1942 के कुंभ मेले में वायसराय जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने पंडित मदनमोहन मालवीय के साथ मेला क्षेत्र का अवलोकन किया। लाखों लोगों को त्रिवेणी संगम में स्नान और पूजा करते देख वायसराय हैरान रह गए।
अतीत के आईने में महाकुंभ : मदन मोहन मालवीय ने बताया था दो पैसे में कुंभ कराने का फार्मूला, सुनकर हैरान हो गए थे वायसराय
Jan 10, 2025 17:35
Jan 10, 2025 17:35
वायसराय का अनुभव
1942 के कुंभ मेले में वायसराय जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने पंडित मदनमोहन मालवीय के साथ मेला क्षेत्र का अवलोकन किया। लाखों लोगों को त्रिवेणी संगम में स्नान और पूजा करते देख वायसराय हैरान रह गए। उन्होंने मालवीय जी से पूछा, “इस आयोजन पर कितना खर्च होता है?” मालवीय जी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “केवल दो पैसे।” जब वायसराय ने इसका कारण पूछा, तो मालवीय जी ने अपनी जेब से पंचांग निकालते हुए कहा, “यह पंचांग ही है जो लोगों को पर्व और स्नान की तिथियां बताता है। श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ते हैं।” इस जवाब ने वायसराय को न केवल हैरान किया, बल्कि कुंभ मेले के प्रति उनकी श्रद्धा भी बढ़ा दी।
इतिहास में ब्रिटिश प्रशासन में कुंभ का आयोजन दर्ज
प्रयागराज के क्षेत्रीय अभिलेखागार में संरक्षित 1882 के दस्तावेज कुंभ मेले के आर्थिक पहलुओं पर रोशनी डालते हैं। उस समय मेले के आयोजन पर 20,228 रुपये खर्च हुए थे, जबकि सरकार को 49,840 रुपये की आय हुई। इसका अर्थ है कि ब्रिटिश सरकार को 29,612 रुपये का शुद्ध लाभ हुआ। इन दस्तावेजों के अनुसार मेले से अर्जित धन केवल राजकोष में जमा नहीं किया गया, बल्कि इलाहाबाद शहर के विकास में भी लगाया गया। इस धन का उपयोग अस्पतालों, पेयजल व्यवस्था, सड़कों और शिविरों जैसी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में किया गया। यह दर्शाता है कि कुंभ मेला अंग्रेजों के लिए न केवल धार्मिक आयोजन था, बल्कि एक प्रभावी वित्तीय योजना भी।
ब्रिटिश प्रशासन में कुंभ का आर्थिक महत्व
ब्रिटिश के शासन काल में उत्तर-पश्चिम प्रांत के सचिव एआर रीड ने कुंभ मेले की व्यवस्थाओं पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें जॉइंट मैजिस्ट्रेट विल्सन द्वारा भेजी गई रिपोर्ट भी शामिल थी। रिपोर्ट में मेले के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं, सफाई व्यवस्था, और श्रद्धालुओं के लिए शिविरों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया था। यह भी बताया गया कि मेले की आय का उपयोग शहर के विकास कार्यों में किया गया।
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