इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए विवाह की न्यूनतम आयु में भेदभाव को लेकर गंभीर आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि भारत में पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित है, जबकि महिलाओं के लिए यह 18 वर्ष है।
विवाह की उम्र को लेकर हाईकोर्ट की टिप्पणी : कहा- पुरुष 21, लेकिन महिला 18 में ब्याह दी जाती, ये पितृसत्तात्मक व्यवस्था की निशानी
Nov 07, 2024 16:23
Nov 07, 2024 16:23
- विवाह को लेकर हाईकोर्ट की टिप्पणी
- न्यूनतम उम्र पर कोर्ट ने जताई आपत्ति
- समानता के अधिकार के खिलाफ बताया
समानता के अधिकार के खिलाफ बताया
अदालत ने इस मुद्दे पर अपनी टिप्पणी में कहा कि पुरुषों को शादी के लिए तीन साल अधिक समय देने का कारण यह माना गया है कि वे अपनी शिक्षा पूरी कर सकें और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बन सकें। वहीं महिलाओं को इस प्रकार का अवसर नहीं मिलता। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को लेकर मान लिया गया है कि वह सेकेंड पार्टी रहें और उन्हें बराबर का दर्जा नहीं मिले। यह भेदभाव और असमानता की स्थिति दर्शाता है, जो महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके जीवन के विकल्पों पर प्रतिबंध लगाता है। अदालत ने इसे पितृसत्तात्मक व्यवस्था की निशानी करार दिया, जिसमें पुरुष को हमेशा परिवार का प्रमुख और आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति माना जाता है।
याचिका पर हो रही थी सुनवाई
यह मामला एक शख्स द्वारा दायर की गई याचिका से जुड़ा था, जिसमें उसने अपनी बाल विवाह को खारिज करने की मांग की थी। शख्स का कहना था कि उसकी शादी 2004 में महज 12 वर्ष की आयु में हुई थी, जबकि उसकी पत्नी 9 साल की थी। उसने 2013 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत यह शादी रद्द करने की अपील की। इस कानून के तहत अगर बाल विवाह हुआ हो, तो पति-पत्नी में से कोई भी एक सदस्य शादी को रद्द करने की मांग कर सकता है, बशर्ते कि दोनों पक्ष बालिग होने के बाद दो साल के अंदर अपील करें।
पत्नी ने किया था विरोध
जब शख्स ने अपनी शादी को रद्द करने की मांग की, तो उसकी पत्नी ने इसका विरोध किया। पत्नी का कहना था कि जब उसने यह अपील की, तब वह बालिग हो चुका था, क्योंकि उसकी उम्र 18 साल से अधिक हो चुकी थी। अदालत ने इसी तर्क पर टिप्पणी करते हुए कहा कि महिला और पुरुष के विवाह के लिए न्यूमतम आयु में फर्क होना पितृसत्तात्मक व्यवस्था की निशानी है। अदालत ने इस भेदभाव को संविधान के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया और यह माना कि यह व्यवस्था सामाजिक और कानूनी दोनों दृष्टिकोण से असंगत है।
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