काशी के जीआई टैग उत्पादों की फेहरिश्त दिनों दिन बढ़ती जा रही है। स्वतंत्रता क्रांति की अलख जगाने वाली बनारस की तिरंगी बर्फी और ढलुआ मूर्ति (ढलाई शिल्प) को भी जीआई टैग मिल...
Varanasi News : तिरंगी बर्फी एवं ढलुआ मूर्ति को मिला जीआई टैग, गुप्त सूचनाओं के लिए होता था...
Apr 17, 2024 14:57
Apr 17, 2024 14:57
प्रदेश के लिए गौरव का पल : डॉ. रजनीकांत
पद्मश्री जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने कहा कि यह पूरे प्रदेश के लिए गौरव का पल है। वाराणसी क्षेत्र के दो उत्पादों को जीआई टैग मिला है। काशी के पक्के महाल में बड़े चाव से बनाई व खाई जाने वाली तिरंगी बर्फी और काशीपुरा की गलियों में सैकड़ों साल से बन रहे बनारस धातु ढलाई शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) को जीआई टैग मिला है। वहीं, बरेली जरदोजी, बरेली केन बंबू क्राफ्ट, थारू इंब्रायडरी और पिलखुआ हैंडलाक प्रिंट टेक्सटाइल को भी जीआई टैग से नवाजा गया है। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही यूपी देश में सर्वाधिक 75 जीआई टैग वाला राज्य बन गया है। काशी क्षेत्र और पूर्वांचल के जनपदों में कुल 34 जीआई उत्पाद देश की बौद्धिक संपदा अधिकार में शुमार हो गए, जो दुनिया के किसी भू-भाग में नहीं है।
खुफिया सूचनाओं के लिए हुआ तिरंगी बर्फी का इजाद
देश की आजादी के आंदोलन के समय क्रांतिकारियों की खुफिया मीटिंग व गुप्त सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए तिरंगी बर्फी का इजाद हुआ था। इसमें केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और बीच में सफेद रंग के लिए खोया व काजू का इस्तेमाल किया जाता है। आज भी पक्का महल की गलियों में बड़े चाव से गर्व के साथ बनारसी तिरंगी बर्फी खाते हैं। बनारस ढलुआ शिल्प में ठोस छोटी मूर्तियां, जिसमें मां अन्नपूर्णा, लक्ष्मी-गणेश, दुर्गाजी, हनुमान जी, विभिन्न प्रकार के यंत्र, नक्कासीदार घंटी-घंटा, सिंहासन, आचमनी, पंचपात्र और सिक्कों की ढलाई वाले सील ज्यादा मशहूर रहे हैं।
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