इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख्त रूख : पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकदमा समझौते से नहीं होगा रद्द, जमानत खारिज

पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकदमा समझौते से नहीं होगा रद्द, जमानत खारिज
UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Aug 24, 2024 01:43

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकदमों को समझौते के आधार पर रद्द करने की मांग को सख्ती से खारिज कर दिया है।

Aug 24, 2024 01:43

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) के तहत दर्ज मुकदमों को समझौते के आधार पर रद्द करने की मांग को सख्ती से खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध सबसे जघन्य अपराधों में से एक होते हैं, जो पीड़ित बच्चे के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरे और स्थायी घाव छोड़ जाते हैं। ऐसे अपराध बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिरता, और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करते हैं, और इनका प्रभाव बचपन से वयस्क होने तक बना रहता है।

आरोपी की जमानत अर्जी खारिज
कोर्ट का यह आदेश उस समय आया जब न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की बेंच ने आरोपी राम बिहारी की जमानत अर्जी पर सुनवाई की। राम बिहारी पर जालौन के थाना कोतवाली में 2021 में एक नाबालिग के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म करने के आरोप में पॉक्सो एक्ट सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। आरोपी ने कोर्ट में समझौते के आधार पर मुकदमे को रद्द करने की अर्जी दी थी।

याची के वकील ने दिया ये तर्क 
याची के वकील ने तर्क दिया कि पीड़ित के पिता ने जनवरी 2021 में आरोपी से भैंस खरीदने के लिए 40 हजार रुपये उधार लिए थे। जब पैसे वापस नहीं किए गए और आरोपी ने रकम वापस मांगी, तो पीड़ित के पिता ने उनके खिलाफ यह मुकदमा दर्ज करवा दिया। अब, दोनों पक्षों के बीच समझौता हो चुका है और इस आधार पर मुकदमे को रद्द करने की अर्जी दायर की गई है।



समझौते से समाज में गलत संदेश जाएगा
हालांकि, सरकारी वकील ने इस अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट के मामलों को रद्द करना समाज में गलत संदेश देगा और बच्चों के खिलाफ अपराध करने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा। कोर्ट ने भी सरकारी वकील की इस दलील से सहमति जताई और कहा कि पीड़ित बच्चा जब केवल 13 साल का था, तब उसके साथ यह अपराध हुआ था। तीन साल बाद जाकर उसने यह शिकायत दर्ज कराने का साहस जुटाया। कोर्ट ने माना कि ऐसे अपराध का बच्चे के मनोविज्ञान और व्यवहार पर गंभीर और व्यापक असर पड़ता है, जो उसके जीवन को हमेशा के लिए प्रभावित कर सकता है।

मनोविज्ञान पर व्यापक असर
कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध किसी भी सूरत में क्षम्य नहीं हैं और न ही इन्हें समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है। इसलिए, कोर्ट ने आरोपी की जमानत अर्जी और मुकदमे को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि इस तरह के अपराधों के लिए कोई माफी नहीं हो सकती।

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