महानिर्वाणी अखाड़ा अपनी अनूठी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। इस अखाड़े में 375 वर्षों से धर्म ध्वजा के साथ-साथ पर्व ध्वजा भी फहराई जाती है।
महाकुंभ 2025 में महानिर्वाणी अखाड़ा : पर्व ध्वजा की 375 साल पुरानी परंपरा का जीवंत प्रतीक
Jan 20, 2025 17:00
Jan 20, 2025 17:00
पर्व ध्वजा का ऐतिहासिक महत्व
महानिर्वाणी अखाड़े के महंत यमुना पुरी बताते हैं कि पर्व ध्वजा की परंपरा 1662 में आरंभ हुई थी। मुगल शासनकाल में जब साधु-संतों और अखाड़ों पर अत्याचार किए गए, तब धर्म की रक्षा के लिए कई संघर्ष हुए।
- बनारस युद्ध, 1662: महानिर्वाणी अखाड़े के साधु-संतों ने मुगलों के खिलाफ धर्म और अस्तित्व की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा था।
- प्रयागराज कुंभ संघर्ष: मुगलों ने कुंभ स्नान पर रोक लगाने का प्रयास किया, जिसका महानिर्वाणी और अटल अखाड़े ने विरोध किया और धर्म रक्षा का संकल्प लिया।
पर्व ध्वजा और धर्म ध्वजा
- धर्म ध्वजा: अध्यात्म और धर्म का प्रतीक, जिसे सभी अखाड़ों की छावनियों में फहराया जाता है।
- पर्व ध्वजा: शौर्य और संघर्ष का प्रतीक, जिसकी ऊंचाई धर्म ध्वजा के समान 52 हाथ होती है।
महाकुंभ में ध्वजा स्थापना की परंपरा
महानिर्वाणी अखाड़े की छावनी में सबसे पहले धर्म और पर्व ध्वजा स्थापित की जाती हैं। अमृत स्नान के बाद इन ध्वजों की रस्सियों को धीरे-धीरे ढीला किया जाता है, जो परंपरा का हिस्सा है।
गौरवशाली इतिहास की प्रेरणा
महंत यमुना पुरी कहते हैं कि पर्व ध्वजा वीर साधु-संतों के बलिदान और धर्म रक्षा के संघर्ष की अमर कहानी को जीवंत करती है। यह ध्वजा केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं की रक्षा का प्रतीक भी है। महानिर्वाणी अखाड़ा इन मूल्यों को आगे बढ़ाते हुए समाज में धर्म और शौर्य का संदेश देता है।
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