श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद : हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने दिए तर्क, जानिए किसने क्या कहा

हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने दिए तर्क, जानिए किसने क्या कहा
UPT | श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद

May 31, 2024 15:48

सुनवाई में मंदिर पक्षकार की ओर से कहा गया था कि सरकारी दस्तावेजों में शाही ईदगाह के नाम से कोई संपत्ति नहीं है। ये अवैध तरीके से काबिज है।

May 31, 2024 15:48

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े 18 सिविल वादों की संयुक्त सुनवाई में मुस्लिम पक्ष ने 30 मई को लिखित बहस दाखिल की थी। उनके वकीलों का कहना है कि 18 सिविल वादों में एक भी वादी के पास प्रश्नगत संपत्ति के संबंध में वाद दाखिल करने की विधिक हैसियत नहीं है। ये न तो बनारस के राजा पटनीमल, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेशदत्त और भीखनलाल के वंशज हैं। और न ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं।

वाद की पोषणीयता पर उठे सवाल
मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने दलील देते हुए कहा कि 1947 के पहले से ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर, ईदगाह के रास्ते और सीमाएं अलग-अलग हैं। मंदिर में प्रतिदिन पूजा हो रही है तो मस्जिद में नमाज पढ़ी जा रही हैं। जन्मभूमि ट्रस्ट और शाही ईदगाह प्रबंधन के बीच कोई विवाद नहीं है। दशकों बाद वादियों द्वारा बिना किसी विधिक हैसियत के सिविल वाद दाखिल किया गया, जो पोषणीय नहीं है। हालांकि, हिंदू पक्षकारों का दावा है कि श्रीकृष्ण लला विराजमान का विधिक अस्तित्व है। वह उनके भक्त हैं। इसलिए उन्हें वाद दाखिल करने का हक है। 

मंदिर पक्ष ने दिया ये तर्क
सुनवाई में मंदिर पक्षकार की ओर से कहा गया था कि सरकारी दस्तावेजों में शाही ईदगाह के नाम से कोई संपत्ति नहीं है। ये अवैध तरीके से काबिज है। साथ ही कहा कि वक्फ संपत्ति दान में मिली संपत्ति होती है, वक्फ बोर्ड बताए कि उसे किसने विवादित संपत्ति दान में दी है। वहीं मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने कहा कि इस मामले में वाद पोषणीय नहीं है।

मंदिर पक्ष ने रखी अपनी बात
सुनवाई के दौरान श्रीकृष्ण जन्म भूमि मुक्ति निर्माण के अध्यक्ष आशुतोष पांडेय ने कहा कि ऑर्डर 7 नियम 11 इस मामले में लागू नहीं होता है। कहा कि 13 एकड़ जमीन लड्डू गोपाल की है। इसे कोई न बेच सकता है और न कोई इस जमीन का समझौता कर सकता है। यह पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम दर्ज है। ट्रस्ट ही बिजली का बिल और टैक्स जमा करता है। उन्होंने कहा कि खसरा और नगर निगम के रिकॉर्ड में भी ट्रस्ट के नाम पर ही जमीन दर्ज है। सरकारी रिकॉर्ड में कहीं भी शाही ईदगाह के नाम कोई भी जमीन नहीं है। इस मामले में वर्शिप एक्ट, लिमिटेशन एक्ट, वक्फ एक्ट के अधिनियम लागू नहीं होते हैं। आगे कहा कि ईदगाह की तरफ से जो प्रार्थना पत्र व शपथपत्र दाखिल की गई है उसपर वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के हस्ताक्षर नहीं हैं, ये फर्जी हैं।

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