भगवती मां अन्नपूर्णा का सत्रह दिवसीय महाव्रत मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष पंचमी तिथि यानि 20 नवंबर से 7 दिसंबर किया जा रहा है। जिसकी शुरुआत आज से की गई। इस महाव्रत में भक्तों को पूरे 17 दिनों तक अन्न का त्याग करना होता है, दिन में सिर्फ एक बार फलहाल का सेवन कर भक्त इस कठिन व्रत को रखते हैं।
काशी में आज से शुरू हुआ 17 दिनों का महापर्व : धान की बाली से सजा मंदिर, जानें मां अन्नपूर्णा के पवित्र व्रत का विशेष महत्व
Nov 20, 2024 17:03
Nov 20, 2024 17:03
पूजन से होती है सुख की प्राप्ति
महंत शंकर पुरी ने बताया कि मां अन्नपूर्णा का व्रत और पूजन करने से सुख की प्राप्ति होती है और जीवन भर अन्न, धन और समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती। महंत ने आगे बताया कि यह महाव्रत 17 दिनों का होता है। इस महाव्रत में सुबह और शाम देवी की पूजा की जाती है, इस दौरान देवी का अनुष्ठान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महंत पुरी ने आगे बताया कि युवक, युवतियां और पुरुष सभी इसकी पूजा कर सकते हैं, इसमें किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती।
भक्त धारण करते हैं 17 गांठों वाला धागा
इस व्रत में भक्त 17 गांठों वाला धागा धारण करते हैं। महिलाएं इसे बाएं हाथ में और पुरुष दाएं हाथ में धारण करते हैं। इसमें अन्न खाना वर्जित है। केवल एक वक्त फलाहार किया जाता है जो बिना नमक का होता है । 17 दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान का समापन 7 दिसंबर को होगा। उस दिन भगवती मां का धान की बालियों से श्रृंगार किया जाएगा।
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अन्नपूर्णा व्रत की क्या है मान्यता
मां अन्नपूर्णा के गर्भ गृह समेत मंदिर परिसर को सजाया जाता है और प्रसाद स्वरूप धान की बाली 8 दिसंबर को प्रातः से मंदिर बंद होने तक आम भक्तों में वितरण किया जायेगा। मान्यता यह भी है कि पूर्वांचल के बहुत से किसान अपनी फसल की पहली धान की बाली मां को अर्पित करते हैं और उसी बाली को प्रसाद के रूप में दूसरी धान की फसल में मिलाते हैं। वे मानते हैं कि ऐसा करने से फसल में बढ़ोतरी होती है।
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