महाकुम्भ 2025 : नए रूप में नजर आएगा महर्षि दुर्वासा का प्राचीन आश्रम...जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन

नए रूप में नजर आएगा महर्षि दुर्वासा का प्राचीन आश्रम...जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
UPT | महर्षि दुर्वासा का प्राचीन आश्रम

Dec 25, 2024 13:09

प्रयागराज को सनातन संस्कृति में तीर्थराज के रूप में माना जाता है, जो यज्ञ और तप की भूमि के रूप में प्रसिद्ध है। वैदिक और पौराणिक कथाओं में प्रयागराज का उल्लेख उन स्थानों के रूप में किया गया है...

Dec 25, 2024 13:09

Prayagraj News : प्रयागराज को सनातन संस्कृति में तीर्थराज के रूप में माना जाता है, जो यज्ञ और तप की भूमि के रूप में प्रसिद्ध है। वैदिक और पौराणिक कथाओं में प्रयागराज का उल्लेख उन स्थानों के रूप में किया गया है, जहां कई देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तपस्या की। इन्हीं ऋषियों में से एक महर्षि दुर्वासा हैं, जो ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र थे। महर्षि दुर्वासा को उनके क्रोध और श्रापों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। 

महर्षि दुर्वासा ने देवताओं को दिया श्राप 
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा ने देवताओं को श्राप दिया, जिससे वे शक्तिहीन हो गए। इस श्राप के प्रभाव के कारण देवता संकट में पड़ गए और उन्हें भगवान विष्णु के मार्गदर्शन पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करना पड़ा। महर्षि दुर्वासा का तपस्थल प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र में गंगा के किनारे स्थित है, जहां वह शिव जी की तपस्या करते थे। कहानी के अनुसार, महर्षि दुर्वासा का क्रोध ही वह कारण था, जिसके चलते उन्हें प्रयागराज में आकर भगवान शिव की तपस्या करनी पड़ी। यह स्थान धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।



इस कारण देवताओं को करना पड़ा समुद्र मंथन 
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी।

भगवान विष्णु ने दी सलाह
देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। इसके बाद, महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था। 

इस शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान 
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है। 

कहां स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम 
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।

पर्यटन विभाग ने करवाया जीर्णोद्धार 
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।

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