महाकुंभ मेला, जो 13 जनवरी 2025 से शुरू हुआ है, प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित हो रहा है। इसमें लाखों श्रद्धालु और साधु-संत गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों में स्नान करने आते हैं। महाकुंभ में नागा साधु और अघोरी साधु विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र होते हैं।
महाकुंभ 2025 : नागा साधु और अघोरी साधु में क्या है अंतर, जानें उनके नियम और किसकी करते हैं पूजा
Jan 18, 2025 14:35
Jan 18, 2025 14:35
- महाकुंभ में नागा साधु और अघोरी साधु का विशेष महत्व
- नागा साधु सनातन धर्म के रक्षक माने जाते हैं
- अघोरी साधु अपनी अजीब और रहस्यमयी प्रथाओं के लिए प्रसिद्ध हैं
कौन होते हैं नागा साधु
नागा साधु धर्म के रक्षक हैं और समाज में धर्म का प्रचार करते हैं। आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में इस परंपरा की शुरुआत की थी। ये साधु अखाड़ों में रहकर अनुशासित और संगठित जीवन जीते हैं। कठिन तपस्या और शरीर पर भस्म लगाना उनकी साधना का हिस्सा है। धर्म की रक्षा के लिए आदि शंकराचार्य नागा योद्धा द नागा वॉरियर्स तैयार किए थे। उन्होंने नागाओं को बाहरी आक्रमण से उनके पवित्र धार्मिक स्थलों, धार्मिक ग्रंथों और आध्यात्मिक ज्ञान की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी।
12 वर्षों की कठोर तपस्या
नागा साधु और अघोरी साधु दोनों ही शिव की पूजा करते हैं, लेकिन इनके तप और साधना के तरीके अलग होते हैं। नागा साधु बनने के लिए 12 साल की कठोर तपस्या करनी होती है। इस प्रक्रिया में पहले छह साल में नए सदस्य को केवल लंगोट पहनने की अनुमति होती है। फिर, उसे 'महापुरुष' और 'अवधूत' का दर्जा मिलता है। जहां कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं। नागा साधु स्वयं का पिंडदान करते हैं। और दंडी संस्कार (जिसे 'बिजवान' कहते हैं) भी संपन्न होता है। इस दौरान, नागा साधु अपने पुराने जीवन को त्याग कर पूर्ण रूप से तप और साधना में लीन हो जाते हैं।
कौन होते हैं अघोरी साधु?
अघोरी, नागा साधु से अलग होते हैं। ये सांसारिक मोह माया से अलग श्मशान या फिर रहस्यमय जगहों पर रहते हैं। अघोरी केवल 12 वर्षों तक ही तपस्या नहीं करते बल्कि ये उम्र भर तपस्या करते हैं। वहीं, अघोरी साधुओं के लिए ब्रहाचर्य का कोई नियम नहीं होता। अघोरी साधु उनकी अद्भुत और रहस्यमयी प्रथाओं के लिए जाने जाते है। मानव खोपड़ी अघोरी साधुओं की खास निशानी होती है। अघोरी शब्द का मतलब संस्कृति में उजाले की ओर होता है। माना जाता है कि अघोरी साधु भगवान शिव के अनन्य भक्त होते हैं। बताया जाता है कि वह मानव खोपड़ी में ही खाना खाते हैं। भगवान दत्तात्रेय को अघोरी साधु का गुरु माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय को भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा का अवतार कहा जाता है।
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