52 क्रांतिकारियों को दी थी फांसी की सजा : एक महीने तक लटके रहे थे शव, अंग्रेजों की क्रूरता का गवाह है इमली का पेड़

एक महीने तक लटके रहे थे शव, अंग्रेजों की क्रूरता का गवाह है इमली का पेड़
UPT | 52 क्रांतिकारियों को दी थी फांसी की सजा

Aug 15, 2024 16:56

1857 की क्रांति के दौरान, अंग्रेजी हुकूमत ने इस इमली के पेड़ पर 52 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था। इनमें अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह और उनके 51 साथी शामिल थे।

Aug 15, 2024 16:56

Short Highlights
  • 52 क्रांतिकारियों को दी थी फांसी की सजा
  • एक महीने तक लटके रहे थे शव
  • बावन इमली के नाम से जाना जाता है पेड़
Fatehpur News : उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित ‘बावन इमली’ का पेड़ स्वतंत्रता संग्राम की एक दर्दनाक और प्रेरणादायक कहानी का गवाह है। 1857 की क्रांति के दौरान, अंग्रेजी हुकूमत ने इस इमली के पेड़ पर 52 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था। इनमें अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह और उनके 51 साथी शामिल थे। अंग्रेजों ने न केवल इन स्वतंत्रता सेनानियों की फांसी के लिए इस पेड़ का उपयोग किया, बल्कि उन्होंने आसपास के लोगों को भी धमकी दी कि यदि किसी ने इन शवों को पेड़ से उतारने की कोशिश की तो उसे भी यही अंजाम भुगतना पड़ेगा। इस भय और दबाव के कारण, शव एक महीने से अधिक समय तक पेड़ पर ही लटके रहे।

गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे ठाकुर जोधा सिंह
ठाकुर जोधा सिंह, जो राजपूत जाति से थे, ने 1857 की क्रांति में अपने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया। उत्तर प्रदेश के अटैया रसूलपुर गांव के निवासी, जोधा सिंह ने गुरिल्ला युद्ध में माहिर होने के कारण अंग्रेजों को काफी परेशान किया। उनकी वीरता का उदाहरण तब देखने को मिला जब उन्होंने अंग्रेज कर्नल पावेल की हत्या की और रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला कर सरकारी खजाना लूट लिया। अंग्रेजी अधिकारियों द्वारा डकैत घोषित किए जाने के बाद, कर्नल क्रस्टाइज की घुड़सवार सेना ने उन्हें पकड़ने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन जोधा सिंह ने कई बार अंग्रेजों को मात दी।

मुखबिर की सूचना पर पकड़े गए
28 अप्रैल 1858 को, जब ठाकुर जोधा सिंह अपने साथियों के साथ फतेहपुर के खजुहा लौट रहे थे, एक मुखबिर की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाइज ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। कर्नल क्रिस्टाइज ने उन्हें खजुहा के एक विशाल इमली के पेड़ के पास ले जाकर, वहां 52 फांसी के फंदे तैयार किए। जोधा सिंह और उनके साथियों को इन फंदों पर लटका दिया गया। अंग्रेज अधिकारी ने स्थानीय लोगों को चेतावनी दी कि अगर कोई भी शवों को पेड़ से उतारने की कोशिश करेगा, तो उसे भी यही सजा दी जाएगी। कर्नल की धमकी के चलते, इन शहीदों के शव एक महीने से ज्यादा समय तक पेड़ पर ही लटके रहे, इस दौरान शवों के केवल कंकाल ही रह गए।

बावन इमली के नाम से जाना जाता है पेड़
इतिहास के अनुसार, ठाकुर जोधा सिंह के साथी ठाकुर महाराज सिंह ने 1858 के प्रारंभ में 900 क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन 52 शवों को इमली के पेड़ से उतारा। इन शवों का अंतिम संस्कार गंगा नदी के किनारे शिवराजपुर घाट पर किया गया। इस दुखद घटना के बाद, ‘बावन इमली’ के पेड़ का विकास रुक गया, और आज भी यह पेड़ उस समय की यादों को संजोए हुए है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह पेड़ स्वतंत्रता संग्राम की दर्दनाक और प्रेरणादायक गाथा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आज भी अपनी कहानी सुनाता है।

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