सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को लेकर योगी सरकार के आदेश पर रोक लगा दी।
Explainer : यूपी में सरकारी मदद से चल रहे मदरसे नहीं होंगे बंद! सुप्रीम कोर्ट ने NCPCR के फैसले पर लगाई रोक, जानें पूरा मामला
Oct 21, 2024 16:19
Oct 21, 2024 16:19
कोर्ट का आदेश: मदरसों की कार्रवाई पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए NCPCR और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों पर अंतरिम रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि फिलहाल कोई भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश मदरसों के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं करेगा। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। अदालत ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस मामले में पक्षकार बनाने की अनुमति भी दी।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने क्यों दायर की याचिका?
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह तर्क दिया कि NCPCR की सिफारिशें और उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। याचिका में कहा गया कि मदरसों को बंद करना और गैर-मुस्लिम छात्रों को मदरसों से निकालने का आदेश गलत है और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन है, जो अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार देता है। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने जमीयत का पक्ष रखते हुए कहा कि मदरसों को बंद करने या गैर-मुस्लिम छात्रों को निकालने का आदेश न केवल अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह बच्चों के शिक्षा के अधिकार पर भी चोट करता है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस मामले में शामिल किया जाए ताकि पूरे देश में इस प्रकार के आदेशों पर रोक लगाई जा सके।
NCPCR ने क्या निर्देश दिए थे?
NCPCR ने 7 जून 2024 को उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर निर्देश दिया था कि राज्य में मौजूद गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की मान्यता वापस ली जाए और उनमें पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित किया जाए। NCPCR का तर्क था कि कई मदरसों में बच्चों को आवश्यक शिक्षा नहीं दी जा रही है और इन मदरसों में शिक्षा का स्तर निम्न है। इसके साथ ही, यह भी सुझाव दिया गया था कि मदरसों को एक अलग श्रेणी के तहत UDISE (Unified District Information System for Education) कोड दिया जाए, ताकि मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की पहचान की जा सके।
UP-त्रिपुरा ने कार्रवाई के आदेश दिए थे
इस निर्देश के बाद उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों ने कार्रवाई शुरू कर दी थी। यूपी सरकार ने 26 जून 2024 को सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी किया कि वे राज्य में मौजूद मदरसों की जांच करें और सुनिश्चित करें कि गैर-मुस्लिम बच्चों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित किया जाए। इसके साथ ही, यह भी निर्देश दिया गया कि जो मदरसे शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम का पालन नहीं कर रहे हैं, उनकी मान्यता रद्द की जाए।
मदरसों पर एनसीपीसीआर की रिपोर्ट
- रिपोर्ट में कहा गया था कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल रही है, जिससे उनका शैक्षिक विकास बाधित हो रहा है।
- कई मदरसों में बच्चों को पुस्तकें, ड्रेस और मिड-डे मील जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ भेदभाव हो रहा है, क्योंकि उन्हें समान शैक्षिक अवसर नहीं दिए जा रहे हैं।
- मदरसों में जवाबदेही की कमी है और बच्चों के अधिकारों की अनदेखी की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्देशों पर रोक लगाते हुए कहा कि फिलहाल किसी भी मदरसे के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले की अगली सुनवाई तक कोई भी राज्य सरकार NCPCR के निर्देशों के आधार पर मदरसों को बंद करने या बच्चों को निकालने का आदेश जारी नहीं करेगी।
यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम और विवाद
यह मामला उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 से भी जुड़ा है। इस अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य मदरसों को सरकारी मान्यता देना और उनकी परीक्षाएं आयोजित करना था। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 22 मार्च 2024 को इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। हाईकोर्ट का कहना था कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। इस फैसले के बाद, राज्य सरकार को मदरसों के छात्रों को औपचारिक स्कूलों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर भी रोक लगा दी थी और केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा था। कोर्ट का कहना था कि इस फैसले का असर लगभग 17 लाख छात्रों पर पड़ेगा और उन्हें स्कूलों में स्थानांतरित करने का आदेश उचित नहीं है।
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ऐसे शुरू हुआ मदरसों पर संकट...
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 22 मार्च को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि मदरसों के छात्रों को औपचारिक स्कूल शिक्षा प्रणाली में स्थानांतरित किया जाए। यह आदेश अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर आया, जिसमें मदरसा बोर्ड की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। उत्तर प्रदेश में लगभग 25,000 मदरसे हैं, जिनमें से 16,500 को मान्यता प्राप्त है और 560 को सरकारी अनुदान मिलता है, जबकि 8,500 मदरसे गैर-मान्यता प्राप्त हैं।
विपक्ष का विरोध
एनसीपीसीआर की रिपोर्ट और यूपी सरकार के आदेशों पर विपक्ष ने कड़ा विरोध जताया था। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने वाला कदम बताया था। वहीं, एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने स्पष्ट किया कि उन्होंने मदरसों को बंद करने की सिफारिश नहीं की थी, बल्कि केवल उन मदरसों की सरकारी फंडिंग रोकने की बात कही थी, जो शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन नहीं कर रहे हैं।
शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम
RTE अधिनियम 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम के तहत सभी स्कूलों, चाहे वे सरकारी हों या निजी, को निर्धारित मानकों का पालन करना होता है। NCPCR का निर्देश इसी अधिनियम के तहत उन मदरसों पर लागू होता है, जो मान्यता प्राप्त हैं या जिनकी शिक्षा प्रणाली UDISE कोड से जुड़ी है।
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