इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी : ट्रायल कोर्ट के जजों के फैसले पर उठाए सवाल, कहा- कार्रवाई से बचने को आरोपित ठहराए जाते हैं दोषी

ट्रायल कोर्ट के जजों के फैसले पर उठाए सवाल, कहा- कार्रवाई से बचने को आरोपित ठहराए जाते हैं दोषी
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Sep 20, 2024 10:20

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की खंडपीठ ने कहा कि कई मामलों में ट्रायल कोर्ट...

Sep 20, 2024 10:20

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की खंडपीठ ने कहा कि कई मामलों में ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश ऐसे आरोपियों को दोषी ठहराते हैं। जिन्हें बरी किया जाना चाहिए। उनका ऐसा करना कई बार हाईकोर्ट की कार्रवाई से बचने के लिए होता है।

किस मामले में की सुनवाई
यह टिप्पणी अलीगढ़ की सत्र अदालत के 2010 के फैसले के खिलाफ वीरेंद्र सिंह व अन्य की आपराधिक अपीलों की सुनवाई के दौरान की गई। ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को दहेज हत्या के मुख्य आरोपों से बरी कर दिया था। जबकि उन्हें केवल आपराधिक धमकी के लिए दोषी ठहराया गया था। खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय से सहमति जताते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोपियों को दोषी ठहराने को अनुचित बताया। अदालत ने एकल न्यायाधीश द्वारा ट्रायल कोर्ट को नोटिस जारी करने के मामले में जल्दबाजी के लिए भी आलोचना की।


न्यायालय ने कहा...
अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय का यह आचरण निचली अदालत के न्यायिक अधिकारियों में डर पैदा करने का कारण बनता है। खंडपीठ ने तत्कालीन सत्र न्यायाधीश को निर्णय की एक प्रति भेजने का निर्देश दिया ताकि उन्हें यह समझ में आ सके कि उन्होंने मामले में कोई त्रुटि नहीं की है।

जानिए क्या था मामला
यह मामला 2006 का है जिसमें कुमारी भूमिका नामक विवाहिता की शादी के सात साल के भीतर मृत्यु हो गई। ससुराल वालों का कहना था कि उसकी मौत घर की छत से गिरने के कारण हुई। जबकि उसके पिता ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे। इस पर दहेज हत्या का मामला दर्ज किया गया। ट्रायल कोर्ट से बरी होने के बाद राज्य ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जबकि आरोपियों ने धारा 506 के तहत मिली सजा को चुनौती दी। खंडपीठ ने कहा कि यदि विवाह के सात वर्ष के भीतर किसी महिला की मृत्यु असामान्य परिस्थितियों में होती है तो केवल दोषसिद्धि और सजा का आदेश पारित नहीं किया जा सकता। मेडिकल साक्ष्य से स्पष्ट है कि मृतका को सिर में गंभीर चोट लगी थी, जब वह फोन पर बात करते समय लगभग 22 फीट की ऊंचाई से गिरी थी।

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