इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालयों के न्यायाधीशों को निर्देश दिया है कि वे निराश्रित महिलाओं और भरण-पोषण से जुड़े मामलों का निपटारा संवेदनशीलता और न्यायिक विवेक के साथ करें।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का न्यायिक अधिकारियों को निर्देश : निराश्रित महिलाओं के मामलों में संवेदनशीलता बरतें, सहारनपुर का है मामला
Dec 24, 2024 12:34
Dec 24, 2024 12:34
सहारनपुर का है मामला
यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई के दौरान दिया। सहारनपुर निवासी एक महिला ने पारिवारिक अदालत में अपने पति के खिलाफ भरण-पोषण का वाद दायर किया था। 2019 में पारिवारिक न्यायालय ने महिला को 5000 रुपये और उसके नाबालिग बच्चे को 3000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ पति ने अपील दायर की, जिसके बाद 2023 में एकपक्षीय आदेश को रद्द कर दिया गया। इसके विरोध में महिला ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
नए सिरे से सुनवाई का आदेश
सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालतों द्वारा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में विसंगतियां पाईं और सहारनपुर की अदालत से रिपोर्ट मांगी। न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने आश्वासन दिया है कि उन्होंने इन निर्देशों का पालन शुरू कर दिया है। कोर्ट ने 1 मई को मामले को पुनः निर्णय के लिए पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के पास भेजा था। हाईकोर्ट ने उम्मीद जताई कि मामला अब तक सुलझ चुका होगा। यदि लंबित है, तो संबंधित पक्षों को तीन सप्ताह के भीतर निर्णय करना होगा।
प्रशिक्षण पर जोर
हाईकोर्ट ने लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक को निर्देश दिया कि वे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे न्यायिक अधिकारियों को भरण-पोषण मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए जागरूक करें। साथ ही, आवश्यक निर्देशों की एक सूची तैयार कर पारिवारिक न्यायालयों में इसे प्रसारित करने का सुझाव दिया।
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