दुकानों पर नाम लिखने पर छिड़ा बवाल तो DIG ने दी सफाई : बोले- 'धर्म छिपाने के आए थे मामले'

बोले- 'धर्म छिपाने के आए थे मामले'
UPT | दुकानों पर नाम लिखने पर छिड़ा बवाल

Jul 18, 2024 16:08

मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा कांवड़ मार्ग में पड़ने वाले दुकानों, होटल और ढाबों पर संचालकों या प्रोपराइटर के नाम लगाना अनिवार्य किए जाने पर बाल छिड़ा, तो अब सफाई देने के लिए खुद सहारनपुर के डीआईजी को सामने आना पड़ा है।

Jul 18, 2024 16:08

Short Highlights
  • दुकानों पर नाम लिखने पर छिड़ा बवाल
  • DIG अजय साहनी ने दी सफाई
  • विवाद ने गरमाई प्रदेश की सियासत
Saharanpur News : मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा कांवड़ मार्ग में पड़ने वाले दुकानों, होटल और ढाबों पर संचालकों या प्रोपराइटर के नाम लगाना अनिवार्य किए जाने पर बाल छिड़ा, तो अब सफाई देने के लिए खुद सहारनपुर के डीआईजी को सामने आना पड़ा है। डीआईजी अजय कुमार साहनी का कहना है कि पूर्व में धर्म छिपाने के मामले सामने आए थे। ऐसे में कांवड़ मार्ग पर नाम लगाने का ये फैसला लिया गया है। हालांकि लगता नहीं कि ये विवाद इतनी जल्दी थमने वाला है।

क्या बोले सहारनपुर के डीआईजी?
डीआईजी अजय साहनी ने कहा कि 'जैसा कि पूर्व में भी मामले आए हैं कि रेट लिस्ट को लेकर और खाने की चीजों को लेकर दुकानों, ढाबों पर विवाद हुआ। इसके अलावा मामले ये भी मिले कि किसी दुकान पर नॉनवेज है या किसी अन्य धर्म का व्यक्ति किसी अन्य नाम से होटल ढाबा खोला हुआ है, इसे लेकर हमेशा दिक्कत आती रही है। इसे देखते हुए ही निर्णय लिया गया था कि जो दुकान, होटल या ढाबे हैं, उस पर प्रोपराइटर या मालिक का नाम अंकित हो, दुकानों पर रेट लिस्ट लगी हो, साथ ही दुकान पर काम करने वालों का नाम भी अंकित हो। इस पर सभी से बातचीत हो गई है और आम सहमति बन गई है।'
 
क्यों शुरू हुआ ये विवाद?
दरअसल 22 जुलाई से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो रही है। इस यात्रा के लिहाज से मुजफ्फरनगर काफी महत्वपूर्ण है। कांवड़ यात्रा का करीब 240 किलोमीटर का रूट मुजफ्फनगर में पड़ता है। पुलिस ने एक आदेश जारी कर कहा है कि दुकान, ठेले, होटल, ढाबे इत्यादि जहां से भी खान-पान की चीजें खरीदी जा सकती हों, इन पर प्रोपराइटर या काम करने वाले अपना नाम लिखकर टांग दें, ताकि शिवभक्तों को कोई कंफ्यूजन न हो। पुलिस के आदेश के बाद कई दुकानों और ठेलों पर नाम लिखकर टांग भी दिया गया है।

विपक्ष ने सरकार को घेरा
पुलिस के इस आदेश पर सियासी गलियारों में युद्ध छिड़ गया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा- 'और जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा? माननीय न्यायालय स्वत: संज्ञान ले और ऐसे प्रशासन के पीछे के शासन तक की मंशा की जाँच करवाकर, उचित दंडात्मक कार्रवाई करे। ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं।' वहीं असदु्द्दीन ओवैसी ने इसका विरोध करते हुए लिखा- 'उत्तर प्रदेश पुलिस के आदेश के अनुसार अब हर खाने वाली दुकान या ठेले के मालिक को अपना नाम बोर्ड पर लगाना होगा ताकि कोई कांवड़िया गलती से मुसलमान की दुकान से कुछ न खरीद ले। इसे दक्षिण अफ्रीका में अपारथाइड कहा जाता था और हिटलर की जर्मनी में इसका नाम Judenboycott था।'

टीएमसी ने भी दर्ज कराया विरोध
इस पूरे मसले पर टीएमसी ने मुजफ्फरनगर पुलिस की मानवाधिकार आयोग में शिकायत की है। पार्टी की सांसद  महुआ मोइत्रा ने कहा- 'अब आगे क्या? क्या मुसलमानों को अपने हाथ पर निशान बनाना पड़ेगा। अगली बार कांवड़िये को किसी डॉक्टर या खून की जरूरत पड़ेगी, तो दूसरे कांवड़िये को ढूंढना पड़ेगा। यह गैरकानूनी और असंवैधानिक है।' वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसका विरोध करते हुए लिखा कि 'उत्तर प्रदेश मुजफ्फरनगर के पुलिस कप्तान की मुंह जुबानी सुनिए कह रहे हैं कि कांवड़ यात्रा शुरू हो गई है इसीलिए सभी होटल वाले फल वाले या रेहड़ी दुकानदार अपने-अपने दुकानों प्रतिष्ठानों में अपना नाम अवश्य लिखवाये जिससे कि कांवरियों को किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री खरीदने में कोई संदेह  ना रहे और बाद में किसी प्रकार का आरोप प्रत्यारोप ना हो! यह वयान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (1)  एव अनुच्छेद 15 (2) ’क’  धर्म ,मूलवंश ,जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव न करने का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है सांप्रदायिक सौहार्द तोड़ने वं संविधान विरोधी आचरण करने वाले पुलिस अधीक्षक मुजफ्फरनगर के खिलाफ  प्रदेश एवं केंद्र की सरकार से अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की मांग करता हूं।'

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