SC-ST एक्ट के दुरुपयोग पर हाईकोर्ट सख्त : 'राज्य सरकार इसे गंभीरता से ले'..., विजिलेंस टीम बनाने का निर्देश

'राज्य सरकार इसे गंभीरता से ले'..., विजिलेंस टीम बनाने का निर्देश
UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Sep 22, 2024 14:36

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक निगरानी तंत्र स्थापित नहीं होता, तब तक FIR दर्ज करने से पहले घटनाओं और आरोपों की सत्यता की जांच की जानी चाहिए। इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वास्तविक पीड़ितों को सुरक्षा और मुआवजा...

Sep 22, 2024 14:36

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यह निजी आर्थिक लाभ की लालच में कमजोर समुदाय के सदस्यों की सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और इसके समाधान के लिए एक विजिलेंस टीम का गठन करे। इसके साथ ही, निगरानी तंत्र को मजबूत करने और विकसित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है।

FIR के सत्यापन की प्रक्रिया आवश्यक
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक निगरानी तंत्र स्थापित नहीं होता, तब तक FIR दर्ज करने से पहले घटनाओं और आरोपों की सत्यता की जांच की जानी चाहिए। इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वास्तविक पीड़ितों को सुरक्षा और मुआवजा मिले, जबकि झूठी शिकायतें करने वालों के खिलाफ धारा 182 (अब धारा 214) के तहत कार्रवाई कर उन्हें दंडित किया जा सके। कोर्ट ने कहा कि सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कानूनों का दुरुपयोग न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और जन विश्वास को कमजोर करता है। इसलिए, FIR के सत्यापन की प्रक्रिया आवश्यक है। इस दिशा में पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को उचित प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।



कोर्ट ने इस मामले में की सुनवाई
कोर्ट ने यह निर्देश एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने बिहारी और दो अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मामला संभल जनपद के थाना कैला देवी में दर्ज SC/ST एक्ट से संबंधित है। इस मामले में पुलिस ने FIR और चार्जशीट पेश की, और सरकार ने पीड़ित को 75 हजार रुपये का मुआवजा दिया। बाद में दोनों पक्षों के बीच समझौता होने पर आपराधिक केस रद्द करने के लिए याचिका दाखिल की गई। कोर्ट ने शिकायतकर्ता को तलब करते हुए कहा कि उसे सरकार को मुआवजे के रूप में मिली 75 हजार रुपये वापस करने होंगे। इसके लिए जिला समाज कल्याण अधिकारी के नाम एक डिमांड ड्राफ्ट तैयार करके डीएम को जमा करना होगा और इस संबंध में रिपोर्ट भी पेश करनी होगी।

मुआवजा के लिए हो रहे झूठे केस दायर
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में उल्लेख किया है कि संज्ञेय और असंज्ञेय दोनों प्रकार के अपराधों को समझौते के जरिए समाप्त किया जा सकता है। इस आधार पर, कोर्ट ने पक्षकारों के बीच समझौते को मान्यता देते हुए आदेश दिया कि शेष 25 हजार रुपये के मुआवजे का भुगतान नहीं किया जाए। कोर्ट के सामने शिकायतकर्ता ने बताया कि गांव वालों के उकसावे पर उसने झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई थी और भविष्य में सतर्क रहने का आश्वासन दिया। कोर्ट ने कहा कि यह एक्ट कमजोर वर्ग के पीड़ितों को तुरंत न्याय देने का उद्देश्य रखता है, लेकिन कई मामलों में यह देखा गया है कि सरकार से मुआवजा हासिल करने के लिए झूठे केस दायर किए जा रहे हैं।

झूठे मामले दर्ज करने वालों पर कोर्ट सख्त
कोर्ट ने कहा कि जो लोग झूठे मामले दर्ज कर सरकारी मुआवजा प्राप्त करते हैं, उनकी जवाबदेही सुनिश्चित की जाए और उन्हें दंडित किया जाए। इसके अलावा, एक निगरानी तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है ताकि सुरक्षा प्रदान करने वाले कानूनों का दुरुपयोग न हो सके और असली पीड़ितों को राहत मिल सके। कोर्ट ने यह भी बताया कि झूठे मामलों से वास्तविक घटनाओं को नुकसान पहुंचता है, न्याय प्रक्रिया पर संदेह उत्पन्न होता है और जनता का भरोसा टूटता है, जिसे रोकना आवश्यक है। कोर्ट ने आदेश की प्रति सभी जिला जजों और डीजीपी को भेजने का निर्देश भी दिया है।

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