स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा, अखिलेश यादव ने कुंभ और सनातन धर्म पर पूर्व में दिए गए बयानों के विपरीत आचरण किया है। गंगा स्नान के जरिए खुद को सनातनी दिखाने की कोशिश उनके दोहरे मापदंड को उजागर करती है। भारतीय परंपरा का यह प्रभाव सराहनीय है।
अखिलेश यादव के गंगा स्नान का वीडियो वायरल : वाराणसी के संत समाज ने तीखी प्रतिक्रिया देकर सपा सुप्रीमो की पहल को दोहरे मापदंड वाला बताया
Jan 15, 2025 18:54
Jan 15, 2025 18:54
गंगा स्नान और दोहरे मापदंड का आरोप
स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा, अखिलेश यादव ने कुंभ और सनातन धर्म को लेकर पूर्व में दिए गए बयानों से विरोधाभासी व्यवहार दिखाया है। जो व्यक्ति कुंभ के आयोजन और सनातन परंपराओं को लेकर सवाल उठाता था, वही अब गंगा में स्नान करते हुए खुद को सनातनी साबित करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि पहले नेता इफ्तार पार्टियों में व्यस्त रहते थे, लेकिन अब वे सनातन धर्म की ओर झुकाव दिखा रहे हैं। यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का प्रभाव है।
राजनीति और धार्मिक प्रतीकों का उपयोग
संतों ने यह भी कहा कि नेताओं को धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग करने से बचना चाहिए। स्वामी जितेन्द्रानंद ने कहा, राजनीतिक नेताओं का यह दोहरा रवैया न केवल उनकी विश्वसनीयता को कमजोर करता है बल्कि धार्मिक परंपराओं की गंभीरता को भी प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि धार्मिक आस्थाएं केवल दिखावे के लिए नहीं होतीं।
सनातन धर्म के प्रति बदलते रुख पर खुशी
स्वामी जितेन्द्रानंद ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि अब अखिलेश यादव सनातन धर्म और गंगा स्नान जैसे परंपराओं की ओर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने इसे सकारात्मक बदलाव बताया। उन्होंने आगे कहा, स्वामी विवेकानंद ने गर्व से कहा था कि 'हम हिंदू हैं।' अगर यह भावना अखिलेश यादव में जागृत हो रही है, तो यह सराहनीय है।
समाज और राजनीति में बदलाव की जरूरत
संतों ने यह भी सुझाव दिया कि राजनेताओं को धर्म और परंपराओं का सम्मान करते हुए उनकी पवित्रता बनाए रखनी चाहिए। धर्म को राजनीति से जोड़ने के बजाय उसकी गरिमा और आध्यात्मिकता को समझने की आवश्यकता है। गंगा स्नान जैसे धार्मिक कार्य भारतीय परंपराओं का हिस्सा हैं, लेकिन उनका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए करना संत समाज को खटकता है। अखिलेश यादव के गंगा स्नान को लेकर संतों की प्रतिक्रिया इस बात का संकेत है कि समाज धार्मिक परंपराओं और राजनीति के बीच स्पष्ट अंतर बनाए रखने की उम्मीद करता है।
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