शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंद माता की पूजा-अर्चना का विधान है। इन्हें बागेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां सरस्वती का एक रूप होने के कारण यहां पूजन अर्चन करने वाले भक्तों को ज्ञान प्राप्ति एवं निसंतान लोगों को...
Varanasi News : नवरात्रि के 5वें दिन स्कंदमाता के दर्शन को उमड़े भक्त, पूजन से होती है संतान की प्राप्ति
Oct 07, 2024 13:28
Oct 07, 2024 13:28
भोर से ही लग गईं भक्तों की कतारें
वाराणसी के जैतपुरा में माता स्कंदमाता का मंदिर है। नवरात्रि के पांचवें दिन माता की भोर में मंगला आरती के बाद भक्तों के लिए पट खोल दिए गए। दर्शन करने वालों की लंबी कतार लगी हुई है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
भक्तों को मिलता है मोक्ष
शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। इसलिए मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है।
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