महाकुंभ को हिंदुस्तान के आध्यात्मिक वैभव का प्रतीक माना जाता है। जहां इतना बड़ा जनसमूह है, वहां की एक अर्थव्यवस्था भी होगी। उत्तर प्रदेश टाइम्स के साथ पढ़िए खास रिपोर्ट....
महाकुंभ में आस्था से अर्थव्यवस्था तक : विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में करोड़ों का कारोबार, लाखों को रोजगार
Jan 17, 2025 16:38
Jan 17, 2025 16:38
महाकुंभ में एक ओर केंद्र और राज्य सरकार हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही हैं तो दूसरी ओर कारोबारी भी ब्रांडिंग से लेकर व्यवसाय के तक अवसर भुना रहे हैं। जाहिर है कि मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि एक बड़ा वाणिज्यिक और वित्तीय अवसर भी है। इस बार आयोजन के लिए करीब 7,500 करोड़ रुपये का बजट सामने आ रहा है। इस धनराशि में केंद्र सरकार का योगदान भी शामिल है, जिसने इस बार आयोजन के लिए 2,100 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार आयोजन के लिए लगभग 5,435 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है। यह 2019 में हुए कुंभ मेले के 4,200 करोड़ रुपये के बजट से कहीं अधिक है। महाकुंभ से लाखों लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। ऐसा आयोजन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी गति देता है।
कितनी रिच है महाकुंभ की इकनॉमी?
महाकुंभ को हिंदुस्तान के आध्यात्मिक वैभव का प्रतीक माना जाता है। यह धर्म-संस्कृति के साथ सामाजिक स्फूर्ति का भी प्रतीक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में आध्यात्म से जुड़ा कारोबार काफी बढ़ा है। इस आयोजन से पर्यटन, परिवहन, फूड और बेवरेज कारोबार, होटल और अस्थायी आवास और स्थानीय हस्तशिल्प उद्योगों को जबरदस्त लाभ होता है। महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों के कारण उन शहरों और उनके आसपास के क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार किया जाता है। सड़कें, पुल, स्वास्थ्य सुविधाएं, स्वच्छता, बिजली आपूर्ति, और जल आपूर्ति व्यवस्था को बेहतर बनाया जाता है। इस आयोजन के माध्यम से ही सही, लेकिन इसके बाद स्थानीय निवासियों और भविष्य के पर्यटकों को इसका फायदा मिलता रहता है। सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होती है। टिकट शुल्क, पार्किंग शुल्क, स्टॉल का किराया, पर्यटन शुल्क आदि से राज्य और केंद्र सरकार के खजाने में भारी वृद्धि होती है। विदेशी पर्यटकों के आगमन से विदेशी मुद्रा का भी प्रवाह होता है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद है।
महाकुंभ को लेकर उद्योग जगत काफी उत्साहित है। पर्यटन सहित विभिन्न कंपनियों को उम्मीद है कि यहां से उन्हें अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के कई अवसर मिल सकते हैं, इसलिए उद्योग जगत महाकुंभ में ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर कम से कम 3000 करोड़ रुपये खर्च करने जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदुस्तान यूनिलीवर से लेकर ईवी कंपनियों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है, कंपनियां व्यावसायिक लाभ के लिए भरोसे के इस संगम का फायदा उठाना चाहती हैं, वे मार्केटिंग पर पहले से कहीं ज्यादा खर्च कर रही हैं, स्टॉल लगा रही हैं, यहां तक कि वितरकों की नियुक्ति भी शुरू कर दी है। इतना ही नहीं कई कंपनियां आध्यात्मिक पैकेज भी लॉन्च कर रही हैं, डाबर जैसी कंपनियों ने भी इस आयोजन के लिए खास तैयारी की है।
बढ़ता गया महाकुंभ का महाबजट
महाकुंभ 2025 के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा बजट 5,435.68 करोड़ रुपये निर्धारित किया है, जो 2019 के कुंभ मेले के 4,200 करोड़ रुपये के बजट से काफी अधिक है। इस विशाल आयोजन की कुल लागत लगभग 7,500 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जिसमें केंद्र सरकार का 2,100 करोड़ रुपये का योगदान भी शामिल है। वर्तमान में 421 परियोजनाएं प्रगति पर हैं, जिनमें से 3,461.99 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। इन परियोजनाओं में बुनियादी ढांचे का विकास, यातायात व्यवस्था, सुरक्षा, स्वच्छता और श्रद्धालुओं की सुविधाओं का व्यापक प्रबंधन शामिल है।
महाकुंभ का बजट और श्रद्धालुओं की संख्या समय के साथ उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। 1882 में जब भारत की जनसंख्या 22.5 करोड़ थी, महाकुंभ पर मात्र 20,288 रुपये खर्च किए गए और मौनी अमावस्या पर लगभग 8 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। 1894 में जनसंख्या बढ़कर 23 करोड़ हो गई और 10 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया, जिस पर 69,427 रुपये खर्च हुए। 1906 में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर 25 लाख हो गई और खर्च 90,000 रुपये था। 1918 में 30 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया और बजट 1.37 लाख रुपये था।
हाल के वर्षों में महाकुंभ का आर्थिक प्रभाव भी काफी बढ़ा है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अनुसार 2013 के महाकुंभ से 12,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ, जो 2019 में बढ़कर 1.2 लाख करोड़ रुपये हो गया। 2019 के कुंभ मेले ने 6 लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित किए। इस दौरान बुनियादी ढांचे, होटल और हवाई अड्डों का भी विकास हुआ।
2025 के महाकुंभ से और भी बड़े आर्थिक लाभ की उम्मीद है। भारतीय उद्योग जगत ने केवल ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर 3,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है। 45 दिनों तक चलने वाला यह आयोजन न केवल पर्यटन और रोजगार को बढ़ावा देगा, बल्कि स्थानीय व्यवसायों और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह आयोजन भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का अवसर भी है।
सरकार को क्या मिलता है?
प्रयागराज में संगम किनारे दिव्य-भव्य महाकुंभ को देखते हुए मन में सवाल आता है कि आख़िर इतने बड़े आयोजन और ख़र्च के ज़रिए सरकार को क्या हासिल होता होगा। प्रयागराज में वर्ष 2019 के अधर्कुंभ में मेला क्षेत्र के ज़िलाधिकारी रहे विजय किरण आनंद से बातचीत में इस पर तस्वीर काफी हद तक साफ हुई। उनसे बातचीत में पता चला कि सरकार चूंकि इस पर जनसुविधा के नजरिए से पैसे खर्च करती है इसलिए कोई आधिकारिक ब्योरा नहीं जुटाया जाता कि कितनी आय सरकारी खजाने को हुई।
सरकार को इस आयोजन में आय दो तरह से होती है, एक तो प्राधिकरण की आय है और दूसरी जो कई तरीक़े से होते हुए राज्य के राजस्व खाते में जाती है। प्राधिकरण मेला क्षेत्र में जो दुकानें आवंटित करता है, तमाम कार्यक्रमों की अनुमति दी जाती है, कुछ व्यापारिक क्षेत्रों का आवंटन किया जाता है, इन सबसे थोड़ी बहुत आय होती है. "छोटे व्यापारी और पंडे जो कमाई करते हैं उससे भी सरकार को कुछ न कुछ राजस्व की प्राप्ति होती ही है लेकिन ये राशि इस आयोजन पर ख़र्च होने वाले धन की तुलना में बहुत कम होती है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि सरकार को प्रत्यक्ष लाभ भले ही न हो लेकिन परोक्ष रूप से यह आयोजन सरकारों के लिए घाटे का सौदा नहीं होता है. परोक्ष रूप से राज्य के राजस्व में काफ़ी लाभ होता है।
कुंभ की सप्लाई चेन को समझिए
महाकुंभ 2025 की आपूर्ति श्रृंखला और आर्थिक प्रभाव को तीन व्यापक आयामों में समझा जा सकता है। पहले आयाम में पर्यटन और परिवहन सेवाएं आती हैं, जिनमें होटल, रेस्तरां, गाइड सेवाएं, हवाई यात्रा, रेल और सड़क परिवहन शामिल हैं। इन सभी क्षेत्रों में यात्रियों की बढ़ी हुई संख्या के कारण आय में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है। रोजगार सृजन का पहलू भी उल्लेखनीय है - निर्माण कार्य, सुरक्षा सेवाएं, सफाई कर्मचारी, यातायात व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं और अस्थायी स्टॉल के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होती है, जो स्थानीय बेरोजगारी दर को कम करने में मदद करती है।
दूसरा आयाम व्यापार और वाणिज्य से जुड़ा है। छोटे-बड़े व्यापारियों को अपने उत्पाद बेचने का विशाल अवसर मिलता है, क्योंकि तीर्थयात्री भोजन, पूजा सामग्री, कपड़े और स्मृति चिन्हों की बड़ी मात्रा में खरीदारी करते हैं। स्थानीय हस्तशिल्प, कला, वस्त्र और खाद्य पदार्थों का व्यापार भी फलता-फूलता है। किसानों को अपनी उपज बेचने का बेहतर अवसर मिलता है, और मकान मालिकों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है क्योंकि तीर्थयात्रियों के आवास के लिए निजी घरों का भी उपयोग किया जाता है।
तीसरे आयाम में प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चुनौतियां आती हैं। 2025 के आयोजन में विशेष ध्यान दिया जा रहा है कि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। इतनी विशाल भीड़ का प्रबंधन, स्वच्छता का रखरखाव, बिजली और पानी की निर्बाध आपूर्ति, और सुरक्षा व्यवस्था प्रमुख प्राथमिकताएं हैं। स्वास्थ्य सेवाओं को भी विशेष रूप से सुदृढ़ किया जाता है। इन व्यवस्थाओं से काराबार और रोजगार को भी मजबूती मिलती है।
सरकार का अनुमान है कि महाकुंभ 2025 के दौरान करोड़ों लोगों की आवाजाही से स्थानीय व्यापार और रोजगार में भारी वृद्धि होगी। छोटे दुकानदार, टैक्सी और रिक्शा चालक, गाइड और स्थानीय कारीगरों के लिए यह मेला आय का एक बड़ा स्रोत है।
रोज़गार और राजस्व
महाकुंभ 2025 के 49-दिवसीय आयोजन में 400-450 मिलियन आगंतुकों के शामिल होने का अनुमान रहा। मेले में बड़ी संख्या में ऑस्ट्रेलिया, यूके, कनाडा, मलेशिया, सिंगापुर, साउथ अफ़्रीका, न्यूज़ीलैंड, ज़िम्बावे और श्रीलंका जैसे देशों से बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक आते रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में आगंतुकों के आने से शहर में व्यावसायिक गतिविधियां तेज होना स्वाभाविक है। कारोबार है तो रोजगार भी होगा और राजस्व भी। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की रिपोर्ट के अनुसार, इस मेले से राज्य सरकार को लगभग एक लाख बीस हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने की संभावना है। यह राजस्व विभिन्न क्षेत्रों जैसे आतिथ्य, एयरलाइंस, पर्यटन, लक्जरी टेंट और बड़ी कंपनियों के स्टॉल से प्राप्त होगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन का लाभ केवल मेजबान राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे नजदीकी राज्यों को भी मिलता है, क्योंकि बड़ी संख्या में पर्यटक इन राज्यों का भी भ्रमण करते हैं।
महाकुंभ का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव रोजगार सृजन के क्षेत्र में देखने को मिलता है। CII की रिपोर्ट के अनुसार, इस आयोजन से छह लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे। ये रोजगार निर्माण, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कार्यक्रम नियोजन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में होंगे। इसके अतिरिक्त, अस्थायी और स्थायी नौकरियों की संख्या में भी वृद्धि होगी। इस आयोजन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बड़ा बढ़ावा मिलेगा। छोटे व्यवसायी और कारीगर अपने उत्पादों की बिक्री कर सकेंगे। तीर्थयात्रियों द्वारा खाद्य पदार्थ, वस्त्र, धार्मिक वस्तुएं और स्मृति चिन्हों की बड़ी मात्रा में खरीदारी से स्थानीय व्यापारियों और समुदायों को लाभ होगा। साथ ही, यह मांग स्थानीय कला, हस्तशिल्प और पारंपरिक व्यंजनों को भी बाजार देगी।
कुंभ से साथ भी, कुंभ के बाद भी
हजारों करोड़ का बजट, लगभग एक साल तक चलने वाली तैयारियां, दिल्ली-लखनऊ से लेकर प्रयागराज तक योजनाओं का कार्यान्वन सिर्फ डेढ़ से दो महीने के अस्थायी आयोजन के लिए नहीं है। इसे प्रयागराज और यूपी के इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूती मिलती है। रेलवे, हवाई यातायात से लेकर सड़क परिवहन तक के संसाधनों का लिटमस टेस्ट होता है। जब मुख्य स्नान पर्वों पर एक साथ करोड़ों का रेला उमड़ता है तो संसाधनों के समृद्ध होने का अहसास भी होता है और कई मौकों पर कमजोरी से पर्दा भी उठ जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, केंद्र और राज्य सरकार मिलकर इस आयोजन पर सीधे साढ़े छह हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही हैं। यह खर्च मुख्य रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट व्यवस्था पर किया जा रहा है।
कुंभ का पहला बड़ा फायदा यह है कि कुंभ के आयोजन के कारण प्रयागराज की बुनियादी सुविधाओं में निरंतर सुधार होता है, जिससे यहां का स्थायी विकास संभव होता है। उदाहरण स्वरूप, इस बार 7,000 नई इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जा रहा है, जो कुंभ के बाद भी पूरे प्रदेश की सेवा में रहेंगी। यह एक स्थाई व्यवस्था है, जो कुंभ के बाद भी जारी रहेगी और उत्तर प्रदेश में परिवहन के क्षेत्र में सुधार लाएगी।
यूपी की अर्थव्यवस्था का बूस्टर डोज
गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाणिज्य संकाय के अधिष्ठाता प्रो. श्रीवर्धन पाठक का मानना है कि यह महाकुंभ प्रयागराज को एक वैश्विक सांस्कृतिक और पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करेगा। उनके अनुसार 45 करोड़ लोगों की भागीदारी से तीन लाख करोड़ रुपये की आर्थिक गतिविधियां संभव होंगी। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि यह आयोजन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की संकल्पना को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के हेड ऑफ प्रोग्राम कॉर्डिनेटर स्वामी विशाल आनंद ने महाकुंभ मेले की तुलना वर्ल्डकप जैसे आयोजनों से करते हुए इसके दूरगामी प्रभाव गिनाते हैं। उनका कहना है कि यह मेला सिर्फ एक आयोजन नहीं है, बल्कि यह नए संबंधों, चर्चाओं और सहयोग का माध्यम है जो निरंतर विकसित होता रहता है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ से भारत के आध्यात्मिक पर्यटन को नया आयाम मिलेगा और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होना स्वाभाविक है। ऐसे आयोजनों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ने से होटल, ट्रेन और एयरलाइंस की आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।
उत्तर प्रदेश की नई पहचान
धार्मिक पर्यटन के विकास से उत्तर प्रदेश की पहचान मजबूत हो रही है। आधुनिक सुविधाओं के साथ पारंपरिक आस्था का संगम हो रहा है। इससे प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण हो रहा है। रोजगार और आर्थिक विकास को नई दिशा मिल रही है। यह विकास मॉडल अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन रहा है। स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए विभिन्न पहल की जा रही हैं। धार्मिक स्थलों के आसपास होटल, रेस्तरां और अन्य सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। स्थानीय कारीगरों और व्यापारियों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पर्यटन से जुड़े रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। इससे युवाओं को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिल रहा है।
धार्मिक पर्यटन पर जोर
उत्तर प्रदेश धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है जहां अयोध्या, मथुरा और काशी जैसे प्रमुख तीर्थ स्थल स्थित हैं। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या, कृष्ण की लीलाभूमि बृज और शिव की नगरी काशी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं। चित्रकूट जैसे ऐतिहासिक स्थल भी प्रदेश की धार्मिक विरासत को समृद्ध बनाते हैं। प्रदेश के प्रत्येक जिले में छोटे-बड़े धार्मिक स्थल मौजूद हैं। विशेष अवसरों पर इन स्थलों पर श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच जाती है। सरकार प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक पर्यटन स्थल के विकास पर जोर दे रही है। धार्मिक स्थलों के विकास के लिए बड़े पैमाने पर धन आवंटित किया गया है। केंद्र सरकार भी इन प्रयासों में सहयोग कर रही है।
राम मंदिर निर्माण पूरा होने से बढ़ेंगे श्रद्धालु
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का विकास धार्मिक पर्यटन की सफलता का एक उदाहरण है। वर्ष 2023 में यहाँ 10 करोड़ से अधिक पर्यटक और श्रद्धालु आए। अयोध्या में राम मंदिर के बाद रोजाना 1-1.5 लाख लोग आ रहे हैं। यह संख्या स्वर्ण मंदिर और वैष्णो देवी जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों से भी अधिक है। योगी सरकार की दूरदर्शी नीतियों से धार्मिक पर्यटन प्रदेश की आर्थिक प्रगति का माध्यम बन रहा है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण 2025 तक पूरा होने की संभावना है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के बाद वाराणसी में सालाना पर्यटकों की संख्या 10 करोड़ के करीब पहुंच गई है। विंध्यधाम और नाथ कॉरिडोर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। अयोध्या दीपोत्सव, काशी की देव दीपावली, बरसाने की होली जैसे आयोजनों को विशेष महत्व दिया जा रहा है। इन आयोजनों में मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत उपस्थिति इनके महत्व को बढ़ाती है।
नया धार्मिक क्षेत्र विकसित होगा
नीति आयोग के सुझाव पर वाराणसी और प्रयागराज को मिलाकर एक नया धार्मिक क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। इस क्षेत्र में चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, मीरजापुर और भदोही जिले शामिल होंगे। यह क्षेत्र 22 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक का होगा। इस परियोजना से लगभग 2.38 करोड़ लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा। यह क्षेत्र धार्मिक पर्यटन को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।
औद्योगिक विकास पर भी जोर
धार्मिक स्थलों के विकास के साथ-साथ औद्योगिक विकास भी प्राथमिकता में है। अयोध्या और रामसनेही घाट के बीच एक औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। प्रयागराज में भी इसी तरह की योजना है। नए धार्मिक क्षेत्र में नॉलेज पार्क की स्थापना की योजना है। ये विकास कार्य स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देंगे। इससे पूर्वांचल के विकास को नई गति मिलेगी।
भारत में धार्मिक पर्यटन
भारत में धार्मिक पर्यटन का विशेष महत्व है जो आस्था और अर्थव्यवस्था को एक साथ जोड़ता है। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली चैंबर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 60 प्रतिशत से अधिक घरेलू यात्राएं धार्मिक स्थलों की होती हैं। धार्मिक पर्यटन न केवल आर्थिक विकास का माध्यम है, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी महत्वपूर्ण केंद्र है। इन स्थलों पर बेहतर बुनियादी सुविधाएं, परिवहन संपर्क और सुरक्षा व्यवस्था आवश्यक है। वैश्विक धार्मिक पर्यटन की अर्थव्यवस्था 2032 तक 2.2 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।
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