नवरात्र के तीसरे दिन चंद्रघंटा माता के दर्शन पूजन का विधान है। वाराणसी में चौक स्थित माता चंद्रघंटा का प्राचीन मंदिर है। जहां नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा के दर्शन के लिए मंगला आरती के बाद...
Varanasi News : नवरात्र के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा के दर्शन को उमड़े भक्त, घंट के ध्वनियों से असुरों...
Apr 11, 2024 13:48
Apr 11, 2024 13:48
माता ने किया अनेकानेक असुरों का संहार
चैत्र नवरात्र की शुरुआत 9 अप्रैल से हुई है। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री का दर्शन पूजन किया जाता है। दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी एवं तीसरे दिन चंद्रघंटा माता के दर्शन पूजन करने का विधान है। चौक स्थित माता चंद्रघंटा के प्राचीन मंदिर में दर्शन करने के लिए भोर से ही भक्तों की लंबी लाइन लगी है। माता चन्द्र घंटा के स्वरूप की व्याख्या करें तो चंद्रमा शांति का प्रतीक हैं और घंटा नाद के साथ शांति का सन्देश देने वाली माता ही चंद्रघंटा हैं। असुरासुर संग्राम में देवी ने इसी घंटे की नाद से अनेकानेक असुरों का दमन किया। माता के तेज और पुन्ज्य प्रकाश के साथ नाद के स्वर ने असुरों का संहार कर दिया। माता का दर्शन करने आये श्रद्धालुओं ने माता से देश समाज और परिवार की सुख शांति के लिए माता से प्रार्थना किया।
माता पूरा करती हैं मुराद
चंद्रघंटा माता मंदिर की पुजारी भैभव नाथ योगेश्वर ने बताया कि नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री, द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी एवं तृतीय दिन चंद्रघंटा माता के दर्शन पूजन किया जाता है। आज माता चंद्रघंटा का पूजन करने का विधान है। माता चंद्रघंटा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है एवं उनके मस्तिष्क पर अर्द्ध चंद्र सुशोभित है। इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र घंटियां हैं। भगवती चंद्र घंटा असुरों दैत्यों का संहार अपने घंटियों के ध्वनि मात्र से करती है। काशी के लोगों की मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति की अंतिम घड़ी होती है तो उनके कंठ में विराजमान होकर अपने घंटे की ध्वनि से मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। नवरात्र के तीसरे दिन भक्त माता को नारियल चुनरी प्रसाद चढ़कर उनकी जो भी मान्यता होती है, उसको पूरा करती हैं।
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