शामली जनपद में स्थित ऐतिहासिक मनहार खेड़ा किला एक बार फिर विवाद के केंद्र में है। राजपूत समाज के लोग इस किले को अपने पूर्वजों की धरोहर मानते हैं और इराष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के विधायक अशरफ अली खान इसे अपनी संपत्ति बताते हैं।
शामली के मनहार खेड़ा किले पर विवाद : आमने-सामने आए विधायक अशरफ अली और राजपूत वंशज, मालिकाना हक को लेकर तकरार
Jan 01, 2025 16:49
Jan 01, 2025 16:49
विधायक का दावा
आरएलडी विधायक अशरफ अली खान का कहना है कि यह किला उनके पूर्वजों की संपत्ति है। उनके मुताबिक किले के सभी दस्तावेज उनके पास मौजूद हैं। विधायक का दावा है कि 1863 के बंदोबस्त रिकॉर्ड में यह किला उनके पूर्वजों के नाम दर्ज है। उन्होंने कहा कि वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर इस विवाद को उनके संज्ञान में लाएंगे।
राजपूत समाज का दावा
हालांकि राजपूत समाज ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि किले का मालिकाना हक उनके पास होना चाहिए। 1868 में सहारनपुर कोर्ट ने अशरफ अली के पूर्वजों के दावे को खारिज कर दिया था। इसके बावजूद विधायक और उनके परिवार का किले पर कब्जा है। राजपूत समाज का कहना है कि किले को संरक्षित किया जाए और इसे उनके पूर्वजों की धरोहर के रूप में मान्यता दी जाए। साथ ही किले में मारे गए राजपूतों की अस्थियों का सनातन रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाए। हिंदू संगठनों ने भी किले को संरक्षित करने की मांग को लेकर अपनी रणनीति तैयार कर ली है। उनका कहना है कि ऐतिहासिक धरोहर को बचाना जरूरी है।
भानुप्रताप सिंह ने दी चेतावनी
भानुप्रताप सिंह ने चेतावनी दी है कि यदि किले को संरक्षित नहीं किया गया और इसे राजपूत समाज को नहीं सौंपा गया तो वे आंदोलन तेज करेंगे। वहीं विधायक अशरफ अली भी किले पर अपना दावा बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।
पुरातत्व विभाग की जांच
मनहार खेड़ा किले पर बढ़ते विवाद को देखते हुए पुरातत्व विभाग ने इस पर कदम उठाया है। विभाग ने शामली के एसडीएम से किले से संबंधित सभी दस्तावेज मंगवाए हैं। एसडीएम हामिद हुसैन ने ये दस्तावेज विभाग को सौंप दिए हैं। पुरातत्व विभाग अब किले की ऐतिहासिकता और कानूनी स्थिति की जांच कर रहा है।
किले का इतिहास
मनहार खेड़ा किले का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। राजपूत समाज के भानुप्रताप सिंह का दावा है कि यह किला उनके पूर्वज राजा धारू और उनके वंशजों की संपत्ति था। उन्होंने कहा कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस किले में समय बिताया था। वर्ष 1350 में राजा धारू और उनके वंशज यहां शासन करते थे, लेकिन मुगलकाल के दौरान सरदार जलाल खान ने धोखे से किले पर कब्जा कर लिया और राजपूत राजपरिवार को खत्म कर दिया। भानुप्रताप का कहना है कि किले में मारे गए 1444 राजपूतों की अस्थियों का अभी तक अंतिम संस्कार नहीं हुआ है।
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