असल जिंदगी में नागा साधु उस संकल्प का नाम है, जिसने अपना पूरा जीवन ऐसी तपस्या, साधना में लगा दिया हो, जिसके बारे में कल्पना करना भी मुश्किल है। इन नागा साधुओं में बड़ी संख्या महिलाओं की भी है, जिन्होंने जीवन के अलग-अलग अनुभव के बाद खुद को नागाओं की दुनिया का हिस्सा बना लिया। किसी के मन में सांसारिक जीवन से वैराग्य का भाव जाग उठा तो किसी ने कड़वे अनुभव से सबक लेते हुए ये कठिन राह चुनी।
मोक्ष की राह में शारीरिक सौंदर्य का त्याग : कड़ी साधना के बाद कहलाती हैं महिला नागा साधु, जानें कैसी करनी पड़ती है तपस्या
Jan 11, 2025 17:49
Jan 11, 2025 17:49
आसान नहीं है नागाओं की दुनिया के रहस्य को समझना
महाकुंभ में नागा साधुओं की रहस्मयी दुनिया को जानने समझने के लिए लोग प्रयासरत हैं। जिस अखाड़े में उन्हें नागा साधु नजर आते हैं, उनकी कोशिश होती है कि उनसे जीवन का मर्म समझा जा सके। महाकुंभ में हर प्रकार के नागा साधु नजर आ रहे हैं। हठ योग को देखकर लोग उनके संकल्प का अंदाजा लगा रहे हैं। कोई नागा साधु कंटीली झाड़ियों के साथ जीवन गुजार रहा है, तो किसी ने वर्षों से अपने हाथ को उठाया हुआ है। किसी के सिर पर जटाओं का कई गुना भार मौजूद है तो किसी का शरीर रुद्राक्ष की मालाओं से लदा पड़ा है। वास्तव में ये नागा साधुओं के जीवन का बेहद छोटा सा हिस्सा है, जो महाकुंभ के दौरान देखने को मिल रहा है।
मोक्ष की राह पर परीक्षा के कड़े मापदंड से गुजरती हैं महिला नागा साधु
असल जिंदगी में नागा साधु उस संकल्प का नाम है, जिसने अपना पूरा जीवन ऐसी तपस्या, साधना में लगा दिया हो, जिसके बारे में कल्पना करना भी मुश्किल है। इन नागा साधुओं में बड़ी संख्या महिलाओं की भी है, जिन्होंने जीवन के अलग-अलग अनुभव के बाद खुद को नागाओं की दुनिया का हिस्सा बना लिया। किसी के मन में सांसारिक जीवन से वैराग्य का भाव जाग उठा तो किसी ने कड़वे अनुभव से सबक लेते हुए ये कठिन राह चुनी। पुरुषों की तुलना में महिलाओं का नागा साधु बनन और भी जटिल है। शारीरिक तौर पर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमजोर माना जाता है। लेकिन, जब बात नागा साधु बनने की होती है तो किसी भी परंपरा में ढील की गुंजाइश नहीं होती है। मोक्ष की राह में सभी समान है, इसलिए नियम भी स्त्री और पुरुष दोनों के लिए बराबर हैं।
महिलाओं को लंबी प्रक्रिया के बाद नागाओं की दुनिया में मिलता है प्रवेश
अखाड़ों की पंरपरा के अनुसार, एक दिन में कोई महिला या पुरुष नागा साधु नहीं बनाया जा सकता है। इसके लिए एक लंबी प्रक्रिया होती है। अगर कोई महिला नागा साधु बनना चाहती है तो उसे सांसारिक भोग-विलास की आदत तो त्यागकर कड़ी परीक्षाओं से गुजरना होता है। कम से कम छह महीने तक उसके दृढ़ निश्चय को परखा जाता है, उसके परिवार से सहमति ली जाती है कि वह उसे नागा साधु बनाने को सहमत है या नहीं। महिला को इस दौरान अखाड़ों की कड़ी साधना की पंरपरा का सुबह से लेकर देर रात तक पालन करना पड़ता है। इसके बाद वह घड़ी आती है, जब उसे नागाओं की दुनिया में प्रवेश कराते हुए उसका हिस्सा बनाया जाता है।
पिंडदान के साथ सामाजिक जीवन का अंत
नागा साधु बनने से पहले महिला को जीवित रहते अपना पिंडदान करना होता है। पुरुषों की तरह उन्हें भी इस परंपरा से गुजरना होता है। इसके पीछे मान्यता है कि उनमें सामाजिक जीवन के प्रति किसी प्रकार का मोह बाकी न रह जाए। एक तरह से ये उनके सामाजिक जीवन का अंत होता है, क्योंकि सनातन परंपरा में किसी इंसान की मौत के बात ही उसका पिंडदान किया जाता है। ऐसे में नागा साधु बनने वाली महिलाएं भी इस पंरपरा को निभाती हैं। इसके बाद उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मोक्ष की प्राप्ति करना होता है।
मुंडन के बाद पवित्र नदी में स्नान, शिव और दत्तात्रेय भगवान को जीवन समर्पित
सामाजिक जीवन के अहम श्रृंगार अपने बालों को समर्पित करते हुए उन्हें मुंडन कराना पड़ता है। अखाड़ों की परंपरा के अनुसार, महिला को पवित्र नदी में स्नान कराया जाता है। महिला नागा साधु पूरे दिन ईश्वर का जाप करती हैं। ब्रह्ममुहुर्त में उठकर वह महादवे का जाप करती हैं। शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा उनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा होता है। दिन में भी वह शिव आराधना में तल्लीन रहती हैं। अखाड़े में वह त्याग और अनुशासन के हर उस मापदंड को अपनाती हैं, जो पुरुष नागा साधु अपनाते हैं।
बिना अनुमति महिला नागा साधुओं से नहीं हो सकती मुलाकात
महाकुंभ के दौरान पुरुष नागा साधु तो नजर आ जाते हैं। लेकिन, महिला नागा साधुओं के पास कोई बिना अनुमति के नहीं जा सकता। अखाड़े की अनुमति के बाद ही उनसे बातचीत की जा सकती है। कुंभ के आयोजन के दौरान नागा साधुओं के साथ ही महिला साधु भी पवित्र स्नान पर्व में शामिल होती हैं। हालांकि, पुरुष नागा साधुओं के स्नान करने के बाद वह नदी में स्नान करती हैं। अखाड़े की महिला नागा साधु को माई, अवधूतानी या नागिन कहकर संबोधित किया जाता है।
6 से 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का कठोर पालन जरूरी
वास्तव में महिला नागा साधु बनने का मार्ग बेहद कठिन और अनुशासन से भरा होता है। इच्छुक महिलाओं को पहले 6 से 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का कठोर पालन करना होता है। इस दौरान उन्हें अपने गुरुओं को यह प्रमाणित करना होता है कि वे सांसारिक मोह-माया त्यागने और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए तैयार हैं। इसीलिए दीक्षा प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण पिंडदान को माना जाता है। इसमें महिला अपने पुराने जीवन को त्यागकर भगवान के प्रति समर्पण की घोषणा करती है। इसके बाद उनका सिर मुंडवा दिया जाता है और गंगा स्नान कर उन्हें नया जीवन प्रदान किया जाता है।
गेरुआ वस्त्र और भस्म होती है जीवन का हिस्सा
महिला नागा साधु नग्न नहीं रहतीं, बल्कि उन्हें गेरुआ वस्त्र धारण करने की अनुमति होती है। ये वस्त्र कहीं से सिले हुए नहीं होते, बल्कि कपड़े के एक टुकड़े के रूप में शरीर पर लपेटे जाते हैं। इनके माथे पर तिलक और पूरे शरीर पर भस्म का लेप होता है। भस्म का यह लेप सांसारिक वस्त्रों से अलगाव और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। महिला नागा साधु अपने श्रृंगार में विशेष परंपराओं का पालन करती हैं। उनके 17 श्रृंगारों में लंगोट, भभूत, चंदन, कड़ा, रुद्राक्ष की माला और गुथी हुई जटाएं शामिल हैं। ये सभी उनके आध्यात्मिक जीवन और तपस्या का प्रतीक हैं।
विदेशी महिलाएं भी नागा साधु बनने में आगे
आधुनिक जीवनशैली के बीच भले ही ये बात प्रचलन में है कि लोग अपनी परंपरा से दूर होते जा रहे हैं। सनातन की प्राचीन परंपरा तो बड़ी बात है, रोजमर्रा की जिंदगी में भी इसका पालन नहीं किया जाता। लेकिन, एक सच्चाई ये भी है कि नागा साधु बनने के लिए आगे आने वाली महिलाओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ये महिलाएं सिर्फ भारत के विभिन्न हिस्सों से नहीं बल्कि पड़ोसी देश नेपाल और विदेशी धरती से भी जुड़ी हुई हैं। विदेश की संस्कृति का त्याग करते हुए सनातन की परंपराओं को अपनाने वाली इन महिलाओं की संख्या अधिक है। इन्होंने कड़ी तपस्या के बाद नागा साधु होने का गौरव हासिल किया है। इन्हें अब अपना जीवन कठिन नहीं लगता बल्कि इन्होंने खुद को पूरी तरह अखाड़ों की परंपरा में रमा दिया है। ये अब इस लोक की नहीं बल्कि परलोक की कामना को लेकर अपने धार्मिक दायित्व को निभा रही हैं। इनका जीवन समर्पण और साधना को अर्पित है।
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