
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : घर तोड़ने को बताया असंवैधानिक, कार्रवाई से पहले नियमों का पालन जरूरी
Nov 13, 2024 21:08
Nov 13, 2024 21:08
- बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- बिना उचित नियमों का पालन किए बुलडोजर कार्रवाई गलत
- बुलडोजर एक्शन को लेकर दिए कई महत्वपूर्ण निर्देश
बिना उचित नियमों का पालन किए बुलडोजर कार्रवाई गलत
कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही आरोपी गंभीर अपराधों का दोषी हो, तब भी उसके खिलाफ बिना उचित नियमों का पालन किए बुलडोजर कार्रवाई करना गलत है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि कानून का शासन और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा आवश्यक है और यह बिना किसी शर्त के सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप हैं, तो उसे सिर्फ इन आरोपों के आधार पर उसके घर या संपत्ति को ध्वस्त करने का कोई अधिकार नहीं है।
बुलडोजर एक्शन को लेकर दिए कई महत्वपूर्ण निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर कड़ा रुख अपनाया है और इसे लेकर कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी एक व्यक्ति की गलती की सजा पूरे परिवार को नहीं दी जा सकती है और आरोपित के घर को तोड़ने का निर्णय सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही लिया जा सकता है। अदालत ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति का घर गलत तरीके से तोड़ा जाता है, तो उसे उचित मुआवजा मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी बताया कि सत्ता का दुरुपयोग किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और अधिकारियों को इस तरह की मनमानी कार्रवाई के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
अपराधी को दोषी ठहराने का काम केवल अदालत का- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बुलडोजर की कार्रवाई पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकती और यह किसी विशेष व्यक्ति के खिलाफ नफरत या भेदभाव के आधार पर नहीं की जानी चाहिए। अगर किसी व्यक्ति का घर तोड़ा जा रहा है, तो संबंधित पक्ष को अपना बचाव करने का अवसर मिलना चाहिए और उचित समय दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि इस मामले में किसी भी अपराधी को दोषी ठहराने का काम केवल अदालत का है और बिना न्यायिक फैसले के किसी को भी दोषी नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि संबंधित पक्ष को नोटिस भेजने का तरीका भी पारदर्शी और कानूनी होना चाहिए। नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से भेजा जाए और उस पर जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाए।
किसी का घर उसकी उम्मीद होती है- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के घर को केवल इस आधार पर नहीं गिराया जा सकता कि उस पर कोई अपराध का आरोप है। कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन शामिल थे, ने इस मुद्दे पर अपनी राय दी। जस्टिस गवई ने अपने फैसले में कहा कि हर व्यक्ति का घर उसकी सुरक्षा और उम्मीद का प्रतीक होता है। हर किसी का सपना होता है कि उसका आश्रय कभी न छिनें। इसके साथ ही उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का घर छीन सकती है, जिस पर केवल अपराध का आरोप है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आरोपों के आधार पर किसी का घर गिराना उचित नहीं है और आरोपों की सच्चाई का फैसला केवल न्यायपालिका ही करेगी।
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अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि कानून का शासन लोकतांत्रिक व्यवस्था का बुनियादी हिस्सा है और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि अभियुक्त के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया निष्पक्ष हो। अदालत ने यह रेखांकित किया कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखे और किसी भी कार्रवाई में पूर्वाग्रह का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता और कानूनी प्रक्रिया के पालन से संबंधित है।
सत्ता का मनमाना प्रयोग बर्दाश्त नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि किसी राज्य को बिना उचित न्यायिक प्रक्रिया के कार्रवाई करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अदालत ने कहा कि संविधान के तहत दिए गए अधिकारों को ध्यान में रखते हुए ही कोई भी आदेश जारी किया जाएगा। यह अधिकार राज्य के मनमानी कार्यों से व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि सत्ता का मनमाना प्रयोग बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी कार्रवाई से पहले सभी पक्षों की सुनवाई जरूरी है।
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सुप्रीम कोर्ट ने जारी कि गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई को लेकर महत्वपूर्ण गाइडलाइंस जारी की हैं, जो इस प्रकार हैं:
- अपील का अवसर : यदि किसी संरचना को ध्वस्त करने का आदेश पारित किया जाता है, तो उस आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए समय दिया जाएगा।
- अवैध संरचनाओं पर निर्देश : सड़क, नदी तट आदि पर अवैध संरचनाओं को प्रभावित नहीं किया जाएगा, इस पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
- कारण बताओ नोटिस : बिना कारण बताओ नोटिस के किसी भी संरचना को ध्वस्त करने की कार्रवाई नहीं की जाएगी।
- नोटिस भेजने की प्रक्रिया : संरचना के मालिक को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजा जाएगा, और नोटिस को संरचना के बाहर चिपकाया भी जाएगा।
- पक्ष रखने का समय : नोटिस तामील होने के बाद, संरचना के मालिक को अपना पक्ष रखने के लिए 15 दिनों का समय दिया जाएगा।
- सूचना भेजने की प्रक्रिया : नोटिस की तामील के बाद, कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी।
- प्रभारी अधिकारी की नियुक्ति : कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे।
- नोटिस और आदेश का विवरण : नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई होगी, यह निर्दिष्ट किया जाएगा। नोटिस और आदेश का विवरण एक डिजिटल पोर्टल पर उपलब्ध कराया जाएगा।
- व्यक्तिगत सुनवाई : प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई करेगा और उसके मिनट्स को रिकॉर्ड किया जाएगा, इसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा। इसमें यह भी तय किया जाएगा कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है।
- आखिरी आदेश : आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा। अगर अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, तो ध्वस्तीकरण के 15 दिनों के भीतर मालिक को संरचना हटाने का अवसर मिलेगा।
- विध्वंस की वीडियोग्राफी : विध्वंस की कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाएगी और वीडियो को संरक्षित किया जाएगा। विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जाएगी।
- अनुपालन न करने पर दंड : इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी।
- मुआवजा और पुनर्स्थापन : अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
- मुख्य सचिवों को निर्देश : सभी राज्य के मुख्य सचिवों को इन निर्देशों का पालन करने के लिए निर्देश दिया जाएगा।
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