Krishna Janmabhoomi Case : श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह की पूरी कहानी, जानें कब और कैसे शुरू हुआ विवाद?

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह की पूरी कहानी, जानें कब और कैसे शुरू हुआ विवाद?
UPT | श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद

Aug 01, 2024 18:08

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने शाही ईदगाह मस्जिद की उस याचिका को खारिज कर दिया...

Aug 01, 2024 18:08

Mathura News : मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच एक गंभीर विवाद के साथ ही जटिल इतिहास समेटे हुए है। यह विवाद धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और इससे जुड़े कानूनी मामले भी लंबे समय से न्यायालयों में चल रहे हैं। आइए, इस विवाद की पूरी कहानी को समझते हैं।

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विवाद में हाईकोर्ट का वर्तमान निर्णय
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने शाही ईदगाह मस्जिद की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें हिंदू पक्ष द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता को चुनौती दी गई थी। इस निर्णय के साथ, सभी 18 मुकदमों की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। 

क्या है पूरा विवाद?
यह विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। शाही ईदगाह मस्जिद, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। यह विवाद ऐतिहासिक है और इसे लेकर विभिन्न पक्षों के बीच कानूनी लड़ाई लंबे समय से चल रही है।

हाईकोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने 6 जून को शाही ईदगाह मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका में हिंदू पक्ष द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया गया था। गुरुवार को अदालत ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि हिंदू पक्ष के वादों पर सीमा अधिनियम या पूजा स्थल अधिनियम आदि के तहत रोक नहीं है। इसके साथ ही न्यायालय ने प्रबंध ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह (मथुरा) समिति द्वारा दी गई प्राथमिक दलील को खारिज कर दिया।

मुस्लिम पक्ष की दलीलें
मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित अधिकांश मुकदमों में वादी भूमि के स्वामित्व का अधिकार मांग रहे हैं। यह मांग 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के बीच हुए समझौते का विषय थी। दरअसल, 1968 के समझौते में विवादित जमीन को बांटा गया था और दोनों समूहों को 13.37 एकड़ के परिसर के भीतर एक-दूसरे के क्षेत्रों से दूर रहने के लिए कहा गया था। मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया कि मुकदमों को उपासना अधिनियम 1991 समेत कई नियमों द्वारा विशेष रूप से वर्जित किया गया है।

हिंदू पक्ष की दलीलें
हिंदू पक्षकारों ने दलील दी कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई भी संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है और उस पर अवैध रूप से कब्जा है। उन्होंने यह भी दलील दी कि अगर यह संपत्ति वक्फ की संपत्ति है, तो वक्फ बोर्ड को यह बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम और वक्फ अधिनियम लागू नहीं होते।



अदालत में दायर मूल वादों में अन्य बातें
अदालत में दायर मूल वादों में शाही ईदगाह को हटाने की मांग की गई थी। इन वादों की स्वीकार्यता को चुनौती देते हुए मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया था कि वादी ने वाद में 1968 के समझौते को स्वीकार किया है। वादी ने इस तथ्य को भी स्वीकारा है कि ईदगाह पर कब्जा मस्जिद प्रबंधन के नियंत्रण में है और इसलिए यह वाद सीमा अधिनियम के साथ-साथ उपासना स्थल अधिनियम द्वारा भी वर्जित होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वादों में इस तथ्य को भी स्वीकार किया गया है कि संबंधित मस्जिद का निर्माण 1669-70 में हुआ था।

इस पर हिंदू पक्ष के तर्क
हिन्दू पक्ष ने तर्क दिया कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करना, उसकी प्रकृति बदलना और बिना स्वामित्व के उसे वक्फ संपत्ति में बदलना वक्फ की प्रकृति है और इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इस मामले में वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे क्योंकि विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है। यह भी तर्क दिया गया कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधान विवादित संपत्ति के पूरे हिस्से पर लागू होते हैं। इसकी अधिसूचना 26 फरवरी 1920 को जारी की गई थी और अब इस संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

कितना पुराना विवाद?  
शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। इस समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात थी। पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और बदले में पास में ही कुछ जगह प्राप्त की। वर्तमान विवाद में, हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।

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इतिहास क्या कहता है?
ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669-70 में श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई जिसमें मराठा जीते और फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने यह भूमि अधिग्रहीत कर ली।

वर्तमान विवाद की स्थिति
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद, अब सभी 18 मुकदमों की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। इस विवाद में हिन्दू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग कर रहा है और दावा कर रहा है कि मस्जिद का निर्माण अवैध है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि मुकदमे 1968 के समझौते और उपासना स्थल अधिनियम 1991 समेत कई कानूनों के तहत वर्जित हैं।

आगे की राह
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। अब यह देखना होगा कि अदालत में इन मुकदमों की सुनवाई किस दिशा में जाती है और क्या यह विवाद सुलझ पाता है या नहीं। उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने निश्चित रूप से हिन्दू पक्ष की उम्मीदें बढ़ा दी हैं, लेकिन यह विवाद अभी भी कानूनी प्रक्रिया के तहत लंबा चल सकता है।

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