13 साल की राखी ने जूना अखाड़े में दीक्षा लेकर साध्वी बनने का निर्णय लिया। राखी अब गौरी गिरि महारानी के रूप में पहचानी जाएंगी। गुरु महंत कौशल गिरि ने उन्हें वैदिक मंत्रोच्चार के बीच गंगा स्नान के बाद दीक्षा दी।
13 साल की राखी अब गौरी गिरी महारानी : आईएएस बनना चाहती थी आगरा के पेठा कारोबारी की बेटी, जूना अखाड़े में बिताएगी संन्यासी जीवन
Jan 09, 2025 15:44
Jan 09, 2025 15:44
गंगा स्नान के बाद दी दीक्षा
20 दिसंबर को प्रयागराज में परिवार के साथ महाकुंभ में शामिल होने के दौरान राखी ने जूना अखाड़े की दीक्षा लेने का निर्णय लिया। राखी इस फैसले ने परिवार को चौंका दिया। राखी के पिता और अन्य परिजनों ने उसे समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसने दृढ़ता से अपनी इच्छा जताई। गुरु महंत कौशल गिरि ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उसे गंगा में स्नान कराकर दीक्षा दी।
साध्वी जीवन का आरंभ
दीक्षा के बाद राखी अब "गौरी गिरि महारानी" के नाम से पहचानी जाती है। फिलहाल वह अपने माता-पिता और बहन के साथ अखाड़े के शिविर में रह रही है। परिवार के साथ रहते हुए वह साध्वी जीवन की शुरुआत कर रही है। राखी का कहना है कि उसका बचपन से आईएएस बनने का सपना था, लेकिन महाकुंभ में आने के बाद उसके विचार बदल गए। अब वह सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित होना चाहती है।
प्रयागराज : 13 साल की राखी ने जूना अखाड़े में दीक्षा लेकर साध्वी बनने का फैसला किया है। राखी अब गौरी गिरि महारानी के नाम से जानी जाएंगी। गुरु महंत कौशल गिरि ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्हें गंगा स्नान कराकर दीक्षा दिलाई।#Prayagraj #MahaKumbh2025
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12 वर्षों तक करनी होगी कठोर तपस्या
महंत कौशल गिरि के अनुसार संन्यास परंपरा में दीक्षा लेने की कोई आयु सीमा नहीं होती। गौरी गिरि को अब 12 वर्षों तक कठोर तप करना होगा। इस दौरान वह गुरुकुल परंपरा के अनुसार वेद, उपनिषद और अन्य धर्म ग्रंथों का अध्ययन करेगी। इसके बाद वह तप और साधना के जरिए सनातन धर्म का प्रचार करेंगी।
बचपन से भक्ति की ओर झुकाव
राखी के पिता संदीप उर्फ दिनेश जो पेठा फैक्टरी में काम करते हैं और उसकी मां रीमा सिंह एक गृहिणी हैं। राखी की छोटी बहन निक्की अभी सात साल की है। राखी ने अपनी शिक्षा का आरंभ कानपुर में अपने मामा के घर से किया। कक्षा एक से तीन तक की पढ़ाई के बाद वह डौकी के महादेव इंटर कॉलेज और फिर कुंडौल के स्प्रिंगफील्ड इंटर कॉलेज में पढ़ी। परिवार के अनुसार राखी स्कूल से घर आने के बाद सीधा पूजा-पाठ में जुट जाती थी। उसका अध्यात्म की ओर झुकाव तीन साल पहले गांव के काली मां मंदिर में लगातार होने वाली कथाओं के दौरान बढ़ा।
पिता का कहना- बेटी की इच्छा के आगे मजबूर हूं
राखी के दादा रोहतान सिंह धाकरे और दादी राधा देवी के अनुसार राखी हमेशा से पढ़ाई और पूजा-पाठ पर ध्यान देती थी। पूजा-पाठ में उसकी गहरी रुचि थी। राखी के पिता दिनेश सिंह कहते हैं, "बेटी को भगवा वस्त्र में देखकर मेरी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। मैं दुखी हूं, लेकिन उसकी इच्छा के आगे मजबूर हूं।"
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