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ऑथर Asmita Patel

अपनी परंपराओं को जानें : श्मशान में महिलाओं का जाना आखिर क्यों हैं वर्जित, जानें इसके पीछे की मान्यता

श्मशान में महिलाओं का जाना आखिर क्यों हैं वर्जित, जानें इसके पीछे की मान्यता
Uttarpradesh Times | Cremation Ground

Dec 21, 2023 13:56

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार को 16वां संस्कार माना जाता है। जब कोई व्यक्ति इस दुनिया को अलविदा कहता है तो इसके बाद उसके शरीर का दाह संस्कार किया जाता है। बता दे मृतक की शव यात्रा और अंतिम संस्कार में परिवार, रिश्तेदार और पड़ोस के सभी पुरुष शामिल होते हैं, परन्तु इस समय कोई भी औरत शामिल नहीं हो सकती हैं।

Dec 21, 2023 13:56

what is Cremation : हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं। जिसमें अंतिम संस्कार को 16वां संस्कार माना जाता है। जब कोई व्यक्ति इस दुनिया को अलविदा कहता है तो इसके बाद उसके शरीर का दाह संस्कार किया जाता है। बता दे मृतक की शव यात्रा और अंतिम संस्कार में परिवार, रिश्तेदार और पड़ोस के सभी पुरुष शामिल होते हैं, परन्तु इस समय कोई भी औरत शामिल नहीं हो सकती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब भी किसी की मौत होती है तो सिर्फ घर की चौखट तक ही महिलाओं का योगदान रहता है, उसके बाद के सारे कर्मकांड को पुरुषों द्वारा ही पूरा किया जाता है। क्या आप जानते हैं महिलाएं श्मशान घाट क्यों नहीं जाती हैं, क्या है इसके पीछें का कारण...आईए जानते हैं...

रोने से आत्माओं को नहीं मिलती शांति 

ऐसा कहा जाता है कि पुरुषों का मन महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा कठोर होता हैं। अपनों के जाने का दुख तो पुरुषों को भी होता हैं पर वह औरतों की अपेक्षा कम विलाप करते हैं। इसीलिए कहते हैं कि श्मशान घाट में पुरुष ही जाते हैं, क्योंकि महिलाओं के रोने की आवाज से मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, औरतों को रोता देखकर आत्माएं भी रोने लगती हैं। 

श्मशान में होता आत्माओं का डेरा

श्मशान घाट पर हर दिन सैकड़ों शवों को जलाया जाता हैं। इसमें से कुछ आत्माओं को शांति मिलती है तो कुछ आत्माएं वहीं पर घूमती रहती है। यह आत्माएं हमेशा ही किसी जीवित प्राणी के शरीर पर कब्जा करने का अवसर ढूंढती रहती हैं। ऐसे में ये आत्माएं लड़कियों और महिलाओं के शरीर में जल्दी प्रवेश कर जाती हैं। इस वजह से भी महिलाओं को घाट नहीं ले जाया जाता है।

हड्डियों से आती अकड़ने की आवाजें

ऐसा भी कहा जाता है कि दाह संस्कार की प्रक्रिया बेहद ही भयावह होती है। दरअसल शव को अग्नि देने के लिए पहले उसे लकड़ियों से दबाया जाता है। जो कि देखने में बेहद भयानक दृश्य होता है। वहीं जब चिता जलाई जाती है तो मृत शरीर से हड्डियों के अकड़ने की आवाजें भी आती है, जिसे सुनकर महिलाएं और बच्चें भी डर सकते हैं। इस वजह से भी महिलाओं को श्मशान घाट नहीं ले जाया जाता है।

घर को नहीं करते खाली 

ऐसा भी कहा जाता है कि जब किसी घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस घर में नकारात्मक शक्तियां हावी रहती हैं। इसलिए भी घर को खाली नहीं छोड़ना चाहिए। वही श्मशान घाट से लौटने के बाद सभी पुरुष स्नान करने के बाद घर में प्रवेश करते हैं तब तक महिलाओं को घर पर ही रहना पड़ता है।

महिलाओं का मुंडन करना शुभ नहीं

हिंदू मान्यताओं के अनुसार अंतिम संस्कार में जो भी व्यक्ति श्मशान जाते हैं उन सबको अपने बाल कटवाने के बाद नहाना पड़ता हैं। जबकि महिलाओं का मुंडन करना शुभ नहीं माना जाता है। इस वजह से महिलाओं को अंतिम संस्कार में शामिल नहीं किया जाता है। 

समय के साथ जरूर बदलें ये रिवाज

हालांकि अब समय बदल गया है, आज के समाज में स्त्रियां भी श्मशान घाट जाने लगी है। एक जमाने में पुत्र को अपने पिता के सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। इस रिवाज में वर्षों से बदलाव आया है, परन्तु आज के समय में माता-पिता अपनी बेटियों को भी विरासत का अधिकार देते हैं। वहीं बता दे कि पुराने समय की मान्यताएं यह भी कहती हैं कि पुत्र जन्म और मृत्यु के बीच का सेतु बनता है। लोग इस बात पर अडिग हैं कि अगर कोई लड़की अंतिम संस्कार करती है, तो मृत व्यक्ति के लिए इस दुष्चक्र से मुक्त होना संभव नहीं होगा। हम हमेशा से ही पुरानी परंपराओं में विश्वास करते रहे हैं जो हमारे पूर्वजों से हमें दी, यह भी उन्हीं में से एक हैं। माता-पिता के अंतिम संस्कार के दौरान हर महिला उपस्थित होने की हकदार है यदि वह चाहती है।

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